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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

नए राजमार्गों की आवश्यकता एवं उनसे संबंधित चुनौतियाँ

  • 16 Sep 2017
  • 15 min read

भूमिका

राष्ट्रीय और राज्य राजमार्गों के निर्माण के लिये भूमि की उपलबध्ता में आने वाली परेशानियों को ध्यान में रखते हुए भारत सरकार द्वारा इसके एक अन्य विकल्प पर कार्य करने की योजना बनाई है। जहाँ एक ओर भूमि अधिग्रहण में दिनोंदिन समस्या बढ़ती जा रही है वहीं दूसरी ओर सड़कों, फ्लाइओवरों और पुलों के निर्माण की लागत भी बहुत अधिक होती है। यही वजह है कि भारत सरकार द्वारा अब सार्वजनिक परिवहन के साधन के रूप में पानी के उपयोग पर विचार किया जा रहा है ताकि भविष्य में इस प्रकार की किसी समस्या का समय रहते विकल्प तलाशा जा सके। 

प्रमुख बिंदु

  • राष्ट्रीय जलमार्ग अधिनियम (National Waterways Act), 2016 के लागू होने के साथ ही देश में राष्ट्रीय जलमार्गों की कुल संख्या अब 111 हो गई हैं। परंतु, अभी भी इस संबंध में घाटों के निर्माण, टर्मिनल और नेविगेशन चैनलों जैसी बुनियादी ढाँचागत सुविधाएँ उपलब्ध कराने में चुनौतियाँ बनी हुई हैं।
  • इन्हीं सब बातों को ध्यान में रखते हुए सरकार द्वारा अंतर्देशीय जलमार्ग के विकास के लिये केंद्रीय सड़क निधि (central road fund - CRF) से लगभग 2000 करोड़ रुपए आवंटित करने के लिये केंद्रीय सड़क निधि अधिनियम (Central Road Fund Act), 2000 में एक संशोधन प्रस्तावित किया गया है।

भारत के अंतर्देशीय जलमार्ग

  • भारत में नदियों, नहरों, बैकवाटर एवं खाड़ी के रूप में अंतर्देशीय जलमार्ग का एक व्यापक नेटवर्क मौजूद है। कुल नौगम्य लंबाई 14,500 किलोमीटर (नदियों की लंबाई 5,200 किलोमीटर और नहरों की लंबाई 4,000 किमी है) है। 
  • भारत में अंतर्देशीय जलमार्गों में गंगा-भागीरथी-हुगली नदियों, ब्रह्मपुत्र नदी, बराक नदी, गोवा की नदियों, केरल के बैकवाटर, मुंबई में अंतर्देशीय जल और गोदावरी-कृष्णा नदियों के डेल्टाई क्षेत्र शामिल हैं। 
  • ध्यातव्य है कि विश्व के अन्य बड़े देशों, जैसे- संयुक्त राज्य अमेरिका, चीन और यूरोपीय संघ की तुलना में भारत में जलमार्गों द्वारा माल परिवहन का सबसे कम उपयोग किया जाता है।
  • भारत में संगठित तरीके से कार्गो परिवहन देश के केवल कुछ भागों, जैसे- गोवा, पश्चिम बंगाल, असम और केरल के कुछ जलमार्गों तक ही सीमित है।
  • हालाँकि, हाल के दिनों में जल परिवहन पर काफी ध्यान दिया जा रहा है इसका एक अहम् कारण यह है कि विश्व के अन्य देशों की तुलना में भारत में रसद लागत बहुत अधिक है - यह भारत में रसद लागत 18% है जबकि चीन में यह 8-10% और यूरोपीय संघ में मात्र 10-12% ही है।
  • अंतर्देशीय जलमार्गों को ईंधन कुशल, लागत प्रभावी और पर्यावरण के अनुकूल परिवहन के रूप में पहचाना जाता है, यह और बात है कि सड़कों और रेलवे की तुलना में इसमें सबसे कम निवेश किया जाता है।
  • चूँकि अंतर्देशीय जलमार्ग परिवहन के अन्य साधनों की तुलना में काफी पिछड़ा हुआ है इसलिये केंद्र सरकार द्वारा अंतर्देशीय जलमार्गों के एकीकृत विकास के लिये एक नीति विकसित करने की योजना बनाई है।

राष्ट्रीय जलमार्ग अधिनियम, 2016 (National Waterways Act, 2016)

  • संविधान की सातवीं अनुसूची में (संघ सूची के अंतर्गत) यह निहित किया गया है कि केंद्र सरकार के पास अंतर्देशीय जलमार्गों पर नौवहन और नेविगेशन संबंधी कानून बनाने का अधिकार है। इसे संसद द्वारा एक कानून के माध्यम से राष्ट्रीय जलमार्ग के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
  • इस अधिनियम में मौजूदा पाँच अधिनियमों को समाहित किया गया है, जिसके तहत 5 राष्ट्रीय जलमार्गों की घोषणा की गई है। 
  • मौजूदा कानूनों के तहत 106 जलमार्गों को राष्ट्रीय जलमार्ग के रूप में घोषित किया गया हैं।
  • इन जलमार्गों के बेहतर नेविगेशन के लिये आई.डब्ल्यू.ए.आई. (Inland Waterways Authority of India - IWAI) को नोडल निकाय बनाया गया है। अब से इन सभी जलमार्गों के विकास, रखरखाव और विनियमन का कार्य इसी निकाय का होगा।

इसके लाभ क्या–क्या हैं?

