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राजनैतिक दलों की वित्तीयन प्रणाली के लिये कितना कारगर होगा "चुनाव बांड" ?

  • 20 Feb 2017
  • 8 min read

सन्दर्भ

राजनीतिक दलों के वित्त पोषण एवं चंदे में पारदर्शिता लाने की पहल के तहत केंद्रीय बजट में प्रस्ताव किया गया था कि राजनीतिक पार्टियाँ एक व्यक्ति से 2000 रुपए से अधिक नगद चंदा नहीं ले सकतीं लेकिन वे दानदाताओं से चेक या डिजिटल माध्यम से चंदा प्राप्त कर सकती हैं और इसके लिये चुनाव बांड भी जारी किये जाएंगे। साथ ही यह भी कहा गया कि राजनीतिक दलों को निर्धारित समय सीमा के भीतर अनिवार्यत: आय कर रिटर्न भरना होगा। दरअसल, सरकार के इन सभी प्रयासों को जहाँ कुछ लोग महत्त्वपूर्ण बता रहे हैं वहीं कुछ लोगों का मानना है कि सरकार द्वारा घोषित सुधार नज़र का धोखा मात्र है।

सरकार द्वारा की गई घोषणाएँ

  • गौरतलब है कि केंद्रीय वित्त और कॉरपोरेट मामलों के मंत्री अरुण जेटली ने आम बजट 2017-18 प्रस्तुत करते हुए कहा कि राजनीतिक दलों द्वारा चंदा लेने में सुविधा के लिये ‘बैंक चुनावी बांड’ जारी किये जाएंगे। वित्त मंत्री ने कहा कि राजनीतिक दल एक व्यक्ति से अधिकतम दो हजार रुपए का नगद चंदा ले सकते हैं।
  • राजनीतिक पार्टियों की वित्त पोषण प्रणाली में सुधार लाने के उद्देश्य से राजनीतिक दलों को चंदा देने के लिये जल्द ही अधिकृत बैंकों से चुनावी बांड जारी किये जाएंगे। सरकार इस संबंध में एक योजना का ढाँचा तैयार करेगी। गौरतलब है कि चुनावी बांड जारी करने के लिये भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम में संशोधन करने का भी प्रस्ताव किया गया है।

क्या है चुनाव बांड ?

  • चुनावी बॉन्ड का जिक्र सर्वप्रथम वर्ष 2017 के आम बजट में किया गया था। सरकार की ओर से आरबीआई एक प्रकार का बांड जारी करेगा और जो भी व्यक्ति राजनीतिक पार्टियों को दान देना चाहता है, वह पहले बैंक से बॉन्ड खरीदेगा फिर वह जिस भी राजनैतिक दल को दान देना चाहता है दान के रूप में बांड दे सकता है।
  • राजनैतिक दल इन चुनावी बॉन्‍ड की बिक्री अधिकृत बैंक को करेंगे और वैधता अवधि के दौरान राजनैतिक दलों के बैंक खातों में बांड के खरीद के अनुपात में राशि जमा करा दी जाएगी। गौरतलब है कि चुनाव बांड एक प्रामिसरी नोट की तरह होगा जिस पर किसी भी प्रकार का ब्याज नहीं दिया जाएगा। विदित हो कि चुनाव बॉन्‍ड को चैक या ई-भुगतान के जरिये ही खरीदा जा सकता है।

संबंधित चिंताएँ ?

  • कालेधन और भ्रष्टाचार की जड़ समझे जाने वाले राजनीतिक दलों के चंदे में नकदी की सीमा 20 हजार से घटाकर दो हजार करना  व चुनाव बांड जारी करना निश्चित रूप से एक महत्त्वपूर्ण सुधार है, लेकिन इस से कुछ चिंताएँ भी जुड़ी हुई हैं। सरकार की योजना ये है कि जो भी व्यक्ति किसी पार्टी को वैध तरीके से अर्जित पैसा देना चाहे वो बैंक जाकर उतनी रकम का चुनावी बांड खरीद लेगा। दरअसल, होगा यह कि

