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भारतीय अर्थव्यवस्था

खेती का बदलता प्रारूप और चिंताजनक मुद्दे

  • 05 Mar 2018
  • 15 min read

संदर्भ

हाल ही में केंद्र सरकार द्वारा कीटनाशक प्रबंधन विधेयक, 2017 का मसौदा सार्वजनिक चर्चा के लिये प्रस्तुत किया गया है। ऐसा इसलिये किया गया है क्योंकि इस संबंध में व्यक्त अनुमानों के अनुसार, यह विधेयक कई मामलों में समाधान ढूँढ पाने में असफल रहा है। मोटेतौर पर यह वर्ष 2008 में पेश किये गए विधेयक जैसा ही है। हालाँकि विधेयक के अंतिम मसौदे में प्रस्तावित कानून का दायरा बढ़ाए जाने की बात कही गई है ताकि उत्पादन, बिक्री और संयंत्र संरक्षण रसायनों को इसके अंतर्गत शामिल किया जा सके।

कीटनाशक क्या होते हैं?

  • कीटनाशक रासायनिक या जैविक पदार्थों का ऐसा मिश्रण होता है जिनका इस्तेमाल कीड़े-मकोड़ों से होने वाले दुष्प्रभावों को कम करने, उन्हें मारने अथवा उनसे बचाने के लिये किया जाता है। 
  • जैसा कि हम सभी जानते हैं कि उर्वरक पौधों की वृद्धि में मदद करते हैं, जबकि कीटनाशक पौधों की कीटों से रक्षा के उपाय के रूप में कार्य करते हैं।

कृषि रसायन क्या होते हैं?

  • कृषि-केमिकल्स अथवा कृषि रसायन ऐसे उत्पादों की श्रेणी होती है जिसमें सभी कीटनाशक रसायनों और रासायनिक उर्वरकों को शामिल किया जाता है।
  • इनका उपयोग दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है। हालाँकि यदि एक उचित अनुपात एवं मात्रा में सही तरीके से इनका इस्तेमाल किया जाए तो ये किसानों के लिये बेहतर आय के अवसर प्रदान कर सकते हैं। 
  • वस्तुतः रासायनिक उर्वरकों एवं कीटनाशकों का उपयोग मिट्टी की प्रकृति एवं स्थानीय वातावरण पर निर्भर करता है। रासायनिक उर्वरकों के उपयोग से पहले बहुत सी सावधानियाँ बरतनी चाहिये।
  • इसके लिये मिट्टी की सही समय पर जाँच करवानी चाहिये ताकि उन तत्त्वों के विषय में सटीक जानकारी प्राप्त की जा सके जिनकी मिट्टी में कमी है। 
  • इनके उपयोग में सावधानी न बरतने का परिणाम यह हुआ है कि मिट्टी की गुणवत्ता में तो कमी आई ही साथ ही, इसका प्रभाव किसानों की आय के साथ-साथ उनके स्वास्थ्य पर भी पड़ने लगा है।
  • आमतौर पर उपयोग में लाए जाने वाले कृषि- रसायनों में डाइअमोनियम फास्फेट, यूरिया, जिंक सल्फेट, एन.पी.के., पोटैशियम सल्फेट, बोरेक्स, फेरस सल्फेट तथा मेगनीज़ सल्फेट आदि का इस्तेमाल किया जाता हैं।

