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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

बीपीएम स्थगन और भारत-चीन संबंध

  • 03 Oct 2017
  • 4 min read

चर्चा में क्यों?

  • भारत और चीन के बीच डोकलाम को लेकर जारी विवाद भले ही आज शांत होता दिख रहा है, लेकिन वास्तविक धरातल पर परिस्थितियाँ कुछ अलग नज़र आ रही हैं।
  • विदित हो कि भारत-चीन सीमा पर सालों से चली आ रही पारंपारिक बॉर्डर पर्सनल मीटिंग (बीपीएम) इस बार नहीं होगी। इस बार चीन ने भारतीय सैनिकों को इस मीटिंग के लिये न्योता नहीं भेजा है।

वर्तमान घटनाक्रम

  • गौरतलब है कि बॉर्डर पर्सनल मीटिंग एक रस्मी बैठक है, जो 1 अक्तूबर को चीन के राष्ट्रीय दिवस के मौके पर आयोजित की जाती है।
  • दोनों देशों के बीच 3488 किलोमीटर लंबी वास्तविक नियंत्रण रेखा पर तय किये गए 5 बीपीएम पॉइंट्स पर चीन की पीपुल्स लिब्रेशन आर्मी (पीएलए) की तरफ से यह बैठक बुलाई जानी थी।
  • लेकिन,  भारतीय पक्ष को न्योता नहीं दिया गया। चीन के इस फैसले को डोकलाम विवाद से जोड़कर देखा जा रहा है।

पृष्ठभूमि

  • गौरतलब है कि डोकलाम में भारत और चीन की सेनाएँ 72 दिनों तक एक-दूसरे के आमने-सामने थीं। बाद में चीन ने अपनी सेना को पीछे हटाने का फैसला लिया और विवाद सुलझता हुआ दिखा, लेकिन बीतें दिनों चीन ने एक बार फिर डोकलाम विवाद को हवा दी।
  • चीन डोकलाम पर अपना दावा करता है कि यह इलाका उसके क्षेत्र में आता है, जबकि यह भूटान का हिस्सा है। भूटान की अपील पर भारतीय सेना डोकलाम गई थी।
  • दरअसल, चीन की तरफ से भारतीय सैनिकों को बीपीएम मीटिंग के लिये न्योता न देना इसलिये भी हैरान करने वाला है, क्योंकि हाल ही में भारत में चीन के राजनयिक, लू झाओहुई ने दोनों देशों के बीच अच्छे संबंधों की वकालत की थी। लू ने कहा था कि अब भारत और चीन को सब कुछ भूलकर एकसाथ चलना चाहिये।

आगे की राह

  • चीन आज भले ही डोकलाम पर शांत नज़र आ रहा है लेकिन वास्तव में वह भारत को अलग-थलग करते हुए दक्षिण एशिया में एक नई क्षेत्रीय व्यवस्था का निर्माण करना चाहता है और इसके लिये वह पाकिस्तान, श्रीलंका और नेपाल जैसे देशों में आक्रामक ढंग से निवेश करना चाहता है।
  • ऐसे में भारत की पड़ोस नीति की प्रासंगिकता पहले से कहीं ज़्यादा बढ़ गई है। भारत को ‘नेबर फर्स्ट’ की अपनी नीति में उन तत्त्वों को समाहित करना चाहिये, जो चीन की नीतियों में मौज़ूद नहीं हैं।
  • चीन आक्रामक विस्तारवादी नीतियाँ अपना रहा है, भारत को इसके उलट अपने सहयोगियों से सहिष्णुता से पेश आना चाहिये और भरोसा दिलाना चाहिये कि वह चीन को रोकने के लिये उनके साथ है।
  • चीन की एक बड़ी ताकत यह है कि वह अपने पड़ोसी देशों में बड़े से बड़े निवेश से पीछे नहीं हटता, भारत को यहाँ भी चीन से सीखना चाहिये और पड़ोसी देशों की ज़रूरतों के साथ खड़ा रहना चाहिये, जैसा कि हमने अफगानिस्तान में किया है।
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