1) इस चुनावी बांड पर न खरीदने वाले का नाम होगा न ही उस दल का जिसे बांड दिया जाएगा। 
2)  राजनैतिक दलों को यह नहीं बताना पड़ेगा कि उन्हें किस व्यक्ति और कंपनी से दान मिला है।
3) राजनैतिक दलों को ये भी नहीं बताना पड़ेगा कि उसे कुल कितनी रकम के बांड मिले हैं।

  • चंदे का हिसाब देने की छूट को भी 20 हजार से घटाकर 2 हजार कर दिया जाना उतना लाभकारी प्रतीत नहीं हो रहा क्योंकि अब यह होगा कि कल तक जो नेता जी किसी एकाउंटेंट को बुलाकर कहते थे- ‘भाई ये रहे 100 करोड़ इसे 20-20 हजार के चंदे की तरह दिखाकर एंट्री कर दो’।अब वे यह कहेंगे- भाई ये रहे 100 करोड़ इसे दो-दो हजार के चंदे की तरह दिखाकर एंट्री कर दो’।

क्या हो आगे का रास्ता ?

  • वर्तमान प्रावधानों के अनुसार किसी भी राजनैतिक दल को 20 हज़ार रुपये से कम के किसी भी चंदे का हिसाब देने की कोई ज़रूरत नहीं है। तमाम नेता और पार्टियाँ इस प्रावधान का फायदा उठाते हैं और भ्रष्टाचार के जरिये जुटाई गई काली कमाई को राजनैतिक चंदे के तौर पर दिखाकर ब्लैक मनी को व्हाइट मनी बना लेते हैं। इसे रोकने के लिये दो तरह के नियमों की ज़रूरत है।

1) पहला यह कि राजनैतिक दलों के धन का हिसाब न देने की छूट को पूरी तरह से खत्म किया जाना चाहिये जैसा बाकी संगठनों को करना पड़ता है, उसी तरह से पार्टियों को भी अपने हर चंदे का हिसाब देना और रखना अनिवार्य बना देना चाहिये चाहे कैश में हो या चेक।
2) दूसरा, कोई भी पार्टी कैश में अधिकतम कितना चंदा ले सकती है उसकी सीमा तय की जानी चाहिये थी। इस संबंध में नियम यह बन सकता था कि पार्टियाँ अपने कुल चंदे का सिर्फ 10 प्रतिशत ही कैश में ले सकती हैं।

निष्कर्ष 

  • भारत में चुनाव आयोग के समक्ष 1900 के करीब पार्टियाँ पंजीकृत हैं। सामान्य तौर पर देखें तो यही प्रतीत होगा कि भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है अतः इतनी संख्या में राजनैतिक दलों का होना अच्छा ही है लेकिन जैसे ही हम इस सच्चाई पर गौर करते हैं कि इनमें सैकड़ों ऐसी पार्टियाँ हैं जिन्होंने कभी चुनाव ही नहीं लड़ा है तो यह साफ़ हो जाता है कि कुछ तो गड़बड़ ज़रूर है।
  • दरअसल, देश के पंजीकृत राजनीतिक दलों को आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 13 ए के तहत आयकर से छूट मिलती है। उनके लिये दान या चंदा लेने की कोई अधिकतम सीमा तय नहीं है। उनको सिर्फ उस लेन-देन का ब्योरा चुनाव आयोग के समक्ष पेश करना होता है जो 20 हजार या उससे ज़्यादा हो, इससे कम की रकम का कोई हिसाब उसे नहीं देना होता। इसी का लाभ उठाकर तमाम राजनीतिक दलों पर कालेधन को सफेद करने और चुनावों में बेहिसाब कालाधन खर्च करने के आरोप लगते रहे हैं। यहीं कारण है कि सैकड़ों समूह चुनाव नहीं लड़ते लेकिन राजनैतिक दल के तौर पंजीकृत हैं।
  • चुनाव में पानी की तरह बेहिसाब पैसा बहाकर सत्ता में आनेवाला कोई भी दल कभी लोक कल्याणकारी नीतियों को प्रोत्साहन देने वाला नहीं हो सकता है, अतः राजनैतिक दलों की वित्तीय अनियमिततों को दूर करना आज वक्त की ज़रूरत बन चुकी है। हालाँकि इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता है कि इस संबंध में अब तक जितने भी प्रयास हुए हैं नाकाफी ही साबित हुए हैं।
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