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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

संसद की उत्कृष्टता को बनाए रखने का प्रश्न

  • 04 Aug 2017
  • 11 min read

संदर्भ
भारत में संसदीय बजट कार्यालय (Parliamentary Budget Office - PBO) का गठन करना चिंता का विषय बन गया है| वस्तुतः संसदीय बजट कार्यालय एक स्वतंत्र और निष्पक्ष निकाय है, जो कि सीधे संसद से जुड़ा हुआ है| यह सदन और इसकी समितियों को बजट एवं सार्वजनिक वित्त का तकनीकी एवं लक्षित विश्लेषण उपलब्ध कराता है| इसके मुख्य कार्यों में बजट की स्वीकृति, इसके क्रियान्वयन की जाँच और सरकार के लेखा-जोखा संबंधी सभी कार्यों पर नियंत्रण करने जैसे कार्य शामिल हैं| इस कार्यालय के गठन की महत्ता इसलिये भी अधिक है, क्योंकि संसद में इस प्रकार के कार्यों को प्रभावी रूप से करने की क्षमता का अभाव है, जिसका परिणाम यह होता है कि विधायिका द्वारा मनमाने ढंग से कराधान नीति तैयार की जाती है, जिससे न केवल राजकोषीय घाटे में वृद्धि होती है, बल्कि इसके परिणामस्वरूप सार्वजनिक संसाधनों का असमान आवंटन भी होता है|

बजट की अधिकता का निरीक्षण 

  • एक सर्वेक्षण से प्राप्त जानकारी के अनुसार, भारत में कार्यपालिका के नेतृत्व में चलने वाली बजटीय शासन व्यवस्थाएँ अधिक सफल नहीं रही हैं| संभवतः यही कारण है कि सार्वजनिक संसाधनों का असमान वितरण एक प्रचलित मुद्दा बन गया है|
  • उच्च आर्थिक वृद्धि के बावजूद भारत स्वास्थ्य और शिक्षा जैसी प्रमुख सामाजिक सेवाओं में अक्षम्य आय असमानता, गरीबी, बेरोज़गारी, कुपोषण, रोगों से रोकथाम, भ्रष्टाचार और निवेश में कमी जैसी समस्याओं का सामना कर रहा है|
  • सामान्यत: बजट को नागरिकों और राज्यों के मध्य हुए समझौते अथवा राजनीति के माध्यम से नागरिकों के साथ होने वाली संधियों के तौर पर देखा जाता है| 
  • दूसरे शब्दों में कहा जाए तो भारतीय राजनीतिक आर्थिक साहित्य अभी तक लोक वित्त प्रबंधन में संसद और राज्य की भूमिका को पूर्ण रूप में समझने में असफल रहा है|
  • बजट की निर्णय-प्रक्रिया और निरीक्षण में संसद और राज्य विधानमंडल की भूमिका उतनी संतोषजनक नहीं रही है, जितनी की उससे अपेक्षा की गई थी|
  • ऐसी स्थिति में यह अत्यंत आवश्यक है कि बजटीय शासन व्यवस्था में विधायी और कार्यकारी शक्ति में उचित संतुलन स्थापित हो, ताकि उन्नति के मार्ग को प्रभावी रूप से प्रशस्त किया जा सके|
  • जैसा कि हम सभी जानते हैं कि भारतीय संसद बजट को स्वीकृति देने वाला प्रमुख निकाय है, जोकि निम्नलिखित कारकों के माध्यम से बजटीय मामलों में योगदान करता है : बजट का प्रदर्शन, विभिन्न मंत्रालयों के अनुदानों की मांग का निरीक्षण, विवाद, परामर्श और बजट की स्वीकृति|
  • इन कार्यों को प्रभावी तरीके से करने के लिये संसद को संस्थागत, विश्लेषणात्मक और तकनीकी योग्यता की आवश्यकता होती है| हालाँकि कुछ विशेषज्ञों द्वारा यह तर्क भी दिया जाता है कि बजट को स्वीकृति देने वाली संसद को एक कार्यकारी संसदीय बजट कार्यालय की आवश्यकता नहीं है| उनके अनुसार यह मात्र संसाधनों का दुरुपयोग करना है| 
  • संसद के भीतर एक संसदीय बजट कार्यालय की स्थापना करना निस्संदेह अत्यंत आवश्यक है| इसका कारण यह है कि यह व्यय और घाटों से संबंधित पूर्वाग्रहों के विषय में अवगत कराने, राजस्व अनुशासन को प्रोत्साहित करने और जवाबदेहिता को बढ़ावा देने का एक अच्छा माध्यम है|
  • इसके अतिरिक्त, यह न केवल बजटीय नीति और लोक वित्त में गुणवत्तापूर्ण सार्वजनिक विवाद उत्पन्न करता है, बल्कि सांसदों को बजटीय प्रक्रिया में शामिल होने के लिये भी प्रेरित करता है|
  • उल्लेखनीय है कि विश्व के अन्य विधानमडलों (मुख्यतः ओ.ई.सी.डी. देशों में) में यह रुझान बढ़ता जा रहा है कि संसद में विशेष बजट अनुसंधान इकाईयों की स्थापना की जानी चाहिये|
  • परंपरागत तौर पर, विकसित देशों में स्वतंत्र बजटीय इकाईयाँ होना एक आम बात हैं, परंतु कई विकासशील देश जैसे- बेनिन, घाना, केन्या, दक्षिण अफ्रीका, मोरक्को, फिलिपींस, युगांडा, नाइजीरिया, लाइबेरिया, थाईलैंड, अफगानिस्तान और वियतनाम द्वारा भी अब ऐसी संस्थाओं का गठन किया जा रहा है| स्पष्ट है कि ऐसी स्थिति में भारत को भी इस दिशा में चिंतन करने की आवश्यकता है|
  • अन्य देशों जैसे अमेरिका, कनाडा, ऑस्ट्रिया, दक्षिण कोरिया, इटली और मैक्सिको में भी संसदीय बजट कार्यालय कार्य कर रहे हैं| कुछ उप-राष्ट्रीय विधान मंडलों जैसे कैलिफोर्निया, ओंटारियो, स्कॉटलैंड और न्यू साउथ वेल्स में भी संसदीय बजट कार्यालय का गठन किया जा रहा है| इसके अतिरिक्त, न्यू यॉर्क शहर में भी एक स्वतंत्र बजट कार्यालय कार्य कर रहा है|

