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एडिटोरियल

भारतीय अर्थव्यवस्था

अवसंरचना निर्माण में विकास वित्तीय संस्थान की भूमिका

  • 24 Jun 2021
  • 11 min read

यह एडिटोरियल दिनांक 22/06/2021 को 'द हिंदू बिज़नेस लाइन' में प्रकाशित लेख “Why DFIs have regained relevance today” पर आधारित है। इसमें आधारभूत अवसंरचना के निर्माण में विकास वित्तीय संस्थान की भूमिका पर चर्चा की गई है।

संदर्भ

विकास वित्तीय संस्थान (Development Financial Institutions-DFI) लंबी अवधि तक चलने वाले पूंजी-गहन निवेशों के लिये दीर्घकालिक एवं कम दरों पर ऋण प्रदान करते हैं, जैसे कि शहरी बुनियादी ढाँचा, खनन, भारी उद्योग तथा सिंचाई प्रणाली आदि।

  • वे बुनियादी ढाँचे के लिये आवश्यक दीर्घकालिक वित्त को प्रसारित करने और उच्च आर्थिक विकास को गति देने के लिये महत्त्वपूर्ण मध्यवर्ती संस्थाओं के रूप में कार्य करते हैं।
  • भारत में वर्ष 1991 के सुधारों के बाद प्रमुख DFI को वाणिज्यिक बैंकों में परिवर्तित कर दिया गया। हालाँकि इनके बाद देश में कुछ ही संस्थान थे जो औद्योगिक या बुनियादी ढाँचे के विकास में योगदान दे सकते थे।
  • इसलिये बुनियादी ढाँचे की कमियों को दूर करने के लिये सरकार ने भारत में DFI को फिर से स्थापित करने का प्रस्ताव देकर एक सकारात्मक कदम उठाया है।

डीएफआई: पृष्ठभूमि और वर्तमान स्थिति

  • विकास बैंक, वाणिज्यिक बैंकों से भिन्न होते हैं, जो एक परिपक्वता बेमेल (बैंक की तरलता और सॉल्वेंसी का एक संभावित कारण) से बचने के लिये लघु से मध्यम अवधि के लिये राशि जमा करते हैं तथा समान परिपक्वता के लिये ऋण देते हैं।
  • भारत में, पहला DFI 1948 में औद्योगिक वित्त निगम (IFC) की स्थापना के साथ चालू हुआ था।
  • भारत में औद्योगिक विकास बैंक (IDBI), भारतीय औद्योगिक ऋण और निवेश निगम (ICICI) और IFCI जैसी DFI ने अतीत में औद्योगिक विकास को उपलब्ध कराए गए सर्वोत्तम संसाधनों के साथ सहायता करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
  • हालाँकि वर्ष 1991 के सुधारों के बाद, भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) और सरकार से प्राप्त होने वाला रियायती धन बाद के वर्षों में उपलब्ध नहीं हुआ।
  • नतीजतन, IDBI और ICICI को खुद को सार्वभौमिक (यूनिवर्सल) बैंकों में बदलना पड़ा।
  • जब उपर्युक्त DFI निष्क्रिय हो गए, IDFC (1997), IIFCL (2006) और हाल ही में राष्ट्रीय निवेश और अवसंरचना कोष (NIIF) (2015) जैसे संस्थानों का एक नया समूह बुनियादी ढाँचे के वित्तपोषण पर ध्यान केंद्रित करने के लिये उभर कर आया।
  • बजट 2021 में सरकार द्वारा प्रतिबद्ध 20000 करोड़ के प्रारंभिक पूंजी के आधार के साथ नया डीएफआई लगभग 7 गुना का लाभ उठाते हुए 1.4 ट्रिलियन तक उधार दे सकता है।

डीएफआई की आवश्यकता

  • आधारभूत संरचना का निर्माण: अपर्याप्त और अक्षम बुनियादी ढाँचे की लागत उच्च होती है जो अर्थव्यवस्था की विकास क्षमता को प्रभावित करती है।
    • इसलिये डीएफआई की आवश्यकता है क्योंकि केंद्र सरकार ने महत्त्वाकांक्षी योजना राष्ट्रीय अवसंरचना पाइपलाइन के लिये लगभग ₹ 100 लाख करोड़ जुटाने की परिकल्पना की है।
  • आधारभूत अवसंरचना के लिये वित्त की कमी: हालाँकि भारत में सरकारी प्रतिभूतियों और कॉरपोरेट बॉण्ड के रूप में एक दीर्घकालिक ऋण बाज़ार है, फिर भी यह खुदरा निवेशकों की पहुँच से बाहर है और आधारभूत अवसंरचना से जुड़े बड़े प्रोजेक्ट के वित्तपोषण की ज़रूरतों को पूरा करने में असमर्थ है।
  • अंतर्राष्ट्रीय उदाहरण: दुनिया भर के देशों ने प्रमुख आधारभूत अवसंरचना और विनिर्माण परियोजनाओं के वित्तपोषण हेतु विकास बैंक स्थापित किये हैं।
    • उदाहरण के लिये, यूरोपियन इन्वेस्टमेंट बैंक (EIB) यूरोप के लिये DFI की तरह कार्य करता है।
  • कोविड-19 महामारी से उत्पन्न आर्थिक संकट: कोविड-19 महामारी ने असमानता, गरीबी की खाई, बेरोज़गारी और अर्थव्यवस्था की धीमी गति जैसी समस्याओं को बढ़ा दिया है।
    • इस प्रकार डीएफआई के माध्यम से बुनियादी ढाँचे का निर्माण त्वरित आर्थिक सुधार में मदद कर सकता है।

आगे की राह:  

