शासन व्यवस्था
23 वाँ विधि आयोग और एक राष्ट्र एक चुनाव
- 01 Dec 2025
- 78 min read
प्रिलिम्स के लिये: 23 वाँ विधि आयोग, संयुक्त संसदीय समिति, आदर्श आचार संहिता, एक राष्ट्र एक चुनाव, भारतीय संविधान की मूल संरचना
मेन्स के लिये: मूल संरचना सिद्धांत और न्यायिक समीक्षा, भारत में चुनाव सुधार।
चर्चा में क्यों?
23वें विधि आयोग ने संविधान (129 वाँ संशोधन) विधेयक, 2024 और संघ राज्यक्षेत्र विधि (संशोधन) विधेयक, 2024 का अन्वीक्षण कर रही संयुक्त संसदीय समिति के साथ अपने प्रारंभिक विचार साझा किये हैं। दोनों विधेयकों का उद्देश्य एक राष्ट्र एक चुनाव को संभव बनाना है।
- आयोग ने कहा है कि ये प्रस्ताव संविधान के मूल ढाँचे का उल्लंघन नहीं करते हैं और आदर्श आचार संहिता (MCC) को वैधानिक समर्थन की आवश्यकता नहीं है।
23वें विधि आयोग के मुख्य बिंदु क्या हैं?
- भारत का 23वाँ विधि आयोग: भारत में विधि सुधार स्वतंत्रता के बाद से ही जारी है तथा प्रथम विधि आयोग वर्ष 1955 में स्थापित किया गया था।
- केंद्र सरकार ने 1 सितंबर, 2024 से 31 अगस्त, 2027 तक तीन वर्षीय कार्यकाल हेतु 23वें विधि आयोग का गठन किया है, जिसमें न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) दिनेश महेश्वरी को अध्यक्ष नियुक्त किया गया है।
- आयोग में एक पूर्णकालिक अध्यक्ष, चार पूर्णकालिक सदस्य, विधि मामलों और विधायी विभागों के सचिव पदेन सदस्य तथा अधिकतम पाँच अंशकालिक सदस्य शामिल होते हैं।
- इसका कार्य गतकालिक विधियों की समीक्षा और निरसन, विधिक भाषा और प्रक्रियाओं का सरलीकरण तथा वर्तमान आर्थिक आवश्यकताओं के अनुरूप विधि निर्माण करना है।
- आयोग विधिक मुद्दों पर सरकार को परामर्श भी देता है तथा सुभेद्य समूहों पर वैश्वीकरण के प्रभाव का अध्ययन भी करता है।
- एक राष्ट्र एक चुनाव विधेयक के संबंध में 23वें विधि आयोग के विचार: आयोग ने कहा कि एक राष्ट्र एक चुनाव विधेयक संविधान की मूल संरचना का उल्लंघन नहीं करता है तथा यह भी कहा कि संघवाद और मतदाता के अधिकार पूर्णतः सुरक्षित हैं।
- इसने स्पष्ट किया कि चुनावों को एक साथ करने से केवल मतदान की आवृत्ति और समय में परिवर्तन होता है तथा इससे किसी भी तरह से मतदान का लोकतांत्रिक अधिकार क्षरित नहीं होता है।
- आयोग का मानना है कि विधेयक को राज्यों द्वारा अनुसमर्थन की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि वह अनुच्छेद 368(2) खंड (a) से (e) के तहत विषयों में संशोधन का प्रस्ताव नहीं करते हैं , जो राज्य अनुसमर्थन को अनिवार्य बनाते हैं।
- एक साथ चुनाव कराने को सकारात्मक दृष्टि से देखा जा रहा है क्योंकि इससे समय और धन की बचत होगी।
- आदर्श आचार संहिता (MCC): विधि आयोग ने MCC को विधिक दर्जा देने के विरुद्ध अनुशंसा की, यह तर्क देते हुए कि इसे संहिताबद्ध करने से चुनावों के दौरान निर्णय-प्रक्रिया धीमी हो जाएगी।
- इसमें इस बात पर ज़ोर दिया गया कि वर्तमान नम्य, सर्वसम्मति आधारित आदर्श आचार संहिता बेहतर काम करती है, क्योंकि यह निर्वाचन आयोग को आवश्यकता पड़ने पर शीघ्र कार्रवाई करने की अनुमति देती है।
भारतीय संविधान की आधारभूत संरचना का सिद्धांत क्या है?
