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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

भारत एक गिग इकॉनमी के तौर पर कितना बेहतर?

  • 17 Jul 2017
  • 9 min read

संदर्भ
अमेरिका की 31 प्रतिशत श्रम शक्ति ‘गिग इकॉनमी’ (gig economy) के अंतर्गत कार्य कर रही है और उम्मीद की जा रही है कि आने वाले समय में यह संख्या और बढ़ने वाली है। दरअसल, ऐसा इसलिये है क्योंकि दुनिया की कुछ बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में औद्योगीकरण 4.0 यानी चौथी औद्योगिक क्रांति ने दस्तक दे दी है। अब जब भारत भी इस औद्योगीकरण 4.0 की तरफ अग्रसर हो रहा है तो यह जानना आवश्यक है कि गिग इकॉनमी इसके लिये कितना सही और गलत है? हालाँकि पहले यह जानना आवश्यक है कि यह गिग इकॉनमी क्या बला है?

क्या है गिग इकॉनमी ?

  • आज स्वचालित होती दुनिया में रोज़गार की परिभाषा और कार्य का स्वरूप बदल रहा है। एक नई वैश्विक अर्थव्यवस्था उभर रही है जिसको नाम दिया जा रहा है 'गिग इकॉनमी’। दरअसल, गिग इकॉनमी में फ्रीलान्स कार्य और एक निश्चित अवधि के लिये प्रोजेक्ट आधारित रोज़गार शामिल हैं।
  • गिग इकॉनमी में किसी व्यक्ति की सफलता उसकी विशिष्ट निपुणता पर निर्भर है । असाधारण प्रतिभा, गहरा अनुभव, विशेषज्ञ ज्ञान या प्रचलित कौशल प्राप्त श्रम बल ही गिग इकॉनमी में कार्य कर सकता है। 
  • आज आप सरकारी नौकरी कर सकते हैं, या किसी प्राइवेट कंपनी के मुलाज़िम बन सकते हैं, या एक मल्टीनेशनल कंपनी में रोज़गार ढूँढ सकते हैं, लेकिन गिग इकॉनमी एक ऐसी जगह है जहाँ आप मनमाफिक काम कर सकते हैं। यानी कंपनी आपको तय समय में प्रोजेक्ट पूरा करने के एवज़ में भुगतान करती, इसके अतिरिक्त किसी भी चीज़ से कंपनी का कोई मतलब नहीं होता। 

औद्योगीकरण 4.0 और गिग इकॉनमी में संबंध

  • इकॉनोमिस्ट रोनाल्ड कोस (ronald coase) ने कहा था कि कोई भी कंपनी तब तक फलती-फूलती रहेगी जबतक कि एक चारदीवारी में बैठाकर लोगों से काम कराना, बाज़ार में जाकर काम करा लेने से सस्ता होगा। यानी कोई भी कंपनी यदि बाज़ार में जाकर, प्रत्येक विशिष्ट काम अलग-अलग विशेषज्ञों से कराती है और यह लागत कंपनी के समान्य लागत से कम है तो स्वाभाविक सी बात है कि वह एक निश्चित वेतन पर लम्बे समय के लिये लोगों को नौकरी पर रखने के बजाय वह बाज़ार में जाना पसंद करेगी।
  • औद्योगिक क्रांति 3.0 में वैश्वीकरण, निजीकरण और उदारीकरण ने बाज़ार में निकलकर काम लेना आसान बना दिया, यही कारण था कि बड़ी कम्पनियाँ तेज़ी से बंद होने लगीं और उनकी जगह ले ली छोटे-छोटे आउटसोर्सिंग फर्मों ने।
  • दरअसल, औद्योगीकरण 4.0 मुख्य रूप से अनवरत इंटरनेट कनेक्टिविटी, रोबोटिक्स, आर्टिफीसियल इंटेलिजेंस, नैनो टेक्नोलॉजी और वर्चुअल रियलिटी पर आधारित है। अतः कंपनियों को अब वैसे ही लोगों की ज़रूरत पड़ेगी जो दक्ष हैं और जिनसे प्रोजेक्ट बेसिस पर काम लिया जा सके।
  • गौरतलब है कि औद्योगीकरण 4.0 के कारण हमारे कार्य करने के तरीकों में व्यापक बदलाव आएगा। रोबोटिक्स, आर्टिफीसियल इंटेलिजेंस, नैनो टेक्नोलॉजी और वर्चुअल रियलिटी जैसी तमाम तकनीकें जब आपस में मिलेंगी तो उत्पादन और निर्माण के तरीकों में क्रांतिकारी परिवर्तन देखने को मिलेगा।
  • अतः आने वाला समय गिग इकॉनमी का होगा इससे इनकार नहीं किया जा सकता। हालाँकि यह कहना कि बड़ी कंपनियाँ बंद ही हो जाएंगी यह भी सही नहीं है, लेकिन वैश्विक अर्थव्यवस्था में एक आमूलचूल बदलाव के संकेत तो दिख ही रहे हैं।

क्या भारत का गिग इकॉनमी बनना सही है ?

