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कॉलिंग नेम प्रेजेंटेशन

  • 08 Dec 2022
  • 5 min read

प्रिलिम्स के लिये:

कॉलिंग नेम प्रेजेंटेशन, भारतीय दूरसंचार विनियामक प्राधिकरण, TSP

मेन्स के लिये:

कॉलिंग नेम प्रेजेंटेशन का महत्त्व और संबद्ध चुनौतियाँ 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारतीय दूरसंचार विनियामक प्राधिकरण (Telecom Regulatory Authority of India- TRAI) ने दूरसंचार नेटवर्क में “कॉलिंग नेम प्रेजेंटेशन (Calling Name Presentation- CNAP) का परिचय” पर एक परामर्श पत्र जारी किया है।

कॉलिंग नेम प्रेजेंटेशन:

  • यह सुविधा कॉल किये गए व्यक्ति को कॉलिंग पार्टी ('ट्रूकॉलर'/Truecaller और 'भारत कॉलर आईडी और एंटी-स्पैम' के समान) के बारे में जानकारी प्रदान करेगी।
  • इसके पीछे विचार यह सुनिश्चित करना है कि टेलीफोन ग्राहक को आने वाली कॉलों के बारे सही में जानकारी उपलब्ध हो ताकि वे अज्ञात या स्पैम कॉलर्स द्वारा उत्पीड़न को रोकने में सक्षम हो सके।

उद्देश्य:   

  • मौजूदा प्रौद्योगिकियाँ कॉल प्राप्तकर्त्ता के हैंडसेट पर कॉल करने वाले का नंबर रूप में जानकारी प्रस्तुत करती हैं।
  • चूँकि ग्राहकों को कॉल करने वाले का नाम और पहचान नहीं स्पष्ट हो पाती है, यह मानते हुए कि यह अपंजीकृत टेलीमार्केटर्स द्वारा अवांछित और व्यावसाय संबंधी कॉल हो सकता है, ग्राहक कभी-कभी उनका जवाब नहीं देने का विकल्प चुनते हैं। इससे वास्तविक/जरुरी कॉल भी अनुत्तरित हो सकती हैं।
  • ट्रूकॉलर/Truecaller की 'ग्लोबल स्पैम और स्कैम रिपोर्ट, 2021' से पता चला है कि भारत में हर महीने प्रति उपयोगकर्ता स्पैम कॉल की औसत संख्या 16.8 थी, जबकि अकेले अक्तूबर 2022 में इसके उपयोगकर्त्ताओं द्वारा प्राप्त कुल स्पैम कॉल्स की संख्या 3.8 बिलियन से अधिक थी।

चुनौतियाँ:  

  • विलंबता: 
    • ऐसे में कॉल करने में लगने वाले समय में वृद्धि होने की संभावना रहती है।
    • तेज़ वायरलेस नेटवर्क (4G या 5G) से तुलनात्मक रूप से धीमे (2G या 3G) नेटवर्क पर स्विच करने पर कॉल आने या जाने संबधी लगने वाला समय प्रभावित हो सकता है।
  • गोपनीयता:
    • यह विशेष रूप से स्पष्ट नहीं है कि CNAP तंत्र कॉलर के गोपनीयता के अधिकार को कैसे संतुलित करेगा, जो निजता के अधिकार का एक अनिवार्य घटक है। 
    • इसे परिप्रेक्ष्य में एक व्यक्ति कई कारणों से गुमनाम रहने का विकल्प चुन सकता है, उदाहरण के लिये व्हिसल-ब्लोअर या कर्मचारियों को परेशान किया जाना।
    • यह आदर्श होगा कि डेटा को होस्ट और साझा करने के लिये किसी तीसरे पक्ष द्वारा संचालित केंद्रीकृत डेटाबेस को पूछने के बजाय एक ढाँचा विकसित किया जाए।

आगे की राह 

  • एक बार तंत्र (स्पैमर्स की पहचान करने और चिह्नित करने के लिये) बन जाने के बाद सैकड़ों लोग इसका उपयोग करने में सक्षम हो जाते हैं तभी तंत्र का सार्थक प्रभाव होगा। सिर्फ पहचान जाहिर करने से ज़्यादा कुछ नहीं होगा।
  • एक प्रभावी तंत्र के साथ इंटरफेस उपयोगकर्त्ता के अनुकूल होना चाहिये। ग्राहकों की सक्रिय भागीदारी से यह सुनिश्चित होगा कि स्पैमर्स की सही पहचान हो गई है और वे आगे कॉल करने में असमर्थ हैं।
  • सरकार को डिजिटल साक्षरता में भी निवेश करना चाहिये, नागरिकों को नेविगेट करने और तकनीक का बेहतर उपयोग करने के लिये कुशल बनाना चाहिये, साथ ही यह सुनिश्चित करना चाहिये कि वे अपने डेटा को अंधाधुंध रूप से साझा न करें और वित्तीय धोखाधड़ी एवं  स्पूफिंग जैसे खतरों के बारे में भी उन्हें सूचित किया जाए।

स्रोत: हिंदू

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