संसदीय बजट कार्यालय की भूमिका

  • वस्तुत: संसदीय बजट कार्यालय के चार मुख्य कार्य हैं: स्वतंत्र और लखित आर्थिक पूर्वानुमान, अनुमानित सर्वेक्षण, कार्यपालिका के बजट प्रस्ताव का विश्लेषण और मध्यम अवधि से दीर्घावधिक तक का विश्लेषण|
  • सामान्यतः बजट की शुरुआत आर्थिक पूर्वानुमान से होती है| संसदीय बजट कार्यालय इस संबंध में अपना स्वतंत्र पूर्वानुमान प्रदर्शित कर सकता है अथवा यह सरकार को वैद्यता प्रदान कर सकता है तथा आधिकारिक पूर्वानुमान पर वैकल्पिक विश्लेषण उपलब्ध करा सकता है|
  • संसदीय बजट कार्यालय ऐसे अन्य कार्यों को भी कर सकता है, जो इसके अधिदेश (mandate), संसाधनों और सांसदों अथवा समितियों की आवश्यकताओं पर निर्भर करते हैं|
  • इनमें सामान्य आर्थिक विश्लेषण, कर विश्लेषण, व्यय में कमी के विकल्प, देश की प्राथमिकताओं को दर्शाने वाले बजटीय ढाँचे को रेखांकित करना तथा नीति विश्वासों का उल्लेख करने संबंधी कार्यों को शामिल किया गया है|
  • गौरतलब है कि एक संसदीय बजट कार्यालय सामान्य संसदीय अनुसंधान सेवाओं और ख़ुफ़िया विंग से भिन्न होता है| यह वित्त समिति और लोक लेखा समिति से भी भिन्न होता है|
  • वस्तुतः संसदीय बजट कार्यालय स्वतंत्र और विशेषज्ञ स्टाफ (जैसे- बजट विश्लेषण, अर्थशास्त्रियों, लोक वित्त विशेषज्ञों) से मिलकर बना होता है| अत: इससे यह अपेक्षा की जाती है कि यह अपनी कार्यप्रणाली में पूर्ण रुप से निष्पक्ष एवं स्वतंत्र हो|
  • संसदीय बजट कार्यालय का प्रमुख कार्य कानून में संहिताबद्ध होना चाहिये| इसके निर्णय तथा निर्णयों की प्रक्रिया भी पारदर्शी, सुलभ और समझने योग्य होनी चाहिये|

सांसदों का दायित्व

  • लोक वित्त की संसदीय जाँच सरकारी जवाबदेही का महत्त्वपूर्ण पक्ष होती है| 
  • जैसा कि हम सभी जानते हैं कि भारत जैसे बड़ी जनसंख्या वाले देश में संसद और इसके सदस्यों की क्षमता को बढ़ाने की अत्यधिक आवश्यकता है| 
  • संसदीय बजट कार्यालय के गठन में सांसदों की महत्त्वपूर्ण भूमिका है| जिसप्रकार  लोगों के प्रतिनिधि होने के कारण वे लोगों की आवश्यकताओं और प्राथमिकताओं के बारे में विचार कर बजट नीतियों में सुधार करने में मददगार सिद्ध हो सकते हैं|  
  • ठीक इसी प्रकार एक संसदीय बजट कार्यालय यह सुनिश्चित कर सकता है कि सांसदों को अपने बजटीय और निरीक्षण कार्यों को प्रभावी तरीके से करने के लिये पर्याप्त मात्रा में ज्ञान है अथवा नहीं|
  • वस्तुतः संसद में संसदीय बजट कार्यालय के गठन से सदन की क्षमता पर सकारात्मक प्रभाव ही पड़ेगा, क्योंकि इससे सदन उचित प्रकार से बजट निरीक्षण कर सकेगी तथा राजस्व संबंधी सभी निर्णयों को उचित रूप में लिया जा सकेगा| हालाँकि, यह कार्य आसान नहीं होगा|

निष्कर्ष
हालाँकि इस संबंध में बहुत सी चुनौतियाँ भी सामने आ रही है| कई संसदीय बजट कार्यालयों की लागत ही उनकी सबसे बड़ी समस्या बनी हुई है| संभवतः संसद की निष्पक्षता के कारण संसदीय बजट कार्यालय के गठन के प्रस्ताव हेतु सकारात्मक प्रतिक्रिया मिले बिना कोई कार्यवाही नहीं हो सकती है| अत: भारत में संसदीय बजट कार्यालय के गठन के लिये राजनीतिक इच्छा और लोगों के समर्थन की अत्यंत आवश्यकता है| लोगों के साथ-साथ सांसदों को भी यह समझना होगा कि निष्पक्षता एवं सत्यनिष्ठा किसी भी राष्ट्र के निर्माण के आधार स्तंभ होते हैं| भारत को भी अपनी बजटीय व्यवस्था को और अधिक सटीक बनाने के लिये संसदीय बजट कार्यालय के गठन को मंज़ूरी प्रदान करनी चाहिये|

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