  • अमेरिका में जहाँ श्रम शक्ति का 31 प्रतिशत गिग इकॉनमी से संबंध रखता है वहीं भारत में यह आँकड़ा 75 प्रतिशत है। लेकिन दोनों ही देशों के आर्थिक परिदृश्यों में ज़मीन आसमान का अंतर है। अमेरिका में 31 प्रतिशत श्रम गिग इकॉनमी का भाग इसलिये है क्योंकि वह सक्षम है, जबकि भारत में बड़ी संख्या में लोग इस व्यवस्था के हिस्से इसलिये हैं क्योंकि उनके पास कोई चारा नहीं है। विदित हो कि दैनिक मज़दूरी करने वालों को भी गिग इकॉनमी का ही हिस्सा माना जाता है।
  • भारत में 40 प्रतिशत लोग इतना ही कमा पाते हैं कि दो वक्त की रोटी खा सकें, बचत के नाम पर उनके पास कुछ भी नहीं है और वे लगातार गरीबी में जीवन व्यतीत करने को अभिशापित हैं। औद्योगीकरण 4.0 के कारण और भी लोग गिग इकॉनमी का हिस्सा बनने को मजबूर होंगे और इससे गरीब तो गरीब बना ही रहेगा साथ में उनकी संख्या में भी उल्लेखनीय वृद्धि होगी।
  • ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के एक अध्ययन के मुताबिक अकेले अमेरिका में अगले दो दशकों में डेढ़ लाख रोज़गार खत्म हो जाएंगे। अमेरिका में तो मानव संसाधन इतना दक्ष है कि उसे गिग इकॉनमी का हिस्सा बनने में कोई समस्या नहीं आएगी लेकिन भारत में यह स्थिति नहीं है।

क्या हो आगे का रास्ता ?

  • तकनीकों के इस बदलते दौर में लोगों को ‘फिटर’ और ‘प्लम्बर’ जैसे कार्यों के लिये प्रशिक्षित करना उतना व्यावहारिक नहीं है। अब ज़रूरत इस बात की है कि उन्हें ड्रोन और रोबोट्स के कल-पुर्ज़े ठीक करने का कौशल दिया जाए और इस कौशल विकास की ज़िम्मेदारी हमारी शिक्षा व्यवस्था को उठानी होगी।
  • लोगों को विशेषज्ञतापूर्ण कार्यों के लिये कौशल दिया जाए और इसके लिये अवसंरचना का भी विकास किया जाए। पूर्व की औद्योगिक क्रांतियों के अनुभवों से यह ज्ञात होता है कि इन परिवर्तनों से सर्वाधिक प्रभावित वे समूह होते हैं जो अपनी कौशल क्षमता में निश्चित समय के भीतर वांछनीय सुधार लाने में असमर्थ होते हैं अतः सरकार को चाहिये कि ऐसे लोगों को प्रशिक्षण के लिये पर्याप्त समय के साथ-साथ संसाधन भी उपलब्ध कराए।

निष्कर्ष

  • दरअसल, पहली औद्योगिक क्रांति में मानवीय शक्ति के स्थान पर भाप इंजन की शक्ति का उपयोग शुरू हुआ। दूसरी क्रांति में बिजली से चलने वाली मशीनों का उपयोग शुरू हुआ। तीसरी क्रांति, कंप्यूटर और सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी), इलेक्ट्रॉनिक्स और स्वचालित मशीनों पर आधारित थी।
  • 1991 में जब भारत ने दुनिया के लिये अपनी अर्थव्यवस्था के दरवाजे खोल दिये, लेकिन औद्योगीकरण 3.0 प्रकार के ही पर्याप्त रोज़गार हम पैदा नहीं कर पाए हैं, यहीं कारण है कि आज भारत कि 75 प्रतिशत श्रम शक्ति गिग इकॉनमी अपनाने को मजबूर है।
  • औद्योगीकरण 4.0 की तरफ बढ़ने से पहले हमें औद्योगीकरण 3.0 के दौरान हुई गलतियों को सुधारने की ज़रूरत है। श्रम शक्ति का बड़ा हिस्सा असंगठित क्षेत्र में कार्य करने को मजबूर है। अधिकांश श्रम शक्ति कौशलविहीन है। खुशी-खुशी गिग इकॉनमी अपना रहे देशों की तुलना में भारत में प्रति व्यक्ति आय बहुत ही कम है। निष्कर्षतः हम कह सकते हैं कि वर्तमान परिस्थियों में गिग इकॉनमी भारत के लिये प्रासंगिक नहीं है।
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