  • जल परिवहन न केवल पर्यावरण के अनुकूल है बल्कि परिवहन के अन्य तरीकों से भी सस्ता भी है।
  • जलमार्ग द्वारा माल परिवहन में बहुत कम समय लगता है। 
  • साथ ही इसमें राजमार्गों पर मौजूद भीड़ के कारण जाम और दुर्घटनाओं आदि की संभावना भी कम होती है।
  • घरेलू कार्गो परिवहन के साथ-साथ इसमें क्रूज़ की सुविधा एवं पर्यटन आदि की भी बेहतर संभावनाएँ हैं।
  • पब्लिक प्राइवेट साझेदारी (Public Private Partnership - PPP) के माध्यम से टर्मिनलों, भंडारण सुविधाओं और नेविगेशन के साथ-साथ पर्यटन हेतु निकर्षण, निर्माण, संचालन और रखरखाव आदि में भारी निवेश की भी संभावनाएँ हैं।
  • इसके अतिरिक्त यह लाखों नौकरी के अवसरों का सृजन करने में भी मदद करेगा।
  • इससे राज्यों के समुद्री व्यापार को बढ़ावा मिलेगा और उनकी अर्थव्यवस्थाओं में वृद्धि होगी।

केंद्रीय सड़क निधि अधिनियम, 2000 में संशोधन की आवश्यकता क्यों है?

  • इन जलमार्गों को परिवहन के पर्यावरण-अनुकूलित विकल्प के रूप में विकसित किया जाना चाहिये। इससे भारत में भारी रसद लागत में काफी कमी आएगी।
  • हालाँकि, ऐसा करने के लिये सरकार को वित्तपोषण के नए तरीकों को खोजना होगा क्योंकि सरकार को इन जलमार्गों को विकसित करने के लिये तकरीबन 70,000 करोड़ रुपए की आवश्यकता होगी।
  • संभवतः इसके लिये सरकार के समक्ष वित्त के विभिन्न स्रोतों, जैसे- बाज़ार से उधारी लेने और राष्ट्रीय स्वच्छ ऊर्जा निधि (National Clean Energy Fund - NCEF) तथा केंद्रीय सड़क निधि (Central Roads Fund - CRF) का उपयोग करने आदि के विकल्प मौजूद हैं।
  • सी.आर.एफ. को सी.आर.एफ. अधिनियम, 2000 के अंतर्गत विनियमित किया जाता है इसे हाई स्पीड डीज़ल और पेट्रोल पर लगने वाले सेस के रूप में जमा किया जाता है। 
  • तत्पश्चात् इस एकत्रित राशि को राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (National Highways Authority) और राष्ट्रीय एवं राज्य राजमार्गों के विकास के लिये राज्य/संघ राज्य सरकारों को जारी किया जाता है। 
  • इस विधेयक में अंतर्देशीय जलमार्गों के विकास हेतु इस उपकर का एक हिस्सा आवंटित करने का प्रावधान किया गया है। 
  • एक बार अधिनियमित हो जाने के पश्चात् सी.आर.एफ (संशोधन) विधेयक, 2017 देश में जलमार्गों के निर्माण, रखरखाव एवं प्रबंधन की दिशा में एक क्रांतिकारी कदम साबित होगा।

अधिनियम की प्रमुख विशेषताएँ 

  • निधि का उपयोग: केंद्रीय सड़क निधि अधिनियम, 2000 के तहत, इस निधि का उपयोग निम्नलिखित सड़क परियोजनाओं के लिये किया जा सकता हैं –

→ राष्ट्रीय राजमार्ग। 
→ अंतर्राज्यीय सड़कों और आर्थिक महत्त्व की सड़कों के साथ-साथ राज्यों  की सड़कों का निर्माण।
→ ग्रामीण सड़कें।

  • इस विधेयक में यह जानकारी भी दी गई है कि राष्ट्रीय जलमार्ग के विकास और रखरखाव के लिये भी इस निधि का इस्तेमाल किया जा सकता है।
  • केंद्र सरकार की शक्तियाँ: इस अधिनियम के तहत, केंद्र सरकार को निधि के संचालन की शक्ति प्रदान की गई है। केंद्र सरकार द्वारा निम्नलिखित मुद्दों पर निर्णय किये जाएंगे- 

