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भारत में स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली और व्यय

  • 13 Dec 2021
  • 12 min read

यह एडिटोरियल ‘द हिंदू’ में प्रकाशित “Health Account Numbers that Require Closer Scrutiny” लेख पर आधारित है। इसमें वर्ष 2017-18 के लिये हाल में जारी राष्ट्रीय स्वास्थ्य लेखा (NHA) रिपोर्ट और रिपोर्ट के निष्कर्षों से संबद्ध विषयों के संबंध में चर्चा की गई है।

संदर्भ

राष्ट्रीय स्वास्थ्य लेखा (National Health Accounts- NHA) तकनीकी सचिवालय ने हाल ही में वर्ष 2017-18 के लिये राष्ट्रीय स्वास्थ्य लेखा रिपोर्ट जारी की है। रिपोर्ट के निष्कर्षों का स्वागत किया जा रहा है, क्योंकि यह सकल घरेलू उत्पाद के प्रतिशत के रूप में स्वास्थ्य पर कुल सार्वजनिक व्यय में वृद्धि को दर्शाता है। 

रिपोर्ट से यह भी पता चलता है कि कुल स्वास्थ्य व्यय के हिस्से के रूप में ‘आउट-ऑफ पॉकेट एक्स्पेंडिंचर’ (OOPE) 50% से कम हो गया है।  

ये सुधार निश्चय ही सराहनीय हैं, लेकिन भारत के सार्वजनिक व्यय की स्थिति अभी भी दयनीय बनी हुई है। इसके साथ ही, NHA रिपोर्ट के निष्कर्षों का सूक्ष्मता से परीक्षण किया जाना भी आवश्यक है।  

राष्ट्रीय स्वास्थ्य लेखा रिपोर्ट के निष्कर्ष

  • सार्वजनिक व्यय में वृद्धि, OOPE में गिरावट: NHA के अनुसार सरकार ने स्वास्थ्य पर व्यय में वृद्धि की है, जिससे आउट-ऑफ पॉकेट एक्स्पेंडिंचर (OOPE) वर्ष 2017-18 में घटकर 48.8% हो गया, जो वर्ष 2013-14 में 64.2% के स्तर पर रहा था।   
    • यह दर्शाता है कि सकल घरेलू उत्पाद के प्रतिशत के रूप में स्वास्थ्य पर कुल सार्वजनिक व्यय पूर्व में अधिकतम 1-1.2% से आगे बढ़ता हुआ सकल घरेलू उत्पाद के 1.35% के ऐतिहासिक उच्च स्तर तक पहुँच गया।  
  • प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल की हिस्सेदारी: वर्तमान सरकारी स्वास्थ्य व्यय में प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल की हिस्सेदारी वर्ष 2013-14 में 51.1% से बढ़कर वर्ष 2017-18 में 54.7% हो गई।   
    • वर्तमान सरकारी स्वास्थ्य व्यय का 80% से अधिक प्राथमिक और माध्यमिक देखभाल पर किया जा रहा है।
  • स्वास्थ्य पर सामाजिक सुरक्षा व्यय: स्वास्थ्य पर सामाजिक सुरक्षा व्यय (जिसमें सामाजिक स्वास्थ्य बीमा कार्यक्रम, सरकार द्वारा वित्तपोषित स्वास्थ्य बीमा योजनाएँ और सरकारी कर्मचारियों को की गई चिकित्सा प्रतिपूर्ति शामिल है) की हिस्सेदारी में वृद्धि हुई है।   
  • स्वास्थ्य व्यय में वृद्धि के कारण: NHA 2017-18 में नज़र आई वृद्धि मुख्य रूप से केंद्र सरकार के व्यय में वृद्धि के कारण है, जहाँ वर्ष 2017-18 के लिये स्वास्थ्य पर कुल सार्वजनिक व्यय में इसकी हिस्सेदारी 40.8% तक पहुँच गई।   
    • वास्तव में यह वृद्धि मुख्यतः रक्षा चिकित्सा सेवाओं (Defence Medical Services- DMS) के व्यय को तीन गुना करने के कारण हुई है। 

