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एडिटोरियल

अंतर्राष्ट्रीय संबंध

जहाँ देखभाल है वहीं घर है

  • 20 Feb 2017
  • 11 min read

पृष्ठभूमि

बदलते सामाजिक परिदृश्य में आज देश के तकरीबन प्रत्येक शहर में वृद्धाश्रमों की स्थापना हो चुकी हैं, परन्तु इनकी कुल क्षमता का सदुपयोग न हो पाना यह दर्शाता है कि हमारा समाज वृद्धावस्था को प्रौढ़ावस्था के विकल्प के रूप में स्वीकार नहीं कर पा रहा है| यह और बात है कि हमारा समाज आज भी संस्कारिक मूल्यों एवं आदर्शों पर आधारित है तथापि बदलते पारिवारिक एवं सामाजिक मूल्यों के परिणामस्वरूप इसकी मूल व्यवस्था अब परिवर्तित होने लगी है| इस पर पाश्चात्य देशों की सभ्यता का प्रभाव (वृद्धाश्रमों के रूप में) स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है| हालाँकि इन नई व्यवस्थाओं को अपनाने तथा पूरी तरह आत्मसात करने में पुरानी पीढ़ी को अभी वक्त लगेगा|

परित्याग महामारी

  • देश के सबसे साक्षर राज्य केरल में बच्चों द्वारा अपने माता-पिता को बेघर करने का चलन एक कभी न खत्म होने वाली कतार के रूप में उभरकर सामने आ रहा है| संभवतः यही कारण है कि शहर में अवस्थित शयनगृहों (dormitories) में रहने वाले वृद्धों की संख्या में दिनोंदिन वृद्धि होती जा रही है|
  • शहर में बढ़ती शरणस्थलों की मांग को देखते हुए राज्य सरकार ने तकरीबन 60 सदस्यों वाले एक नए वृद्धाश्रम को बनाने का निर्णय लिया है| इस नए वृद्धाश्रम के निर्माण हेतु आवश्यक धनराशि का निवेश राष्ट्रीय शहरी आजीविका मिशन तथा निगम द्वारा किया जाएगा|
  • ध्यातव्य है कि यदि किसी मामले में यह स्पष्ट हो जाता है कि इन वरिष्ठ नागरिकों के आवासों में भर्ती किये जाने वाले लोगों को उनके बच्चों के द्वारा मात्र बेपरवाह रवैये के कारण यहाँ भर्ती किया जा रहा है ताकि उन्हें अपने माता-पिता को बुढ़ापे में ढोना न पड़े, तो ऐसे लोगों को यहाँ सीधे तौर पर भर्ती नहीं किया जाएगा|
  • इसके लिये इन लोगों की पृष्ठभूमि के विषय में सटीक जानकारी प्राप्त करने हेतु एक विस्तृत जाँच-प्रक्रिया की जाएगी|
  • साथ ही किसी ज़िलाधिकारी (District collector) द्वारा अनुशंसित लोगों अथवा किसी पुलिस अधिकारी द्वारा इन वरिष्ठ आवासों में लाए गए बेसहारा लोगों को ही यहाँ भर्ती किया जाएगा| विदित हो कि ये पुलिस अधिकारी उप-निरीक्षक (Sub Inspector) से कम रैंक का नहीं होना चाहिये|
  • उपरोक्त विवरण से स्पष्ट है कि सरकार बुज़ुर्ग माता-पिताओं को बेघर होने से बचाने की अपनी प्रतिबद्धता के प्रति पूरी तरह से गंभीर है|