→ राष्ट्रीय राजमार्गों और एक्सप्रेसवे परियोजनाओं में निवेश।
→ राष्ट्रीय राजमार्गों और ग्रामीण सड़कों के विकास और रखरखाव के लिये धन जुटाने।
→ राष्ट्रीय राजमार्गों, राज्य सड़कों और ग्रामीण सड़कों के लिये धन का वितरण।

  • इस विधेयक में यह स्पष्ट किया गया है कि केंद्र सरकार द्वारा राष्ट्रीय जलमार्गों के संबंध में भी उक्त सभी निर्णय लिये जा सकते है।
  • उपकर का आवंटन: इस अधिनियम के तहत, हाई स्पीड डीज़ल और पेट्रोल पर लगने वाले उपकरों को विभिन्न प्रकार की सड़कों के निर्माण के लिये आवंटित किया जाता है। इस विधेयक में राष्ट्रीय राजमार्गों के विकास और रखरखाव हेतु आवंटित उपकरों में 41.5% से 39% की कमी का प्रावधान किया गया है। हालाँकि, इसके अंतर्गत राष्ट्रीय जलमार्ग के विकास और रखरखाव हेतु 2.5% उपकर राशि को आवंटित किया गया है।
  • विधेयक के वित्तीय ज्ञापन के अनुसार, इस उपकर की लेवी की मौजूदा दर पर जलमार्गों के लिये आवंटित हिस्सेदारी लगभग 2,000 करोड़ रुपए होगी। 
  • शेष राजस्व को राष्ट्रीय राजमार्गों, राज्य राजमार्गों आदि सड़कों के विकास के लिये उपयोग किया जाएगा।
  • इससे अंतर्देशीय जलमार्ग परिवहन क्षेत्र में निजी क्षेत्र द्वारा निवेश को प्रोत्साहन और निश्चितता मिलेगी। 

अंतर्देशीय जल परिवहन के विकास के लिये आवश्यक कुछ अन्य कदम

  • अंतर्देशीय नेविगेशन को परिवहन के क्षेत्र में ऊर्जा की बचत करने वाले एक साधन के रूप में अंकित किया जाता है। इसके बेहतर क्रियान्वयन के लिये  परिवहन हेतु अपेक्षित जहाज़ों के आकार के आधार पर निर्दिष्ट पानी की गहराई और चौड़ाई सुनिश्चित करने के साथ-साथ इसके उचित रखरखाव की आवश्यकता होती है। 
  • अपस्ट्रीम स्टोरेज में पानी की रोकथाम के कुछ मौजूदा नौगम्य जलमार्गों को तब तक उपयोग से बाहर रखा जा सकता है, जब तक कि पर्याप्त मात्रा में पानी के बहाव को सुनिश्चित नहीं किया जाता है।
  • सभी नदियों में वर्तमान निर्वहन स्तर को बरकरार रखने के लिये पानी की कमी संबंधी मुद्दों की रोकथाम तथा पानी के संरक्षण की योजना बनाई जानी चाहिये। 
  • इसके अतिरिक्त कमज़ोर मानसून वाले मौसम के संबंध में भी विशेष प्रबंध किये जाने की आवश्यकता है ताकि पानी की कमी वाले मौसम में जलमार्ग परिवहन को प्रभावित होने से बचाया जा सके। 
  • जल संसाधन प्रबंधन की सभी बहुउद्देश्यीय परियोजनाओं में नौवहन घटक की निरीक्षण चरण में ही पहचान की जानी चाहिये। साथ ही अधिकतम नेविगेशन क्षमता प्राप्त करने के लिये नए प्रावधानों को भी लागू किया जाना चाहिये। 
  • ये प्रावधान बांधों के कैनालाइज़ेशन और बाढ़ के मौसम में जल के मार्ग में विचलन के नियोजन में भी लागू होते हैं।
  • मौजूदा नहरों, झीलों आदि का संरक्षण पर्यावरण संरक्षण का एक आवश्यक घटक है।
  • इसके अतिरिक्त किसी भी नदी पर बहुउद्देशीय परियोजनाओं का निर्माण करने के संबंध में नौवहन आवश्यकताओं को भी ध्यान में रखा जाना चाहिये।

निष्कर्ष

राष्ट्रीय जलमार्ग एक लागत प्रभावी, परिवहन के कुशल और पर्यावरण-अनुकूल साधन का विकल्प प्रदान करते हैं। इनके निर्माण से जहाँ एक और यातायात का बेहतर पूरक उपलब्ध होता है, वहीं दूसरी और इससे सड़कों पर मौजूद भीड़-भाड़ को भी कम करने में सहायता मिलने की संभावना है। इसके लिये ज़रूरी है कि देश भर में जलमार्ग परियोजना के सफल क्रियान्वयन के लिये बेहतर विनियमन और कार्यप्रणाली का अनुसरण किया जाए, ताकि परिवहन के संदर्भ में देश को विकास के एक नए दौर में प्रवेश कराया जा सके।

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