रिपोर्ट द्वारा उजागर प्रमुख समस्याएँ

  • स्वास्थ्य पर व्यय अभी भी अपेक्षाकृत कम: जीडीपी के प्रतिशत के रूप में या प्रति व्यक्ति स्वास्थ्य पर भारत का कुल सार्वजनिक व्यय अभी भी विश्व में न्यूनतम में से एक है। 
    • यद्यपि इसे जीडीपी के कम-से-कम 2.5% तक बढ़ाने के लिये एक दशक से अधिक समय से नीतिगत सहमति रही है, लेकिन इस दिशा में अब तक कोई उल्लेखनीय वृद्धि नहीं हुई है।
  • महिला एवं बाल स्वास्थ्य को कम प्राथमिकता: वर्ष 2016-18 की अवधि में राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (National Health Mission) पर व्यय में मात्र 16% की वृद्धि हुई।  
    • प्रजनन आयु वर्ग की महिलाओं और पाँच वर्ष से कम आयु के बच्चों (जो संयुक्त रूप से एक तिहाई जनसंख्या का निर्माण करते हैं) के स्वास्थ्य को DMS के दायरे में शामिल परिवारों की तुलना में कम प्राथमिकता दी गई।    
    • इसके अलावा, सरकारी व्यय के अंतर्गत वर्तमान स्वास्थ्य व्यय का हिस्सा 77.9% (वर्ष 2016-17) से घटकर 71.9% (वर्ष 2017-18) रह गया।
  • पूंजीगत व्यय को शामिल करने से अति-गणना की समस्या: उदाहरण के लिये, एक नवस्थापित अस्पताल आगामी कई वर्षों तक लोगों की सेवा करता है। इस प्रकार, किये गए व्यय का उपयोग सृजित पूंजी के जीवनकाल के लिये किया जाता है और उपयोग उस विशेष वर्ष तक सीमित नहीं होता है जिसमें यह व्यय किया जाता है। किसी विशिष्ट वर्ष के लिये पूंजीगत व्यय की गणना करने से गंभीर अति-गणना या ओवरकाउंटिंग की स्थिति बनती है। 
    • इस पर विचार करते हुए, विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने स्वास्थ्य मद के आकलनों से पूंजीगत व्यय को छोड़ने और इसके बजाय चालू स्वास्थ्य व्यय पर ध्यान केंद्रित करने का प्रस्ताव किया है।   
    • किंतु भारत में NHA के आकलनों में उच्च सार्वजनिक निवेश दिखाने के लिये पूंजीगत व्यय को गणना में शामिल किया जाता है। इससे भारत के संबंध में आकलन विश्व के अन्य देशों के साथ अतुलनीय हो जाते हैं।  
      • स्वास्थ्य आकलनों से पूंजीगत व्यय को निकाल देने पर भारत का वर्तमान स्वास्थ्य व्यय जीडीपी के मात्र 0.97% तक कम हो जाता है।
  • OOPE में गिरावट स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं के उपयोग में गिरावट का एक परिणाम: वर्ष 2017-18 में OOPE में न केवल कुल स्वास्थ्य व्यय के एक हिस्से के रूप में बल्कि नॉमिनल एवं रियल टर्म्स में भी गिरावट आई है। 
    • NSSO 2017-18 के आँकड़े बताते हैं कि इस अवधि के दौरान लगभग सभी राज्यों में वर्ष 2014 की तुलना में अस्पताल-भर्ती देखभाल (Hospitalisation Care) के उपयोग में भी गिरावट आई।    
    • OOPE में गिरावट मुख्यतः अधिक वित्तीय सुरक्षा के बजाय देखभाल के उपयोग में गिरावट के कारण आई।
  • राज्य सरकारों को सौंपे गए प्राधिकारों की कमी: भारत में स्वास्थ्य राज्य सूची का विषय है और राज्य का व्यय सभी सरकारी स्वास्थ्य व्यय का लगभग 68.6% है।   
    • किंतु केंद्र सरकार ही सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रबंधन में प्रमुख शक्ति बनी हुई रहती है, क्योंकि तकनीकी विशेषज्ञता वाले मुख्य निकाय उसके नियंत्रण में होते हैं। 
    • कोविड-19 महामारी जैसी स्थितियों से निपटने के लिये विभिन्न राज्यों के बीच राजकोषीय अवसरों में व्यापक भिन्नता मौजूद है, क्योंकि प्रति व्यक्ति स्वास्थ्य व्यय के मामले में उनकी भिन्न क्षमताएँ हैं।

