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एडिटोरियल

अंतर्राष्ट्रीय संबंध

कितनी प्रासंगिक है जीडीपी की अवधारणा?

  • 03 Feb 2017
  • 7 min read

सन्दर्भ 

  • राष्ट्रीय आय की अवधारणा के पिता कहे जाने वाले साइमन कुज्नेट्स ने जब वर्ष 1934 में अमेरिकी कांग्रेस में 273 पन्नों की अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रीय आय से संबंधित अपनी रिपोर्ट पेश कि तो शायद ही किसी को पता हो कि उसमें एक खंड था, जिसका शीर्षक ही था ‘राष्ट्रीय आय आकलन के उपयोग और दुरूपयोग’।
  • गौरतलब है कि नोबेल पुरस्कार विजेता साइमन कुज्नेट्स ने 1934 में ही समझ लिया था कि किसी भी राष्ट्र के कल्याण का अनुमान राष्ट्रीय आय के आकलन से नहीं लगाया जा सकता। धीरे-धीरे अर्थशास्त्रियोंने महसूस किया कि आर्थिक वृध्दि की तुलना में आर्थिक विकास का आधार व्यापक होता है।
  • आर्थिक विकास कैसे आर्थिक वृद्धि से ज़्यादा महत्त्वपूर्ण और व्यापक अर्थों वाला है यह समझने के लिये पहले हमें आर्थिक विकास, आर्थिक वृद्धि और जीडीपी की अवधारणा को समझना होगा।

आर्थिक विकास, आर्थिक वृद्धि और जीडीपी

  • किसी अर्थव्यवस्था या देश के लिये सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) एक निर्धारित अवधि में उस देश में उत्पादित वस्तु और सेवाओं का कुल मूल्य होता है। यह अवधि आमतौर पर एक साल की होती है। यह एक आदर्श परिभाषा है जो अर्थशास्त्र की किसी भी अंडर-ग्रेजुएट पाठ्यपुस्तक में पाई जा सकती है। वृद्धि का संबंध जीडीपी में परिवर्तनों से है। जीडीपी एक आँकड़ों के स्तर पर संपूर्ण लेकिन गुणात्मक स्तर पर एक संक्षिप्त मानदंड है जिसमें त्रुटि की गुंजाइश रहती है। जीडीपी को आर्थिक समृध्दि की अनिवार्य शर्त के रूप में पेश करते हुए इन त्रुटियों की अकसर अनदेखी कर दी जाती है।
  • जीडीपी उत्पादित की जाने वाली वस्तुओं और सेवाओं का मूल्य है। इस मूल्यांकन के लिये कीमतों की आवश्यकता होती है और कीमतों के लिये बाज़ारों की ज़रूरत पड़ती है। अतः जीडीपी केवल उन वस्तुओं और सेवाओं को प्रतिबिंबित कर सकता है जो विपणन योग्य हैं और जिनके बाज़ार हैं। ज़ाहिर है, जिस कारोबार का बाज़ार नहीं होता, उसे जीडीपी में शामिल नहीं किया जा सकता। इसको समझने के लिये पर्यावरणीय क्षरण का उदाहरण लेते हैं, जिसके कारण ग्लोबल वार्मिंग बढ़ रहा है लेकिन पर्यावरणीय क्षरण की गणना बाज़ार मूल्य में नहीं की जा सकती अतः इसे जीडीपी में शामिल नहीं किया जाता।
  • उल्लेखनीय है कि आर्थिक विकास की अवधारणा समय के साथ बदलती रही है। एक समय था जब आर्थिक विकास के प्रति नज़रिया बहुत सीधा-सादा था और आर्थिक विकास को आर्थिक वृध्दि के पर्याय के रूप में देखा जाता था, परन्तु धीरे-धीरे यह स्वीकार किया जाने लगा कि आर्थिक विकास का अर्थ महज प्रति व्यक्ति आय में वृध्दि होना नहीं है। यानी आर्थिक विकास आर्थिक वृध्दि की तुलना में एक व्यापक अवधारणा है इसलिये, मानव जीवन में सामाजिक तथा आर्थिक दोनों पहलुओं का ध्यान रखते हुए विकास के अन्य सूचक विकसित किये गए हैं।

निष्कर्ष 

  • आज सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) सात फीसद से ऊपर है, जिससे लगता है कि अर्थव्यवस्था मज़बूत स्थिति में है। लेकिन ग्लोबल हंगर इंडेक्स (जीएचआइ) के अनुसार भारत की स्थिति अपने पड़ोसी मुल्क नेपाल, बांग्लादेश, श्रीलंका और चीन से भी बदतर है। गौरतलब है कि जीएचआई की इस रिपोर्ट के माध्यम से दुनिया के विभिन्न देशों में भूख और कुपोषण की स्थिति का अंदाजा लगाया जाता है। जीडीपी के मोर्चे पर उल्लेखनीय प्रगति के बावजूद भारत अन्य सामाजिक मानकों पर पिछड़ा हुआ है और यह इस बात का द्योतक है कि किसी देश की वास्तविक प्रगति का आकलन जीडीपी के आँकड़ों से नहीं किया जा सकता है।
  • अतः किसी देश के वास्तविक प्रगति के लिये हम मानव विकास सूचकांक (human development index-HDI) का सहारा लेते हैं। एचडीआई एक ऐसा सम्मिश्रित आकलन है, जो प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद, साक्षरता और जीवन प्रत्याशा के आधार पर तैयार किया जाता है। एचडीआई लोगों की सुख-समृद्धि को जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) की तुलना में ज़्यादा बेहतर ढंग से परिभाषित करता है।एचडीआई का मूल स्रोत संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) की मानव विकास रिपोर्ट है।
  • हालाँकि एचडीआई में भी कुछ खामियाँ भी हैं, जैसे इसमें स्त्री-पुरुष के बीच भेदभाव अथवा आय में असमानता जैसे महत्त्वपूर्ण संकेतक शामिल नहीं हैं और न ही मानवाधिकारों और राजनीतिक स्वतंत्रताओं जैसी धारणाओं के प्रति सम्मान को शामिल किया गया है। फिर भी जीडीपी आधारित विकास रिपोर्ट की तुलना में एचडीआई रिपोर्ट ज़्यादा व्यावहारिक है।
  • अतीत में जीडीपी की अधिकांश आलोचना इस बात के लिये की गई है कि इसका असमानता या गरीबी से कोई सीधा संबंध नहीं है। यह आलोचना तार्किक भी है। बहरहाल इस बड़ी खामी को एचडीआई एवं अन्य संकेतकों के द्वारा दिखाया जा सकता है, लेकिन बाहरी परिस्थितियों, स्वच्छ हवा, स्वच्छ पानी और प्राकृतिक संसाधनों आदि का भी मानव की सुख-सुविधा से सीधा संबंध है। अतः इन मानकों पर भी गौर किया जाना चाहिये।
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