- भारतीय संविधान का आधारभूत ढाँचा सिद्धांत, एक न्यायिक समीक्षा सिद्धांत है जिसे भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 1973 में केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य के ऐतिहासिक मामले में स्थापित किया था।
- यह संवैधानिक सर्वोच्चता, विधि का शासन, शक्तियों का पृथक्करण और संघवाद जैसे आधारभूत संवैधानिक मूल्यों की रक्षा करता है। यह भी माना गया है कि संसद, अनुच्छेद 368 के अंतर्गत संविधान की इन आवश्यक विशेषताओं में संशोधन या उन्हें नष्ट नहीं कर सकती है।
- इसकी उत्पत्ति युद्धोत्तर जर्मन संविधान, 1949 से जुड़ी हुई है, जिसने नाजी युग के बाद आवश्यक सिद्धांतों की रक्षा की।
- आधारभूत संरचना के सिद्धांत के तत्त्व: सर्वोच्च न्यायालय ने यह स्पष्ट कर दिया है कि मूल विशेषताओं की सूची संपूर्ण नहीं है, न्यायालय आवश्यकता के आधार पर नए मामलों में इसकी पहचान करता है।
- इसमें कई मुख्य तत्त्व शामिल हैं जैसे संविधान की सर्वोच्चता, एक संप्रभु, लोकतांत्रिक और गणतांत्रिक सरकार, धर्मनिरपेक्षता, संघवाद, विधि का शासन और शक्तियों का पृथक्करण।
- इसमें न्यायिक समीक्षा, न्यायपालिका की स्वतंत्रता, स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव, संसदीय शासन प्रणाली और राष्ट्र की एकता एवं अखंडता भी शामिल है।
- अन्य आवश्यक विशेषताओं में मौलिक अधिकारों की प्रधानता, मौलिक अधिकारों और राज्य नीति के निर्देशक सिद्धांतों (DPSP) के बीच सामंजस्य तथा अनुच्छेद 32, 136, 141 और 142 के तहत सर्वोच्च न्यायालय की शक्तियाँ, साथ ही अनुच्छेद 226 और 227 के तहत उच्च न्यायालयों की शक्तियाँ शामिल हैं।
- आधारभूत संरचना सिद्धांत का महत्त्व:
- संवैधानिक पहचान की सुरक्षा: संसद को संविधान की मूल विशेषताओं को बदलने या समाप्त करने से रोकता है तथा निरंतरता और स्थिरता सुनिश्चित करता है।
- बहुमत की शक्ति पर अंकुश: अनुच्छेद 368 के तहत संशोधन करने की शक्ति पर सख्त सीमाएँ आरोपित करता है, जो अस्थायी राजनीतिक बहुमत पर अंकुश के रूप में कार्य करता है।
- मौलिक अधिकारों की रक्षा: यह सुनिश्चित करता है कि समानता, स्वतंत्रता और विधि के शासन जैसे आवश्यक अधिकारों को संशोधनों के माध्यम से कमज़ोर नहीं किया जा सकता।
- न्यायिक समीक्षा को मज़बूत करना: न्यायालयों को संवैधानिक अनिवार्यताओं को नुकसान पहुँचाने वाले संशोधनों को अमान्य करने का अधिकार देता है तथा जवाबदेहिता को मज़बूत करता है।
- स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करता है: ऐसे संशोधनों पर रोक लगता है जो लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को विकृत कर सकते हैं या चुनावी अखंडता को कमज़ोर कर सकते हैं।
- संविधान को एक 'जीवंत दस्तावेज़' बनाए रखना: संविधान के आधारभूत दर्शन को नष्ट होने से बचाते हुए प्रगतिशील परिवर्तनों की अनुमति प्रदान करता है।
एक राष्ट्र, एक चुनाव क्या है?
- परिचय: एक साथ चुनाव या ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’, एक ही समय में लोकसभा, राज्य विधानसभा और स्थानीय निकाय चुनाव कराने को संदर्भित करता है।
- पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली एक उच्च स्तरीय समिति ने दो संवैधानिक संशोधन विधेयकों- संविधान (129वाँ संशोधन) विधेयक, 2024 और केंद्रशासित प्रदेश कानून (संशोधन) विधेयक, 2024 के माध्यम से एक राष्ट्र, एक चुनाव को सक्षम करने की सिफारिश की है।
- ऐतिहासिक संदर्भ: भारत में वर्ष 1951 से 1967 तक समकालिक चुनाव हुए, जिसके दौरान लोकसभा और अधिकांश राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ हुए।
- हालाँकि, राजनीतिक कारणों और विधानसभाओं के समय से पहले विघटन के कारण यह प्रथा समाप्त हो गई। 1960 के दशक में राजनीतिक अस्थिरता और दलबदल के कारण चुनाव चक्र और भी अलग हो गए।
- एक साथ चुनाव कराए जाने के पक्ष में तर्क:
- शासन में निरंतरता को बढ़ावा मिलता है, क्योंकि बार-बार होने वाले चुनावों के कारण सरकार और नेताओं का ध्यान विकास एवं कल्याणकारी कार्यों से भ्रमित नहीं होता है।