आगे की राह

  • स्वास्थ्य देखभाल में अधिक सार्वजनिक निवेश: विभिन्न विकासशील देशों के अनुभव से पता चलता है कि जैसे-जैसे स्वास्थ्य पर सार्वजनिक व्यय बढ़ता है, देखभाल सुविधाओं का उपयोग भी बढ़ता है।    
    • सार्वजनिक निवेश में वृद्धि के साथ स्वास्थ्य देखभाल सुविधा अधिक सस्ती और वहनीय हो जाएगी और इसके परिणामस्वरूप लोग स्वास्थ्य सेवा तक अधिक पहुँच प्राप्त करेंगे।  
  • शहरी स्थानीय निकायों को सुदृढ़ बनाना: भारत की स्वास्थ्य प्रणाली को अधिक सरकारी वित्तपोषण की आवश्यकता है। जहाँ तक शहरी स्थानीय निकायों की बात है, इसे पूरक वृद्धिशील वित्तीय आवंटन के साथ ही स्वास्थ्य नेतृत्व का प्रदर्शन कर सकने वाले निर्वाचित प्रतिनिधियों की आवश्यकता है।  
    • इसके लिये यह भी आवश्यक है कि विभिन्न एजेंसियों के बीच समन्वय हो, स्वास्थ्य विषय में अधिकाधिक नागरिक संलग्नता सुनिश्चित की जाए, जवाबदेही तंत्र स्थापित किया जाए और तकनीकी एवं स्वास्थ्य विशेषज्ञों के एक बहु-विषयक समूह के तहत प्रक्रिया का मार्गदर्शन किया जाए।
  • नए मेडिकल कॉलेजों के लिये निवेश: एम्स जैसे कुछेक उत्कृष्ट संस्थानों से परे लागत को कम करने के लिये अन्य मेडिकल कॉलेजों में निवेश को प्रोत्साहित किया जाना चाहिये ताकि लागत को कम किया जा सके और स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता में सुधार लाया जा सके।   
  • टैक्स में कमी लाना: अतिरिक्त कर कटौती के माध्यम से अनुसंधान एवं विकास को प्रोत्साहन देना ताकि नई दवाओं के विकास में अधिकाधिक निवेश को अवसर दिया जा सके और जीवन-रक्षक एवं अन्य आवश्यक दवाओं पर जीएसटी (वस्तु एवं सेवा कर) को कम किया जा सके।        
  • स्वास्थ्यकर्मियों का प्रशिक्षण: लोगों को प्रस्तावित स्वास्थ्य सुविधाएँ प्रदान करने हेतु विद्यमान स्वास्थ्य देखभाल कार्यबल को तैयार कर सकने के लिये उनके प्रशिक्षण, पुनर्प्रशिक्षण और ज्ञान उन्नयन पर प्रमुखता से ध्यान देना महत्त्वपूर्ण है। 

अभ्यास प्रश्न: भारत के स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र के समक्ष विद्यमान प्रमुख समस्याएँ कौन-सी हैं? स्वास्थ्य क्षेत्र की निराशाजनक स्थिति में सुधार के लिये उठाए जा सकने वाले कदमों की चर्चा कीजिये।

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