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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

नेपाल में राजनीतिक संकट

  • 11 Jan 2021
  • 10 min read

इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में नेपाल के हालिया राजनीतिक संकट और भारत के हितों पर इसके प्रभावों व इससे संबंधित विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।

संदर्भ: 

हाल ही में नेपाल के प्रधानमंत्री के.पी. शर्मा ओली द्वारा अपने देश की संसद को भंग करने के फैसले के बाद नेपाल में राजनीतिक संकट की स्थिति उत्पन्न हो गई है। नेपाली प्रधानमंत्री के अनुसार, यह निर्णय सत्तारुढ़ दल ‘नेपाली कम्युनिस्ट पार्टी’ (NCP) में चल रही आंतरिक रसाकस्सी की पृष्ठभूमि में लिया गया है।

पूर्व में नेपाल के राजनीतिक संकटों में भारत द्वारा मध्यस्थता की भूमिका निभाने के कारण नेपाल में भारत विरोधी भावना को बढ़ावा मिला है, ऐसे में नेपाल के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न कर भारत ने सही निर्णय लिया है। 

हालाँकि भारत द्वारा ऐसी आशंकाएँ व्यक्त की गई हैं कि नेपाल की यह राजनीतिक अस्थिरता नेपाली राजनीति में चीन के हस्तक्षेप में वृद्धि के साथ ही चीन के प्रति निकटता का भाव रखने वाली सरकार के गठन की संभावनाओं का विस्तार करेगी।

नेपाल पर चीन के प्रभुत्व का मुकाबला करने के लिये भारत को नेपाल के उन प्रमुख आर्थिक और सामरिक हितों पर ध्यान देना चाहिये जो नेपाल को चीन की ओर धकेलने के लिये उत्तरदायी रहे हैं।

भारत-नेपाल संबंधों में वर्तमान मुद्दे: 

  • वर्ष 1950 की संधि में संशोधन:   नेपाल द्वारा दोनों देशों के बीच वर्ष 1950 में हुई संधि (भारत-नेपाल शांति और मित्रता संधि) में संशोधन की मांग की गई है और भारत ने इसे स्वीकार कर लिया है।
    • हालाँकि यह मामला अभी भी लंबित है क्योंकि नेपाल ने यह स्पष्ट नहीं किया है कि भारत की सुरक्षा चिंताओं और नेपाल की विकास संबंधी आकांक्षाओं के बीच उचित संतुलन कैसे बनाया जाए। 
  • हालिया सीमा विवाद: कालापानी सीमा विवाद ने नेपाल में भारत की लोकप्रिय छवि को क्षति पहुँचाई है।   
    • इसका लाभ उठाते हुए नेपाल के वर्तमान नेतृत्व ने एकतरफा निर्णय लेते हुए एक नया मानचित्र जारी किया जिसमें कालापानी, लिपुलेख और लिम्पियाधुरा को नेपाल के हिस्सों के रूप में दर्शाया गया है।  
    • गौरतलब है कि भारत इन तीनों स्थानों को अपने अधिकार क्षेत्र का हिस्सा बताता है, ऐसे में इस सीमा विवाद के कारण भारत-नेपाल संबंध इतिहास के सबसे निचले स्तर पर पहुँच गए हैं।
  • चीन और भारत के बीच रस्साकशी: नेपाल की भू-रणनीतिक स्थिति (भारत और चीन के बीच स्थित होना) ने भारत तथा चीन के बीच रस्साकशी की स्थिति पैदा कर दी है। 
    • चीन हाल में अपने खिलाफ उभरते अंतर्राष्ट्रीय विरोध के बीच नेपाल को एक रक्षात्मक दीवार के रूप में देखता है।
    • भारत के लिये नेपाल एक बफर राज्य के रूप में कार्य करते हुए क्षेत्रीय सुरक्षा की दृष्टि से बहुत ही महत्त्वपूर्ण है।
  • चीन का बढ़ता प्रभुत्व: चीन और नेपाल के आर्थिक संबंधों में वर्ष 2015 से वृद्धि देखने को मिली परंतु वर्ष 2018 से नेपाल पर चीन के प्रभुत्व ने गति पकड़नी शुरू कर दी।
    • ‘नेपाली कम्युनिस्ट पार्टी’  के गठन में चीन की महत्त्वपूर्ण भूमिका होने के कारण वह NCP की सरकार में  अत्यधिक प्रभाव स्थापित करने में सफल रहा है।
    • इसके परिणामस्वरूप चीन नेपाल में सबसे बड़े निवेशक के रूप में भारत को बाहर करने में सफल रहा है।       
    • इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि नेपाली कम्युनिस्ट पार्टी की सरकार के तहत नेपाल में एक चीन समर्थक  विदेश नीति को मज़बूती प्राप्त हुई है।
    • इसके अतिरिक्त चीन के प्रभुत्व को इस बात से भी समझा जा सकता है कि नेपाल में हालिया राजनीतिक संकट को हल करने के लिये चीन अपनी स्वकल्पित मध्यस्थ की भूमिका में सामने आया है। 

