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एडिटोरियल

अंतर्राष्ट्रीय संबंध

भारतीय अर्थव्यवस्था को परिभाषित करता ‘लिंग विभाजन’

  • 17 May 2017
  • 8 min read

संदर्भ
विभिन्न क्षेत्रों में महिलाओं की बढ़ती भूमिका को आर्थिक विकास का केंद्रीय संचालक माना जाता है| वस्तुतः आर्थिक विकास को कई रूपों में प्रदर्शित किया जा सकता है जैसे- अच्छी शिक्षा और स्वास्थ्य (जो महिलाओं की श्रमबल में भागीदारी को सुनिश्चित करते हैं), भेदभाव और पारिश्रमिक में अंतर को कम करना तथा ऐसे कार्यों को बढ़ावा देना जो प्रतिभाशाली महिलाओं के नेतृत्व और प्रबंधन भूमिका को प्रोत्साहित करते हैं|

महत्त्वपूर्ण तथ्य

  • हाल ही में हुए कई आर्थिक सुधारों के बावजूद श्रमबल में भागीदारी, उद्यम और विकास में भारत का लिंग संतुलन विश्व में सबसे कम है| इस संतुलन में सुधार करना देश के आर्थिक विकास की दिशा में पहला महत्त्वपूर्ण कदम होगा|
  • वस्तुतः भारत में महिला उद्यमी अधिकांशतः कम पारिश्रमिक वाले उद्योगों में ही संलग्न हैं| कम पारिश्रमिक वाले इन उद्योगों में उनकी संख्या में दिनोंदिन वृद्धि हो रही है| विनिर्माण क्षेत्र, तम्बाकू उत्पाद, परिधान और वस्त्र उद्योगों में कई महिला उद्यमी संलग्न हैं क्योंकि इन उद्योगों में अधिक शारीरिक श्रम की आवश्यकता नहीं होती है| सेवाओं में शिक्षा, सीवेज, अपशिष्ट निपटान, सफाई और वित्तीय मध्यस्थता जैसी सेवाओं में भी कई महिलाएँ संलग्न हैं| औसत उद्योग पारिश्रमिक और विनिर्माण क्षेत्र में महिलाओं द्वारा संचालित किये जाने वाले उद्योगों में घनिष्ठ नकारात्मक संबंध है| 
  • गौरतलब है कि सेवा क्षेत्र में महिलाओं द्वारा संचालित उद्योगों और औसत उद्योग पारिश्रमिक के मध्य नकारात्मक संबंध तो है परन्तु यह घनिष्ठ नहीं है|
  • रेडियो, टेलीविज़न, संचार उपकरण, अन्य परिवहन उपकरण और धातु उत्पाद जैसे अनौपचारिक विनिर्माण क्षेत्रों में सर्वाधिक लिंग विभाजन है| सेवाओं के मामले में पुरुषों द्वारा संचालित उद्योगों जैसे- जल परिवहन, स्थल परिवहन और अनुसंधान में अबसे अधिक पुरुष कर्मचारी ही होते हैं| सेवा क्षेत्र में डाक, टेली संचार और अचल संपत्ति जैसी सेवाओं में पुरुषों की भूमिका में उल्लेखनीय बढ़ोतरी हो रही है|
  • भारत में हुए अनेक आर्थिक सुधारों के बावजूद भी यहाँ लिंग आधारित विभाजन में वृद्धि हुई है| उदाहरण के लिये, महिलाओं द्वारा संचालित अनौपचारिक विनिर्माण उद्योगों में महिला उद्यमियों की संख्या में वर्ष 2001(88%) की तुलना में वर्ष 2010 (93%) में वृद्धि दर्ज की गई है| सेवाओं के मामले में महिलाओं द्वारा संचालित उद्योगों में महिला कर्मचारियों की संख्या इसी अवधि के दौरान 75% से बढ़कर 87% हो गई है| इसी तरह पुरुषों द्वारा संचलित व्यवसायों में पुरुष कर्मचारियों की संख्या असंगठित विनिर्माण क्षेत्र में 80% से बढ़कर 86% हो गई है|
  • लिंग विभाजन छोटे उद्योगों में अधिक देखा गया है| औसत रूप में, एक पुरुष कर्मचारी एक महिला कर्मचारी के स्थान पर अपने सहयोगी पुरुष के साथ काम करना अधिक पसंद करते है, जबकि महिला कर्मचारी अन्य महिला कर्मचारी के साथ काम करना पसंद नहीं करती हैं| यह स्थिति छोटे उद्योगों में अधिक देखी जाती है| जैसे ही उद्योग के आकार में वृद्धि होती है, वहाँ लिंग आधारित भेदभाव स्वतः कम होने लगता है| हालाँकि, विनिर्माण क्षेत्र में पुरुष कर्मचारियों के लिये यह विभाजन उद्योगों के आकार में परिवर्तन होने से अप्रभावित रहता है | 

