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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

श्वेत क्रांति में निहित है कृषि क्षेत्र का विकास

  • 12 Jul 2017
  • 7 min read

सन्दर्भ
हाल ही में देश के अलग-अलग राज्यों द्वारा कृषि ऋण माफ कर दिया गया है, जिसकी कुल राशि वर्ष 2017-18 के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के करीब 1.0-1.5 फीसदी के बराबर है। जहाँ कई राज्यों ने कर्ज़ माफी की घोषणा की वहीं कई राज्यों में इसे लेकर किसानों ने हिंसक प्रदर्शन किया। इस पूरे प्रकरण ने कृषि सुधार के मुद्दे को एक बार फिर से चर्चा का विषय बना दिया है। दरअसल, ऋण माफी की घोषणा के बाद किसानों को अल्पकाल के लिये राहत तो मिल जायेगी, लेकिन इसकी बदौलत कृषि क्षेत्र की दशा और दिशा में शायद ही सुधार देखने को मिले। ज़रूरत है कर्ज़ माफी के इत्तर उपायों की तरफ नज़र दौड़ाने की और इस कड़ी में श्वेत क्रांति से जुड़े सबक अत्यंत महत्त्वपूर्ण हैं।

श्वेत क्रांति के सबक

  • गौरतलब है कि वर्ष 1951-52 से 1971-72 तक दो दशकों में देश में दुग्ध का उत्पादन 1.7 करोड़ टन से बढ़कर महज 2.2 करोड़ टन तक पहुँच गया था। दरअसल, यह वह समय था, जब श्वेत क्रांति के ज़रिये देश में दुग्ध उत्पादन को बढ़ावा दिया जा रहा था।
  • आने वाले दशकों में हर बार दुग्ध का उत्पादन दोगुना बढ़ा। वर्ष 1991-92 में यह 5.6 करोड़ टन हुआ तो वर्ष 2011-12 में 12.8 करोड़ टन। 
  • राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (एनडीडीबी) की स्थापना सन 1965 में की गई थी। उसने यूरोपीय संघ द्वारा विश्व खाद्य कार्यक्रम के तहत दिये गए दुग्ध पाउडर और बटर ऑयल की बिक्री के साथ ऑपरेशन फ्लड की शुरुआत की गई।
  • इस दुग्ध क्रांति का उद्देश्य ग्रामीण आय में सुधार करना, दुग्ध उत्पादन में स्थायित्व लाना और ग्राहकों तथा उत्पादकों के लिये उचित मूल्य की व्यवस्था करना था। विदित हो कि यह दुग्ध क्रांति इन सभी लक्ष्यों की पूर्ति में सफल रही है।

कैसे लाभदायक है दुग्थ उत्पादन ?

  • दुग्ध में कुछ ऐसी विशिष्टितायें होती हैं, जो उसे अन्य कृषि उत्पादों से अलग करती हैं। उदाहरण के लिये दुग्ध उत्पादन अन्य कृषि कार्यों के तुलना में आसान है। उसकी खरीद, परिवहन और भंडारण भी आसान है।
  • चावल की बात करें तो वह बासमती, गोविंदभोग और सोना मसूरी जैसी कई किस्मों में आता है। दुग्ध के साथ ऐसा नहीं है। दुग्ध हर मौसम में हर रोज़ खरीदा जाता है, जबकि आम जैसी मौसमी जिंसों के साथ ऐसा नहीं है।
  • दुग्ध उत्पादन-खरीद की प्रक्रिया में सरकारी कंपनियाँ नहीं, बल्कि सहकारी समितियाँ शामिल होती हैं। यह तरीका न्यूज़ीलैंड, नीदरलैंड और डेनमार्क में 19वीं सदी से ही आजमाया जा रहा है।
  • दुग्ध उत्पादन के व्यापार में प्रवेश बाधाएँ बहुत कम हैं, क्योंकि कोई बड़ा सरकारी प्रतिष्ठान इससे नहीं जुड़ा हुआ है, जिसके चलते खरीद, परिवहन, भंडारण और वितरण के काम में अच्छी प्रतिस्पर्द्धा देखने को मिलती है।
  • सन 1991 में दुग्ध को लाइसेंस व्यवस्था से बाहर कर मिल्क एंड मिल्क प्रोडक्ट ऑर्डर (एमएमपीओ) 1992 के अधीन कर दिया गया। यह व्यवस्था अनिवार्य जिंस अधिनियम 1955 के तहत की गई। वर्ष 2011 में समापन से पहले एमएमपीओ बड़ी डेयरियों से दुग्ध की आपूर्ति सुनिश्चित करने का काम करता रहा।

दुग्ध उत्पादन के अलावा अन्य अपेक्षित प्रयास

  • भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) की स्थापना सन 1964 में की गई थी। एफसीआई का कार्य किसानों के हितों की रक्षा के लिये मूल्य समर्थन नीतियों का इस्तेमाल, देश भर में सार्वजनिक वितरण प्रणाली के ज़रिये खाद्यान्न वितरण और राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा के लिये अनाज का भंडारण करना था।
  • विशेषज्ञों का मानना है कि एफसीआई को तीन हिस्सों में बांट देना चाहिये जो क्रमश: खरीद, भंडारण और वितरण का काम करें। विदित हो कि जनवरी 2015 में शांता कुमार की अध्यक्षता वाली एक उच्च स्तरीय समिति ने एफसीआई के पुनर्गठन संबंधी रिपोर्ट पेश की। वक्त आ गया है कि शांता कुमार समिति की सिफारिश पर काम किया जाए।
  • बागवानी में देश ने काफी प्रगति की है। 26.9 करोड़ टन के उत्पादन के साथ वर्ष 2012-13 में यह खाद्यान्न से ऊपर निकल गई थी। बागवानी उत्पादों की बढ़ती मांग को देखते हुए इस क्षेत्र में अभी काफी कुछ बेहतर किया जा सकता है।
  • फलों और सब्जियों के क्षेत्र में श्रम को प्रोत्साहन प्राप्त है और मूल्य भी बेहतर मिलता है। इनका उत्पादन छोटे किसानों को भी समृद्घ बना सकता है। इसके लिये कोल्ड स्टोरेज़ की ज़रूरत होगी और ढुलाई की समुचित व्यवस्था भी होनी चाहिये।
  • देश में कन्वेयर बेल्ट व्यवस्था की काफी कमी है, जिसका असर उत्पादों को धोने, सुखाने, छाँटने, पैक करने आदि में होता है। इसके अलावा सामग्री को अच्छी स्थिति में रखने के लिये रेफ्रिजरेशन वाहनों की आवश्यकता भी है।

निष्कर्ष
भारत में दुग्ध उत्पादन के क्षेत्र में व्यापक संभावनाएँ हैं, क्योंकि यह बड़े स्तर पर भारत की अर्थव्यवस्था में भागीदारी करता है। यह एक ऐसा क्षेत्र है, जो बहुत से अशिक्षित लोगों को रोज़गार प्रदान करता है। इसने ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबी के उन्मूलन में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है, क्योंकि सूखे के दौरान प्रभावित परिवारों की आय का मुख्य स्रोत दुग्ध उत्पादन ही रहता है। आज किसानों की समस्या का समाधान बस कर्ज़ माफी तक ही सीमित नहीं है, बल्कि उन्हें दुग्ध उत्पादन और बागवानी के लिये प्रोत्साहित करना होगा।

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