Farmer

पृष्ठभूमि

  • पिछले कुछ सालों में देश के कई हिस्सों में ज़हरीले कीटनाशकों के इस्तेमाल के कारण किसानों की मौत के मामले सामने आए। इन मामलों के संदर्भ में सेंटर फॉर साइंस एंड एन्वायरन्मेंट (Centre for Science and Environment - CSE) द्वारा कीटनाशकों के उपयोग के विषय में ठोस दिशा-निर्देश तैयार करने तथा श्रेणी 1 के कई कीटनाशकों पर प्रतिबंध लगाने संबंधी मांग की गई।
  • संगठन द्वारा इस प्रकार के ज़हरीले कीटनाशकों के असुरक्षित इस्तेमाल पर रोक लगाने के लिये कीटनाशक प्रबंधन विधेयक को लाने की मांग की गई।
  • वर्ष 2008 में सरकार द्वारा कीटनाशक प्रबंधन विधेयक संसद में पेश किया गया था, लेकिन उसे पारित नहीं किया गया।
  • इस विधेयक में कीटनाशक को नए सिरे से परिभाषित किया गया है।
  • इसमें खराब गुणवत्ता, मिलावटी या हानिकारक कीटनाशकों के नियमन संबंधी मानदंड निर्धारित किये गए हैं।
  • इसके अनुसार, किसी भी कीटनाशक को तब तक पंजीकृत नहीं किया जा सकता है जब तक कि उसके फसलों अथवा उत्पादों पर पड़ने वाले प्रभाव जिन्हें खाद्य सुरक्षा एवं मानक अधिनियम 2006 के तहत निर्धारित किया गया है, स्पष्ट नहीं कर दिये जाते हैं।
  • इतना ही नहीं इसके अंतर्गत कीटनाशक निर्माताओं, वितरकों एवं खुदरा विक्रेताओं के लाइसेंस की प्रक्रिया तय करने संबंधी दिशा-निर्देशों को भी निर्धारित किया गया है।

इस विधेयक की आवश्यकता क्यों है?

  • देश में उपयोग किये जाने वाले कीटनाशकों तथा विनियामक व्यवस्था की विफलता के संदर्भ में एक उच्च स्तरीय जाँच समिति का गठन करने की आवश्यकता पर बल दिया जा रहा है।  यह उच्च स्तरीय जाँच समिति वर्ष 2003 की संयुक्त संसदीय समिति के समान होनी चाहिये, जिसने पेय पदार्थों में हानिकारक रासायनिक अवक्षेपों का पता लगाया था तथा इनकी प्रभावी सीमा (tolerance limits) का निर्धारण करने की सिफारिश की थी।
  • प्रभावी सीमा से तात्पर्य कीटनाशकों की उस मात्रा से है जिस मात्रा तक इन हानिकारक रासायनिक अवक्षेपों का मनुष्य पर कोई विपरीत प्रभाव न पड़े।
  • कीटनाशकों के उपयोग करने हेतु सलाह देने के लिये एक ‘केंद्रीय कीटनाशक बोर्ड’ का गठन किया जाना चाहिये ताकि यह बोर्ड विषाक्त रसायनों के पंजीकरण  और वितरण तथा बिक्री का दृढ़तापूर्वक निरिक्षण करे।

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विधेयक में निहित खामियाँ

  • इस विधेयक के अंतर्गत उन कीटनाशकों के इस्तेमाल पर किसी तरह की चिंता नहीं जताई गई है जिनके इस्तेमाल पर विश्व के कई देशों में प्रतिबंध लगाया गया है।
  • वर्तमान में देश में प्रथम श्रेणी के 18 सबसे खतरनाक कीटनाशकों में से सात का उत्पादन हो रहा है, जिन पर कई देशों द्वारा प्रतिबंध लगा दिया गया है।
  • जबकि भारत की कुल कीटनाशक खपत में इनकी हिस्सेदारी एक-तिहाई है। हालाँकि कुछ प्रमुख कीटनाशक प्रयोक्ता राज्य जैसे कि महाराष्ट्र और पंजाब द्वारा इनमें से कुछ कीटनाशकों के संबंध में प्रतिबंध लगाने की योजना है।
  • इसके अतिरिक्त नए कानून में उस पुराने प्रावधान को बरकरार रखा गया है जिसमें विदेशों से पेश किये गए कीटनाशकों को दो वर्ष तक के प्रारंभिक पंजीयन की अनुमति दी गई है।
  • इस संबंध में विशेषज्ञों का मत है कि दो साल की अवधि बहुत अधिक है। इससे काफी नुकसान होने की संभावना है।
  • हालाँकि इस विधेयक के अंतर्गत निहित नियमों का उल्लंघन करने वालों के लिये कड़े जुर्माने की व्यवस्था की गई है। परंतु इसमें समस्या यह है कि इससे संबद्ध प्रावधानों को स्पष्ट रूप से व्याख्यायित नहीं किया गया है। वस्तुतः इस अस्पष्ट व्याख्या के परिणामस्वरुप सारा दोषारोपण कमज़ोर मानक वाले खराब कीटनाशक निर्माताओं या उनका कारोबार करने वालों के स्थान पर किसानों पर किया जा सकता है।
  • इतना ही नहीं प्रस्तावित कानून के अंतर्गत स्वदेशी शोध एवं विकास को बढ़ावा देने के विषय में भी कोई विशेष रुचि नहीं दिखाई गई है। यही कारण है कि स्थानीय कीट,  पतंगों और बीमारियों से संबद्ध शोध के अभाव में विदेशों से निर्मित कीटनाशकों के प्रयोग पर निर्भरता निरंतर बढ़ती जा रही है। 
  • इसके अतिरिक्त विधेयक के अंतर्गत यह भी सुनिश्चित नहीं किया गया है कि खराब कीटनाशकों के कारण किसानों को होने वाले नुकसान की भरपाई कैसे की जाएगी। इसके इतर इस मुद्दे को उपरोक्त विधेयक के बजाय उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के दायरे में शामिल किया गया है।