सरकारी प्रावधान

  • गौरतलब है कि इस सन्दर्भ में वरिष्ठ नागरिकों के लिये आवासीय सुविधाओं में वृद्धि हेतु सार्वजनिक प्रावधानों में भी निरंतर बढ़ोतरी हो रही है| यह और बात है कि इस दिशा में सार्वजनिक पहलों की प्रायः उपेक्षा की जाती रही है|
  • ध्यातव्य है कि केरल के समाज कल्याण विभाग (Kerala’s Department of Social Welfare) से सम्बद्ध अनाथालयों एवं अन्य धर्मार्थ गृहों के कंट्रोल बोर्ड द्वारा प्रदत्त आँकड़ों के अनुसार, राज्य में वर्ष 2011 से (पिछले साढ़े तीन दशकों की तुलना में) अब तक वृद्धाश्रमों की संख्या में तीन गुना की वृद्धि दर्ज़ की गई है|
  • इतना ही नहीं वर्ष 2010-11 में वृद्धाश्रमों की संख्या 391 से बढ़कर वर्ष 2015-16 के दौरान 574 के लगभग हो गई है| ध्यातव्य है कि इनमें से 228 वृद्धाश्रम सरकार द्वारा समर्थन प्राप्त  हैं|
  • उल्लेखनीय है कि इन वृद्धाश्रमों में रहने वाले प्रत्येक व्यक्ति को प्रतिमाह 1000 रुपए की सहायता राशि भी प्रदान की जाती है|
  • हालाँकि सरकार द्वारा संचालित वृद्धाश्रमों को अपरिहार्य भीड़ होने के कारण अक्सर कोष में कमी तथा अन्य बुनियादी सुविधाओं की कमी की समस्या का सामना करना पड़ता है| यही कारण है कि बहुत से सरकारी वृद्धाश्रम या तो बहुत अधिक गरीब हैं या फिर वे बिना किसी बचत के ही चल रहे हैं|
  • सम्भवतः इसीलिये केरल राज्य सरकार ने बहुत सी औपचारिक गतिविधियों में भाग लेना आरंभ कर दिया है ताकि वृद्धाश्रमों में रहने वाले सभी वरिष्ठ जनों को वृद्ध पेंशन योजना अथवा अन्य सुरक्षा योजनाओं से संबद्ध किया जा सके|
  • हालाँकि, बहुत से मामलों में यह भी पाया गया है कि बहुत से बुज़ुर्ग व्यक्तियों को अपनी वृद्धावस्था में भी अनौपचारिक क्षेत्रों में काम करना पड़ता है| यहाँ यह स्पष्ट कर देना अत्यंत आवश्यक है कि इन बुजुर्गों में महिलाओं की संख्या सबसे अधिक है|

अन्य पक्ष

  • गौरतलब है कि इन वृद्धाश्रमों की गुणवत्ता के मध्य अंतर पैदा करने में आय असमानता भी एक महत्त्वपूर्ण कारक है|
  • ध्यातव्य है कि शहरों के नज़दीक अवस्थित अधिकांशत: 5 से 10 एकड़ के प्लॉटों में निजी क्षेत्रों द्वारा चालित आवास प्रायः मध्यमवर्ग के लोगों के लिये उपलब्ध होते हैं|
  • प्रायः ऐसी इकाइयों में अधिकांशतः ऐसे अपार्टमेंट (Apartments) और स्वतंत्र विला (Independent villas) शामिल होते हैं जिनमें दो शयनकक्ष (Bedrooms) होते हैं तथा इनमें यह चेतावनी पत्र दिया जाता है कि इन्हें खरीदने वाला अपनी इच्छानुसार जब तक चाहे यहाँ रह सकता है परन्तु यह इन्हें अपने ठेकेदार अथवा नॉमिनी को नहीं दे सकता|
  • यह चेतावनी पत्र इसलिये दिया जाता है क्योंकि कहीं न कहीं इनके मालिकों में यह डर बना रहता है कि वे या तो इन आवासों को वरिष्ठ नागरिकों हेतु सेवानिवृत्त आवास (Retirement home) में परिवर्तित कर देंगे तथा इन आवासों के बुनियादी परिवेश में कोई बदलाव कर देंगे|
  • हालाँकि भारत के सभी महानगरों में अचल संपत्ति के मूल्य (Real estate prices) अलग-अलग हैं| जहाँ एक स्टूडियो अपार्टमेंट (Studio apartment) के लिये मात्र 20 लाख रुपए की शुरुआती जमाराशि की आवश्यकता होती है वहीं एक शयनकक्ष वाले अपार्टमेन्ट के लिये मात्र 25 लाख रुपए की धनराशि जमा करने की आवश्यकता होती है|
  • इसके अतिरिक्त, इनमें से अधिकांश आवासों में 15,000 रुपए अथवा इससे अधिक के मासिक किराए की मांग की जाती है जिसमें प्रायः खाना, सामान्य उपयोगिता की वस्तुएँ और बीमारियों के निवारण हेतु आवश्यक चीज़ों को तो शामिल किया जाता है परन्तु दवाइयों का खर्च और इकाई स्तर की उपयोगिताएँ इसमें शामिल नहीं की जाती हैं|

