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एडिटोरियल

कृषि

किसान उत्पादक संगठनों का सुदृढ़ीकरण

  • 08 Jul 2021
  • 9 min read

यह एडिटोरियल दिनांक 06/07/2021 को द हिंदू बिज़नेस लाइन में प्रकाशित लेख “Reimagining FPOs to transform lives of marginal farmers” पर आधारित है। यह किसान उत्पादक संगठनों (FPO) की स्थापना से संबंधित लाभों, चुनौतियों के बारे में बात करता है।

भारतीय कृषि को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, जैसे- इनपुट लागत में वृद्धि, दक्षिण-पश्चिम मानसून के बदलते पैटर्न, खराब अर्थव्यवस्था आदि।

इन चुनौतियों के संभावित समाधानों में किसान को मिलने वाली कीमत में वृद्धि, इनपुट को कम करने के लिये बेहतर तरीके, फार्म गेट पर मूल्यवर्द्धन, बीमा और किसान-अनुकूल क्रेडिट मॉडल शामिल हैं।

हालाँकि एक ऐसा मुद्दा है जो इन सभी समाधानों के मूल में है और वह है पहुँच का। इस संबंध में किसान उत्पादक संगठनों (FPO) की स्थापना से काफी मदद मिल सकती है। एक FPO किसान आधार को बढ़ाने, इनपुट प्रदान करने, उत्पादन खरीदने, उन्हें फसलों पर सलाह देने, ऋण एवं बीमा प्रदान करने, प्रसंस्करण के बाद की सुविधा आदि में मदद करता है।

FPO का समर्थन करने वाली कई सरकारी योजनाओं के बावजूद अब तक 7,500 से अधिक FPO पंजीकृत किये गए हैं, इनमें से केवल 15 प्रतिशत ही सक्रिय हैं।

FPOs के लाभ:

  • परिमाण आधारित अर्थव्यवस्था: थोक दरों पर सभी आवश्यक आगतों की खरीद थोक में करके उत्पादन की लागत को कम किया जा सकता है।
    • उत्पाद और थोक परिवहन का संयोजन विपणन लागत को कम करता है, इस प्रकार उत्पादक की शुद्ध आय में वृद्धि करता है।
    • आधुनिक प्रौद्योगिकियों तक पहुँच, क्षमता निर्माण की सुविधा, उत्पादन प्रौद्योगिकियों का विस्तार और प्रशिक्षण तथा कृषि उपज के संबंध में जानकारी प्राप्त करने की क्षमता सुनिश्चित करना।
  • क्षति में कमी: मूल्यवर्द्धन और मूल्य शृंखला के कुशल प्रबंधन के माध्यम से कटाई के बाद के नुकसान को कम किया जा सकता है।
    • उचित योजना और प्रबंधन के माध्यम से उपज की नियमित आपूर्ति और गुणवत्ता पर नियंत्रण संभव है।
  • वित्त तक आसान पहुँच: बिना किसी जमानत के स्टॉक के वित्तीय संसाधनों तक पहुँच संभव है।
  • बेहतर सौदेबाज़ी: FPOs के माध्यम से सामूहिकता भी उन्हें एक समूह के रूप में अधिक 'सौदेबाज़ी' की शक्ति देती है और सामाजिक पूंजी निर्माण में मदद करती है।

संबंधित चुनौतियाँ:

  • व्यावसायिक प्रबंधन की कमी: पर्यवेक्षण और नियंत्रण के लिये FPO को अनुभवी, प्रशिक्षित और पेशेवर रूप से योग्य मुख्य कार्यकारी अधिकारी तथा अन्य कर्मियों द्वारा कुशलतापूर्वक प्रबंधित करने की आवश्यकता होती है।
    • हालाँकि FPO व्यवसाय को पेशेवर रूप से प्रबंधित करने के लिये ग्रामीण क्षेत्र में इस तरह की प्रशिक्षित जनशक्ति वर्तमान में उपलब्ध नहीं है।
  • कमज़ोर वित्तीय स्थिति: FPO का प्रतिनिधित्व अधिकतर छोटे और सीमांत किसानों द्वारा किया जाता है जिनके पास खराब संसाधन आधार होता है और इसलिये शुरू में वे अपने सदस्यों को जीवंत उत्पाद तथा सेवाएँ देने एवं आत्मविश्वास बनाने के लिये वित्तीय रूप से मज़बूत नहीं होते हैं।
  • क्रेडिट तक अपर्याप्त पहुँच: संपार्श्विक और क्रेडिट इतिहास की कमी के कारण किफायती ऋण तक पहुँच में कमी वर्तमान FPO द्वारा सामना की जाने वाली प्रमुख बाधाओं में से एक है।
  • जोखिम न्यूनीकरण तंत्र का अभाव: वर्तमान में जहाँ किसानों के स्तर पर उत्पादन से संबंधित जोखिम आंशिक रूप से मौजूदा फसल/पशुधन/अन्य बीमा योजनाओं के अंतर्गत आते हैं, वहीं FPO के व्यावसायिक जोखिमों को कवर करने का कोई प्रावधान नहीं है।
  • बुनियादी ढाँचे तक अपर्याप्त पहुँच: उत्पादक समूह के पास परिवहन सुविधाओं, भंडारण, मूल्यवर्द्धन और प्रसंस्करण, ब्रांड निर्माण एवं विपणन आदि के एकीकरण के लिये आवश्यक बुनियादी ढाँचे तक अपर्याप्त पहुँच है।