आगे की राह:  

अपने पड़ोस में मित्रवत शासन की अपेक्षा करना अंतर्राष्ट्रीय संबंधों की यथार्थवादी दुनिया में एक स्वीकृत प्रतिमान रहा है और यह नीति भारत पर भी लागू होती है। ऐसे में भारत को नेपाल के साथ अपने संबंधों को फिर से मज़बूत करने का प्रयास करना चाहिये।

  • विवादित मुद्दों की पहचान: भारत लंबित विवादास्पद मुद्दों जैसे- वर्ष 1950 की संधि, कालापानी सीमा विवाद, व्यापार और अन्य मामलों आदि पर कार्य करते हुए नेपाल के साथ अपने संबंधों में सुधार के लिये एक शुरुआत कर सकता है।
    • हालाँकि भारत को अपना पक्ष बिलकुल स्पष्ट करना चाहिये और ऐसी लाल रेखाओं (चीन से जुड़ी सुरक्षा चिंताएँ) का निर्धारण करना चाहिये जिन्हें नेपाल को नहीं लाँघना चाहिये।
  • आर्थिक उपाय: व्यापार एवं निवेश के मामले में भारत को और अधिक उदारता दिखानी होगी। नेपाल, भारत से लगभग 8 बिलियन डॉलर के उत्पादों का आयात करता है, जबकि नेपाल द्वारा भारत को निर्यात किये जाने वाले कुल उत्पादों की लागत1 बिलियन डॉलर से कम है।
    • हालाँकि व्यापार घाटा अर्थव्यवस्थाओं पर निर्भर करता है परंतु भारत अपने बाज़ारों में नेपाली वस्तुओं के प्रवेश के लिये संरचनात्मक और प्रक्रियात्मक बाधाओं को दूर करने के लिये कार्य कर सकता है।
    • साथ ही भारत द्वारा नेपाली निर्यात को बढ़ावा देने के लिये जलविद्युत उत्पादन सहित ऐसे उद्योगों में भारतीय निवेश को प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।
    • पंचेश्वर बहुउद्देशीय परियोजना जैसी बड़ी विकास परियोजनाओं को पूरा करना भी दोनों देशों से संबंधों को नई गति प्रदान करने में सहायक हो सकता है।
  • सैन्य सहयोग:  भारत और नेपाल के बीच सीमा विवादों को हल करने के लिये दोनों देशों की सेनाओं के बीच परस्पर विश्वास और समझ का होना बहुत ही महत्त्वपूर्ण है।
    • उदाहरण के लिये वर्ष 2015 की आर्थिक नाकेबंदी के समय जब दोनों देशों के राजनीतिक नेतृत्त्व तनाव में थे, ऐसे में दोनों देशों की सेनाओं ने द्विपक्षीय वार्ताओं को शुरू कराने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
    • दोनों देशों के बीच मज़बूत सैन्य कूटनीति द्विपक्षीय संबंधों को बेहतर बनाने में महत्त्वपूर्ण योगदान दे सकती है।

निष्कर्ष:  

वर्तमान में नेपाल की राजनीतिक अनिश्चितता के बीच द्विपक्षीय संबंधों में किसी महत्त्वपूर्ण प्रगति की संभावना बहुत कम है, ऐसे में भारत को नेपाल में लोकतांत्रिक व्यवस्था की स्थापना को प्रोत्साहित करना चाहिये तथा अपनी लोकप्रिय छवि पुनः स्थापित करने का प्रयास करना चाहिये। यह नीति विवादित रणनीतिक क्षेत्रों को पुनः प्राप्त करने में भारत के लिये सहायक होगी।

अभ्यास प्रश्न:  नेपाल पर चीन के प्रभुत्व का मुकाबला करने के लिये भारत को नेपाल के उन प्रमुख आर्थिक और सामरिक हितों पर ध्यान देना चाहिये जो नेपाल को चीन की ओर धकेलने के लिये उत्तरदायी रहे हैं। चर्चा कीजिये।

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