तेज़ी से उभरता बाज़ार

  • गौरतलब है कि अचल संपत्ति परामर्शदात्री (Real estate consultancy) जोंस लाँग लासल्ले इंडिया (Jones Lang LaSalle India) द्वारा प्रस्तुत एक रिपोर्ट के अनुसार, विश्व में वृद्धाश्रमों से संबद्ध कुल संपत्ति तकरीबन 60 बिलियन डॉलर है|
  • यदि भारतीय सन्दर्भ में बात करें तो भारत में वर्ष 2011 में वृद्धाश्रमों से संबद्ध कुल संपत्ति की कीमत 76 मिलियन थी, जिसके वर्ष 2025 एवं 2050 तक बढ़कर क्रमशः 173 मिलियन तथा 240 मिलियन होने की संभावना व्यक्त की जा रही है| स्पष्ट है कि आने वाले समय में इन क्षेत्र में निवेश की दर में व्यापक वृद्धि होने की सम्भावना है|
  • एनएसएसओ (National Sample Survey Organisation) द्वारा प्रस्तुत जानकारी के अनुसार, वर्ष 2004 में 60 वर्ष से अधिक आयु वाले मात्र 3 फीसदी लोग एकांतवास में अपना जीवन यापन कर रहे थे, जबकि तकरीबन 9.3 फीसदी लोग अपने जीवनसाथी के साथ तथा 35.6 फीसदी लोग अपने बच्चों के साथ रह रहे थे|
  • हालाँकि उक्त आँकड़ों के अंतर्गत बेघर और बेसहारा लोगों को शामिल नहीं किया गया है| 
  • स्पष्ट है कि उक्त परिपेक्ष्य में वरिष्ठ आवास की अवधारणा को निजी क्षेत्र द्वारा बहुत सहयोग प्रदान किया गया है| वस्तुतः यदि वृद्धाश्रमों के सन्दर्भ में निवेशित पूंजी के विषय में बात की जाए तो ज्ञात होता है कि यदि इस क्षेत्र में निवेश का स्तर बढ़ा देने से लाभ अर्जित होने की संभावना बनती है तो इससे न केवल वरिष्ठ नागरिकों के लिये आवास की बेहतर व्यवस्था की जा सकती है, बल्कि विभिन्न स्तरों पर उनके लिये आवश्यक भिन्न-भिन्न घटकों की पूर्ति भी की जा सकती है| स्पष्ट है कि इससे न केवल उनकी सामाजिक स्वीकार्यता में वृद्धि होगी, बल्कि वृद्ध लोगों की सुरक्षा तथा गरिमा को बनाए रखने के साथ-साथ इनकी देखभाल हेतु प्रिचायिकाओं (नर्स) एवं चिकित्सकीय विशेषज्ञों की नियुक्ति करने से रोज़गार के अवसरों में भी बढ़ोतरी होगी| इस प्रकार इससे न केवल देश की एक बेशकीमती संपत्ति (देश के वरिष्ठ नागरिकों) की भली भाँति देखरेख सुनिश्चित की जा सकती है बल्कि इससे रोज़गार के नए अवसर भी उत्पन्न किये जा सकते हैं|
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