- नीतिगत पक्षाघात की स्थिति कम होती है, क्योंकि आदर्श आचार संहिता बार-बार लागू नहीं करनी पड़ती, जिससे योजनाओं और निर्णयों का निर्बाध क्रियान्वयन संभव होता है।
- प्रशासनिक संसाधनों का दुरुपयोग कम होता है, क्योंकि एक साथ चुनाव होने पर बार-बार चुनावी ड्यूटी के लिये कर्मियों की तैनाती की आवश्यकता नहीं पड़ती।
- क्षेत्रीय दलों का महत्त्व इसलिये कायम रहता है क्योंकि वे राज्य-स्तरीय चिंताओं को वह प्रमुखता देते हैं, जो अक्सर राष्ट्रीय चुनाव अभियानों में गौण हो जाती हैं।
- शासन पर ध्यान केंद्रित करना आसान हो जाता है, क्योंकि चुनावों की संख्या घटने से राजनीतिक व्यवधान कम होते हैं, चुनावी आक्रामकता में कमी आती है और जन-आवश्यकताओं पर अधिक फोकस दिया जा सकता है।
- वित्तीय बोझ कम होता है, क्योंकि अलग-अलग चुनाव चक्रों में मानव-बल, सुरक्षा, लॉजिस्टिक्स और उपकरणों पर होने वाला व्यय कम हो जाता है।
निष्कर्ष
एक साथ चुनावों (Simultaneous elections) का उद्देश्य भारत की चुनावी प्रक्रिया को सरल बनाना, शासन को मज़बूत करना और प्रशासनिक व वित्तीय बोझ को कम करना है। 23वें विधि आयोग द्वारा इसकी संवैधानिक वैधता की पुष्टि के बाद, अब बहस का केंद्र इसकी व्यावहारिक व्यवहार्यता और राजनीतिक सहमति पर आ गया है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
1. एक देश, एक चुनाव को सक्षम बनाने के लिये संवैधानिक संशोधनों की सिफारिश किस समिति ने की?
पूर्व राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली उच्च-स्तरीय समिति ने इन परिवर्तनों की सिफारिश की।
2. एक देश, एक चुनाव से संबंधित विधेयकों की संवैधानिकता पर 23वें विधि आयोग का क्या मत है?
23वें विधि आयोग ने कहा कि ये विधेयक संविधान की मूल संरचना का उल्लंघन नहीं करते।
3. क्या चुनावों को एक साथ कराने (सिंक्रोनाइज़्ड इलेक्शंस) के लिये अनुच्छेद 368 के तहत राज्यों की मंज़ूरी की आवश्यकता होती है?
नहीं। आयोग ने स्पष्ट किया कि ये विधेयक अनुच्छेद 368(2)(a)–(e) के तहत उन प्रावधानों में संशोधन नहीं करते, जिनके लिये राज्यों का अनुमोदन आवश्यक है।
4. आचार संहिता (MCC) को वैधानिक दर्जा देने पर विधि आयोग का क्या दृष्टिकोण है?
आयोग ने MCC को क़ानूनी दर्जा देने के खिलाफ सलाह दी, यह कहते हुए कि इससे चुनावों के दौरान प्रशासनिक निर्णय-प्रक्रिया धीमी हो जाएगी।
5. कौन-सा सर्वोच्च न्यायालय मामला मूल संरचना सिद्धांत की स्थापना के लिये जाना जाता है?
केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य (1973)।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)
प्रिलिम्स
प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2017)
- भारत का निर्वाचन आयोग पाँच-सदस्यीय निकाय है।
- संघ का गृह मंत्रालय, आम चुनाव और उप-चुनावों दोनों के लिये चुनाव कार्यक्रम तय करता है।
- निर्वाचन आयोग मान्यता-प्राप्त राजनीतिक दलों के विभाजन/विलय से संबंधित विवाद निपटाता है।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं ?
(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2
(c) केवल 2 और 3
(d) केवल 3
उत्तर: (d)
प्रश्न. भारत के संविधान के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2019)
- किसी भी केंद्रीय विधि को सांविधानिक रूप से अवैध घोषित करने की किसी भी उच्च न्यायालय की अधिकारिता नहीं होगी।
- भारत के संविधान के किसी भी संशोधन पर भारत के उच्चतम न्यायालय द्वारा प्रश्न नहीं उठाया जा सकता।
उपर्युक्त में से कौन-सा/से कथन सही है/हैं?
(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1, न ही 2
उत्तर: (d)
मेन्स
प्रश्न. आदर्श आचार-संहिता के उद्भव के आलोक में, भारत के निर्वाचन आयोग की भूमिका का विवेचन कीजिये। (2022)
प्रश्न. "संविधान का संशोधन करने की संसद की शक्ति एक परिसीमित शक्ति है और इसे आत्यंतिक शक्ति के रूप में विस्तृत नहीं किया जा सकता है।" इस कथन के आलोक में व्याख्या कीजिये कि क्या संसद संविधान के अनुच्छेद 368 के अंतर्गत अपनी संशोधन की शक्ति का विशदीकरण करके संविधान के मूल ढाँचे को नष्ट कर सकती है ? (2019)
