भारतीय अर्थव्यवस्था
भारत में बेरोज़गारी की दर 20 वर्षों में सबसे अधिक
- 26 Sep 2018
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चर्चा में क्यों?
हाल ही में अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय के सतत् रोज़गार केंद्र द्वारा एक रिपोर्ट जारी की गई। इस रिपोर्ट के अनुसार, तेज़ी से बढ़ रही बेरोज़गारी भारत के नीति निर्माताओं और प्रशासकों के सामने सबसे बड़ी चुनौती है।
बेरोज़गारी में वृद्धि
- स्टेट ऑफ वर्किंग रिपोर्ट 2018 के अनुसार, भारत में बेरोज़गारी के स्तर में लगातार वृद्धि हो रही है, कई सालों तक 2-3% पर रुकी होने के बाद बेरोज़गारी दर 2015 में 5% तक पहुँच गई जिसमें युवा बेरोज़गारी सबसे अधिक 16% है। रिपोर्ट में कहा गया है कि यह बेरोज़गारी दर पिछले 20 सालों में सबसे अधिक है।
कम मज़दूरी है बेरोज़गारी का कारण
- नौकरियों में यह कमी निराशाजनक मज़दूरी दर के कारण हुई है। रिपोर्ट के अनुसार, 82% पुरुष और 92% महिला श्रमिक 10,000 रुपए से कम वेतन पाते हैं।
- रिपोर्ट के अनुसार, हालाँकि देश के अधिकांश क्षेत्रों में मज़दूरी पिछले 15 वर्षों से सालाना 3% की मुद्रास्फीति समायोजित दर से बढ़ रही है, वहीं कामकाजी आबादी की अधिकांश संख्या ऐसी है जिन्हें सातवें वेतन आयोग द्वारा अनुशंसित न्यूनतम वेतन से भी कम वेतन मिलता है।
बेरोज़गार विकास
- रिपोर्ट के अनुसार, हाल के वर्षों में देश ने शिक्षा क्षेत्रों में जो परिवर्तन किया है उसकी तुलना में सरकार नौकरियों का सृजन करने में असमर्थ रही है। रिपोर्ट में इसे 'बेरोज़गार विकास' (Jobless Growth) के रूप में दर्शाया गया है। वर्तमान में सकल घरेलू उत्पाद में 10% की वृद्धि के परिणामस्वरूप रोज़गार में वृद्धि 1% से भी कम है।
विभिन्न आधिकारिक सर्वेक्षणों का किया गया उपयोग
- यह रिपोर्ट विभिन्न आधिकारिक सर्वेक्षणों जैसे राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण, भारतीय अर्थव्यवस्था की निगरानी के लिये केंद्रीय सांख्यिकीय कार्यालय और श्रम ब्यूरो के वार्षिक सर्वेक्षण के साथ-साथ क्षेत्रीय अध्ययनों जैसे स्रोतों का उपयोग कर श्रम और रोज़गार के मुद्दों के बारे में मात्रात्मक डेटा और अंतर्दृष्टि प्रदान करने का प्रयास करती है।
रिपोर्ट का सकारात्मक पहलू
- इस रिपोर्ट में एक सकारात्मक क्षेत्र है-विनिर्माण क्षेत्र में नौकरियों का सृजन। लेकिन विनिर्माण क्षेत्र की नौकरियों में समस्या यह है कि ये स्थायी होने की बजाय अधिक अनुबंध युक्त और प्रशिक्षु कार्य वाली थीं।
- रिपोर्ट में यह भी पाया गया कि पिछले 30 वर्षों में श्रम उत्पादकता 6 गुना बढ़ी है। जबकि इस अवधि के दौरान प्रबंधन स्तर के वेतन में 3 गुना वृद्धि हुई, उत्पादन के क्षेत्र में काम करने वालों के वेतन में केवल 1.5 गुना वृद्धि हुई है। परिणामस्वरूप, विकास से नियोक्ताओं को श्रमिकों की तुलना में कहीं अधिक लाभ हुआ है।
जातिगत और लैंगिक असमानता का उच्च स्तर
- जातिगत और लैंगिक असमानता का स्तर उच्च पाया गया है। रिपोर्ट में उद्धृत कुछ आँकड़े ये दर्शाते हैं कि -
- सेवा क्षेत्र में कार्यरत सभी कर्मचारियों में महिला कर्मचारियों की संख्या 16% है लेकिन घरेलू श्रमिकों के मामले में इनकी संख्या कुल घरेलू श्रमिकों की संख्या का 60% है।
- इसी तरह, कुल श्रमिकों में अनुसूचित जाति के श्रमिकों का प्रतिनिधित्व 18.5%, लेकिन कुल चमड़ा श्रमिकों में इनका प्रतिनिधित्व 46% है।