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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

आई.एम.एफ. की क्षेत्रीय आर्थिक रिपोर्ट

  • 02 Jun 2017
  • 7 min read

संदर्भ
हाल ही में अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) द्वारा एशिया और प्रशांत क्षेत्र पर अपनी वार्षिक रिपोर्ट जारी की गई।  इस रिपोर्ट में एशिया के पूर्व से दक्षिण तक फैली चाप (जापान से आस्ट्रलिया तक) को दुनिया का सबसे गतिशील आर्थिक क्षेत्र माना गया है। हालाँकि, इस क्षेत्र में वृद्धों की बढ़ती जनसंख्या के साथ-साथ सुस्त उत्पादकता वृद्धि दर पर चिंता जताई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि अर्थव्यवस्था में लोचशीलता, वाह्य पुनः संतुलन तथा समावेशिता को बढ़ावा देने के लिये इस क्षेत्र के देशों को समष्टि स्तरीय आर्थिक नीतियों को जारी रखना चाहिये।  

चर्चा में शामिल महत्त्वपूर्ण बिंदु 

  • आई.एम.एफ. ने एशिया और प्रशांत क्षेत्र में भारत और चीन सहित कोरिया, जापान, ताइवान, फिलीपींस, इंडोनेशिया, सिंगापुर, ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड को शामिल किया है।
  • आई.एम.एफ. के अनुसार, इन देशों में विश्व की सबसे अधिक गरीब जनसंख्या निवास करती है, साथ ही दुनिया की विनिर्माण क्षमता का एक बड़ा भाग इसी क्षेत्र में विद्यमान है।
  • उत्पादन वृद्धि दर में गिरावट और इस गिरावट के कारण होने वाली बेरोज़गारी की समस्या अब एक वैश्विक परिघटना बन चुकी है। 
  • पश्चिमी देशों में ब्याज दरों में कमी का माहौल बना हुआ है जिसका कारण वैश्विक आर्थिक संकट के बाद विनिर्माण प्रक्रियाओं में बढ़ते ऑटोमेशन और गिरती विकास दर के कारण रोज़गार में कमी को माना गया है। 
  • विश्व में स्वचालन (Automation) आज एक वास्तविकता बन चुका है, जो प्रत्येक क्षेत्र में विकसित हो रहा है, लेकिन सेवा क्षेत्र में स्वचालन की ज़्यादा भूमिका नहीं है। अत: नए श्रम बल के लिये विनिर्माण क्षेत्र के बदले सेवा क्षेत्र को रोज़गार देने वाला प्रमुख क्षेत्र माना जा रहा है। 
  • आई.एम.एफ. ने ज़ोर दिया कि एशिया-प्रशांत क्षेत्र को जनसांख्यिकीय चुनौतियों का समाधान करने तथा उत्पादकता को बढ़ावा देने हेतु संरचनात्मक सुधारों की तुरंत आवश्यकता है।
  • अत: बढ़ते श्रम-बल को रोज़गार उपलब्ध कराने हेतु सेवा क्षेत्र को मज़बूत किया जाना चाहिये तथा इस क्षेत्र हेतु ठोस नीतिगत उपाय भी किये जाने चाहियें।

भारत के बारे में चर्चा 

  • भारत, इंडोनेशिया और फिलीपींस इन तीनों देशों में बड़ी संख्या में युवा श्रम बल उपलब्ध है जिसे  जनांकिकीय लाभांश (Demographic dividend) के रूप में माना जाता है। लेकिन दुर्भाग्य से भारत ने अपने युवा वर्ग में कौशल का विकास नहीं किया है, जिसके कारण बेरोज़गारी अधिक बढ़ रही है। यही कारण है कि देश जनांकिकीय लाभांश का लाभ नहीं उठा पा रहा है। 
  • देश में इतनी अधिक फसलों की किस्में उपलब्ध होने के बावजूद केवल 10% ही खाद्य प्रसंस्करण (food processing) के लिये प्रयोग की जाती हैं। इसे नीतिगत असफलता के रूप में देखा जाता है। 
  • देश को खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र पर ध्यान देना चाहिये ताकि जो लोग कम पढ़े-लिखे हैं उन्हें रोज़गार उपलब्ध हो सके। इसके अलावा, बड़े पैमाने पर होने वाले श्रमबल के प्रवसन को भी रोका जा सकता है, इससे कृषि क्षेत्र में सुधारों को भी गति मिलेगी।  
  • भारत में महिलाओं की श्रम बल में कम होती भागीदारी एक समस्या बनी हुई है। इसके अनेक कारण बताए गए हैं, जैसे- सार्वजनिक स्थानों एवं कार्यस्थलों पर सुरक्षा की कमी, प्रमाणित और विनियमित शिशु देखभाल सुविधाओं की कमी, महिलाओं द्वारा वृद्ध व आश्रितों की देखभाल करने के लिये अपनी नौकरी छोड़ देना इत्यादि। 
  • देश में बुजुर्गों की देखभाल के बारे में कुछ ठोस कदम न उठा पाने को भी एक नीतिगत विफलता माना गया है। इसके लिए हमें लाइसेंस प्राप्त जेरियाट्रिक केयर (geriatric care) के कर्मचारियों को प्रशिक्षण देने के लिये ‘राष्ट्रीय कौशल मिशन’ के तहत प्रावधान करना चाहिये। इससे एक तरफ बुजुर्गों की अच्छी देखभाल हो सकेगी, तो दूसरी तरफ महिलाओं को भी बुजुर्गों की देखभाल हेतु नौकरी नही छोड़नी पड़ेगी।   

निष्कर्ष 
आई.एम.एफ की उपर्युक्त रिपोर्ट से यह ज़ाहिर होता है कि देश में वैश्विक कारणों के चलते अर्थव्यवस्था की विकास दर धीमी है। रिपोर्ट यह भी उज़ागर करती है कि बढ़ती श्रम-शक्ति के लिये रोज़गार उपलब्ध करना एक चुनौतीपूर्ण समस्या बनी हुई है, जिस कारण हम ‘जननांकिकी लाभांश’ का लाभ पूर्ण रूप से नहीं उठा पा रहे हैं।  अत: रिपोर्ट के आलोक में देश को एक ठोस रणनीति बनाने की आवश्यकता है जो एक तरफ आर्थिक विकास की गति को तेज़ करे तो वहीं दूसरी तरफ बढ़ती जनसंख्या को रोज़गार उपलब्ध करा सके, जिससे देश समावेशी विकास की तरफ आगे बढ़ सके। इसके लिये आवश्यक है कि कौशल विकास, मेक इन इंडिया और स्मार्ट सिटी मिशन जैसे कार्यक्रमों को ज़मीनी स्तर पर पूर्ण प्रतिबद्धता के साथ लागू किया जाए।

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