आगे की राह

  • कार्य का विभाजन: FPO के लिये पूरी तरह से किसानों के साथ जुड़ाव पर ध्यान केंद्रित करना और गैर-कृषि गतिविधियों में मदद के लिये एक FPO सपोर्ट यूनिट (FPOSU) की स्थापना करना आवश्यक है।
    • FPOSU को कई FPO के साथ मिलकर काम करने के लिये स्थापित किया जाएगा जिससे बड़ी छूट प्राप्त करने, बड़े खरीदारों के साथ सौदेबाज़ी करने, स्रोत से संबंधित उपयुक्त सलाह देने, क्रेडिट, बीमा और अन्य उत्पादों तथा सेवाओं जैसी लाखों किसानों की मांग की पूर्ति की जा सकेगी।
  • विपणन को सक्षम बनाना: FPOs की सफलता के लिये लाभकारी कीमतों पर उपज का विपणन सबसे महत्त्वपूर्ण है।
    • FPOs की दीर्घकालिक स्थिरता के लिये उद्योग/अन्य बाज़ार के खिलाड़ियों, बड़े खुदरा विक्रेताओं आदि के साथ जुड़ाव आवश्यक है।
    • इसके अलावा FPO को ग्रामीण कृषि बाज़ार (GRAM) के रूप में मानने और FPO के स्वामित्व तथा प्रबंधन के लिये आवश्यक विपणन बुनियादी ढाँचे का निर्माण करने की आवश्यकता है।
  • UBER/OLA मॉडल: सफाई, ग्रेडिंग, छँटाई, परख, प्रसंस्करण, ब्रांडिंग और परिवहन के लिये FPO पर फार्म स्तर के बुनियादी ढाँचे के निर्माण के लिये संसाधनों का अभिसरण आवश्यक है।
    • ऐसा शेयरधारक सदस्यों के लाभ के लिये UBER/OLA मॉडल पर आधारित कस्टम हायरिंग केंद्रों की स्थापना द्वारा किया जा सकता है।
  • FPO के सुदृढ़ीकरण को नकारना: संबंधित मंत्रालयों/विभागों को सेवाओं के कुशल वितरण और बेहतर परिणामों के लिये FPO के माध्यम से सभी "किसान केंद्रित योजनाओं" को लागू करने के लिये अनिवार्य किया जा सकता है।
    • इसके अलावा भारत सरकार की खाद्यान्न खरीद नीति में एक उपयुक्त प्रावधान हो सकता है जिसमें MSP योजना के तहत FPO के माध्यम से सीधे कृषि वस्तुओं की खरीद की आवश्यकता होती है।
  • FPO से संबंधित शिक्षा: निजी संस्थान/कृषि विश्वविद्यालय FPO प्रोत्साहन और कृषि व्यवसाय प्रबंधन पर विशेष पाठ्यक्रम शुरू कर सकते हैं, जिसमें महिलाओं सहित ग्रामीण युवाओं पर ध्यान दिया जा सकता है ताकि FPO गतिविधियों के प्रबंधन के लिये ग्रामीण क्षेत्रों में पेशेवरों का एक बड़ा पूल तैयार किया जा सके

निष्कर्ष:

चूँकि FPO को किसानों की आय बढ़ाने और कृषि विकास को बढ़ावा देने के लिये आगे का रास्ता माना जाता है, इसलिये विभिन्न हितधारकों द्वारा FPO को बढ़ावा देने हेतु भविष्य की रणनीतियों को जन जागरूकता निर्माण, संस्थागत विकास, पारिस्थितिकी तंत्र के साथ जुड़ाव और डिजिटल निगरानी पर ध्यान दिया जाना चाहिये।

अभ्यास प्रश्न: किसान उत्पादक संगठनों को किसानों की आय बढ़ाने और कृषि विकास को बढ़ावा देने हेतु भविष्य के लिये एक उपयुक्त कदम माना गया है। चर्चा कीजिये।

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