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वन्यजीवों की प्रवासी प्रजातियों के संरक्षण पर 13वाँ COP

  • 09 Feb 2019
  • 4 min read

चर्चा में क्यों?

वन्यजीवों की प्रवासी प्रजातियों के संरक्षण (Conservation of Migratory Species of Wild Animals- CMS) पर 13वें COP (Conference of Parties) की मेज़बानी भारत करेगा। यह सम्मलेन 15 -22 फरवरी, 2020 तक गुजरात के गांधीनगर में आयोजित किया जाएगा। सम्मलेन में 129 पार्टियों, वन्यजीव संरक्षण के क्षेत्र में काम करने वाले प्रतिष्ठित संरक्षणवादियों और अंतर्राष्ट्रीय गैर-सरकारी संगठनों के प्रतिनिधियों के भाग लेने की उम्मीद है।

क्या है CMS?

  • संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (United Nation Environment Programme-UNEP) के तत्त्वाधान में एक पर्यावरण संधि के रूप में CMS प्रवासी जानवरों और उनके आवासों के संरक्षण और स्थायी उपयोग के लिये एक वैश्विक मंच प्रदान करता है। इसे बॉन कन्वेंशन (Bonn Convention) के नाम से भी जाना जाता है। यह कई अन्य अंतर्राष्ट्रीय संगठनों, गैर-सरकारी संगठनों और कॉर्पोरेट क्षेत्र के साथ भी सहयोग करता है।
  • प्रवासी प्रजातियाँ वे जीव हैं, जो भोजन, धूप, तापमान, जलवायु आदि जैसे विभिन्न कारकों के कारण वर्ष के विभिन्न समयों में एक निवास स्थान से दूसरे स्थान पर चले जाते हैं। निवास स्थानों के बीच की यह यात्रा कुछ किलोमीटर से लेकर हज़ारों किलोमीटर तक की हो सकती है।
  • इस सम्मेलन के तहत ऐसी प्रजातियाँ, जो विलुप्ति के कगार पर हैं या जिनका अस्तित्व संकट में है, को अपेंडिक्स-। में सूचीबद्ध किया जाता है। वें प्रजातियाँ जिन्हें अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं से मदद की जरुरत है, उन्हें अपेंडिक्स-।। में शामिल किया गया है
  • पार्टियाँ इन सूचीबद्ध जीवों की कड़ाई से रक्षा करने, इनके निवास स्थानों को संरक्षित करने या उन्हें पुनर्स्थापित करने की दिशा में प्रयास करती हैं साथ ही प्रवासन की बाधाओं को कम करती हैं।

CMS में भारत की स्थिति

  • भारत 1983 से CMS की एक पार्टी है।
  • साइबेरियन क्रेन (1998), मरीन टर्टल (2007), डूगोंग (2008) और रैप्टर (2016) के संरक्षण और प्रबंधन पर CMS के साथ गैर कानूनी रूप से बाध्यकारी MOU पर भारत ने हस्ताक्षर किये हैं।
  • भारत कई प्रवासी जानवरों और पक्षियों का अस्थायी घर है। अमूर फाल्कन, बार हेडेड घीस, ब्लैक नेकलेस क्रेन, मरीन टर्टल, डूगोंग, हंपबैक व्हेल इत्यादि इनमें से कुछ महत्त्वपूर्ण प्रजातियाँ हैं।
  • भारतीय उप-महाद्वीप प्रमुख पक्षी फ्लाईवे नेटवर्क का हिस्सा है। इसे मध्य एशियाई फ्लाईवे  (The Central Asian Flyway - CAF) भी कहते हैं। इसके अंतर्गत आर्कटिक एवं हिन्द महासागर के मध्य का क्षेत्र आता है।
  • इस क्षेत्र में जलीय पक्षियों की 182 प्रजातियों की कम-से-कम 279 आबादी पाई जाती है, जिसमें से 29 प्रजातियाँ वैश्विक रूप से संकटापन्न स्थिति में हैं।
  • भारत ने मध्य एशियाई फ्लाईवे के तहत प्रवासी प्रजातियों के संरक्षण के लिये राष्ट्रीय कार्ययोजना भी शुरू की है।

स्रोत – पीआईबी

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