  • डीएफआई के लिये पूंजी जुटाना: लंबी अवधि के ऋण जारी करने के लिये DFI को समान रूप से वित्त के दीर्घकालिक स्रोतों की आवश्यकता होगी।
    • पूर्व में डीएफआई सस्ते सरकारी फंड्स पर अधिक निर्भर थे और आज के वाणिज्यिक बैंकों को लंबी अवधि की परियोजनाओं को निधि देने हेतु खुदरा जमा राशि पर निर्भरता के कारण परिसंपत्ति-देयता बेमेल की स्थिति का सामना करना पड़ा।
    • ऐसे में नए डीएफआई के लिये फंडिंग के विविध स्रोतों पर ध्यान केंद्रित करना सबसे बेहतर विकल्प हो सकता है।
    • वर्तमान में डीएफआई को पूंजीगत लाभ/कर-मुक्त बाॅण्ड जारी कर, विदेशी ऋण और बहुपक्षीय एजेंसियों से प्राप्त ऋण आदि जैसे वैकल्पिक मार्गों द्वारा पर्याप्त रूप से पूंजीकृत किया जा सकता है।
  • विशेषीकृत DFIs: 'सुपर मार्केट' ऋणदाता जो किसी भी परियोजना को निधि देने के लिये तैयार रहते हैं, की तुलना में विशिष्ट वर्टिकल पर ध्यान केद्रित करने वाले विशेषीकृत परियोजना करदाता परियोजना मूल्यांकन कौशल के निर्माण और जोखिम प्रबंधन में बेहतर प्रदर्शन करते हैं। 
    • अतः सरकार को NHB और नाबार्ड (NABARD) जैसे पुनर्वित्तीयन संस्थानों की सफलता पर आधारित कई विशेषीकृत डीएफआई की स्थापना पर विचार करना चाहिये।
  • व्यापार सुगमता सुनिश्चित करना: इससे पहले कई महत्त्वाकांक्षी राजमार्ग और पाइपलाइन परियोजनाएँ लगातार स्थानीय विरोध, भूमि अधिग्रहण संकट, पूर्वव्यापी कर तथा खराब अनुबंध प्रवर्तन के कारण लंबे समय तक स्थगित रही हैं।  
    • डीएफआई की सफलता इस तरह के मुद्दों के समाधान और ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस के मार्ग में व्याप्त रुकावटों को दूर करने के प्रयासों पर निर्भर करेगी।
  • खुदरा निवेशकों तक पहुँचना: सरकार को खुदरा निवेशकों तक पहुँचने के लिये संस्थान और नेटवर्क प्लेटफॉर्म स्थापित करने की जरूरत है और बॉण्ड/इंस्ट्रूमेंट्स के  प्रयोग को प्रोत्साहित करना चाहिये ताकि वे उन उपकरणों में लंबी अवधि के निवेश के लिये आकर्षित हों।
  • डीएफआई का प्रशासन: संस्थान का स्वामित्व और संगठन संरचना महत्त्वपूर्ण हैं। इसमें और अधिक स्पष्टता की आवश्यकता है क्योंकि इसका संस्था के कामकाज, प्रशासन और इसकी दीर्घकालिक स्थिरता पर असर पड़ेगा।
    • एक डीएफआई के लिये राजनीतिक हस्तक्षेप या ऋण धोखाधड़ी से मुक्त होना आवश्यक है, परंतु वित्तीय संस्थानों के बोर्ड पर निजी शेयरधारकों या पेशेवर प्रबंधकों का होना सुशासन सुनिश्चित करने के लिये पर्याप्त नहीं है।
    •  इसे बाहरी नियंत्रण और संतुलन की एक मज़बूत प्रणाली (जैसे-RBI द्वारा पर्यवेक्षण तथा लेखा परीक्षकों एवं रेटिंग एजेंसियों द्वारा उचित निगरानी आदि) द्वारा समर्थन प्रदान करना होगा।
  • डीएफआई की कार्यक्षमता: बाज़ार संचालित उधार पैकेज की पेशकश करके संस्थान के साथ काम करने के लिये बुनियादी ढांचे, नीतियों, वित्तपोषण और जोखिम प्रबंधन की अच्छी समझ वाले विशेषज्ञों को नियुक्त करना महत्त्वपूर्ण है।
  • डीएफआई की आवधिक समीक्षा: यह सुनिश्चित करने के लिये आवधिक समीक्षा आवश्यक है कि अर्थव्यवस्था की बदलती प्राथमिकताओं को ध्यान में रखते हुए, अपनी भूमिका में परिणामी समायोजन करके डीएफआई प्रासंगिक बना रहे।

निष्कर्ष: 

सतत् विकास के लिये अवसंरचना क्षेत्र में निवेश को बढ़ावा दिया जाना महत्त्वपूर्ण है, परंतु वर्तमान में ऋण बाज़ार में लंबे समय से व्याप्त समस्याओं को भी हल करने की आवश्यकता है जो लंबी अवधि के वित्तपोषण प्रवाह को बाधित करती हैं।

भारत जैसे विकासशील देश के लिये, यह वांछनीय है कि नया डीएफआई दीर्घकालिक विकास वित्तपोषण आवश्यकताओं को पूरा करने में सक्षम होने के लिये व्यवहार्य और टिकाऊ बना रहे।

अभ्यास प्रश्न: विकास वित्तीय संस्थान (डीएफआई) आधारभूत संरचना के लिये आवश्यक दीर्घकालिक वित्त को प्रसारित करने और उच्च आर्थिक विकास को गति देने के लिये महत्त्वपूर्ण मध्यवर्ती संस्था है। चर्चा कीजिये।

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