भारत के किन राज्यों में हैं अधिक महिला उद्यमी?

  • आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल उन राज्यों में शामिल हैं जहाँ महिलाओं की भागीदारी विनिर्माण और सेवा दोनों क्षेत्रों में अधिक है| बिहार और दिल्ली ऐसे राज्यों के अंतर्गत आते हैं जहाँ सबसे कम महिलाएँ विनिर्माण क्षेत्र में संलग्न हैं, परन्तु यदि सेवा क्षेत्र की बात की जाए तो इसकी स्थित राष्ट्रीय औसत से कुछ ही अधिक है|
  • ऐसे राज्य जिनमें महिला उद्यमी अधिक होती हैं उनके कार्यबल में महिलाओं की संख्या अधिक होती है, चाहे फिर विनिर्माण क्षेत्र में हो या सेवा क्षेत्र| उदाहरण के लिये, वे चार राज्य जिनमें अधिकांश महिलाएँ विनिर्माण क्षेत्र में संलग्न हैं उनमें तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश में सर्वाधिक महिला उद्यमी हैं| परन्तु सेवाओं के मामले में दक्षिण भारत के राज्यों की महिलाओं की आर्थिक गतिविधियों में भागीदारी अधिक है|

क्या भारत के सभी राज्यों में लिंग अंतराल एकसमान है?
नहीं| उच्च आय वाले राज्यों में महिलाओं द्वारा संचालित उद्योगों की संख्या अधिक है| भारत में अग्रणी और पिछड़े राज्यों के मध्य महिलाओं द्वारा संचालित उद्योगों में यह अंतराल व्यापक हो जाता है|

क्या शहरीकरण से लिंग विभाजन को कम किया जा सकता है? 
शहरीकरण लिंग विभाजन को कम करने में सहायता अवश्य कर सकता है परन्तु यह लिंग विभाजन को पूर्णतः समाप्त नहीं कर सकता| भारत के सात बड़े शहरों से दूरी बढ़ने के साथ ही महिलाओं द्वारा संचालित किये जाने वाले व्यवसायों में कमी आ रही है| यह स्थिति सेवा क्षेत्र की है जबकि विनिर्माण क्षेत्र के मामलें में इस प्रकार कोई भी स्पष्ट स्थानीय विभाजन देखने को नहीं मिलता है| 

क्या हो आगे की राह?
भौतिक और मानवीय अवसंरचना पुरुष अथवा महिलाओं को विकास के एक नए संचालक के रूप में उभारने में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है| अपर्याप्त अवसंरचना पुरुषों से ज़्यादा महिला उद्यमियों को प्रभावित करती है क्योंकि महिलाओं को प्रायः घर के कार्यों में अधिक समय नष्ट करना पड़ता है| भारत में विकास की यह यात्रा सीमित और अप्रत्याशित हो सकती है क्योंकि महिलाएँ सुरक्षा के रूप में अकसर बड़ी बाधाओं का सामना करतीं हैं| बाजारों तक पहुँच बनाने में अच्छी परिवहन अवसंरचना महिला उद्यमियों की इन बाधाओं को दूर कर सकती है| वस्तुतः भारत का विकास इसके कार्यबल का उचित तरीके से उपयोग करके ही किया जा सकेगा|

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