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अन्य पक्ष

  • उल्लेखनीय है कि कपास उत्पादक अपनी फसल को कीड़ों के प्रभाव से बचाने के लिये बड़ी मात्रा में कीटनाशकों का प्रयोग करते हैं।  इस प्रकार किसान कीटनाशकों में मिलाए गए विषाक्त रसायनों के प्रभाव में आ जाते हैं, जिसके कारण प्रायः उनकी मृत्यु हो जाती है।
  • यह तथ्य कि किसान कीटनाशकों के लिये ‘कृषि विस्तार अधिकारियों’ (agricultural extension officers) की तुलना में प्रायः बेईमान एजेंटों और वाणिज्यिक दुकानों की सलाह पर विश्वास करते हैं। यह कृषि के प्रति सरकार के गैर-ज़िम्मेदराना रवैये को दर्शाता है।
  • हालाँकि, इस समस्या की जड़ें काफी गहरी हैं। भारत में कीटनाशकों के नियमन की प्रणाली काफी पुरानी है| अतः विगत वर्षों में पिछली सरकारों द्वारा किये गए बेहतरीन प्रयास भी इस दिशा में उपयोगी सिद्ध नहीं हुए।
  • वर्ष 2008 में एक नया ‘कीटनाशक प्रबंधन विधेयक’ (Pesticides Management Bill) लाया गया था, जिसे उस समय तो संसदीय स्थायी समिति द्वारा संज्ञान में ले लिया गया था परंतु यह अभी तक लंबित ही पड़ा हुआ है।
  • हालाँकि इसी दौरान इस बात के भी चिंताजनक प्रमाण मिले थे कि आज किसानों को बेचे जा रहे अधिकांश कीटनाशक नकली हैं और इन नकली कीटनाशकों की बदौलत वास्तविक उत्पाद की तुलना उत्पादन में उच्च वृद्धि दर प्राप्त की जा रही है।
  • वस्तुतः जब हम कीटनाशकों के प्रयोग से उत्पन्न उत्पादों का सेवन करते हैं तो उसके माध्यम से खतरनाक ज़हर सीधे हमारे शरीर में प्रवेश करता है, जो शरीर की कोशिकाओं में पहुँचकर लाइलाज़ बीमारियों और जानलेवा कैंसर को जन्म देता है।
  • कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार यदि कोई व्यक्ति लगातार 5 साल तक अपने भोजन में भिंडी या बैगन का सेवन करता है, तो निश्चित रूप से वह दमा का मरीज़ बन जाएगा। इतना ही नहीं उसकी वास नलिका के भी अवरुद्ध होने की संभावना बहुत अधिक बढ़ जाएगी।
  • वर्तमान में भारतीय किसानों द्वारा बहुत से रसायनों का प्रयोग किया जा रहा है जो दुनिया के कई अन्य देशों में प्रतिबंधित हैं। उदाहरण के तौर पर, डीडीटी, बीएचसी, एल्ड्रॉन, क्लोसडेन, एड्रीन,  मिथाइल पैराथियान, टोक्साफेन, हेप्टाक्लोर इत्यादि।
  • सीएसई की एक रिपोर्ट के अनुसार, महाराष्ट्र में हुई किसानों की मौत के लिये मोनोक्रोटो सीस, ऑक्सिडेमेटेन-मिथाइल,  एसेफेट और प्रोफेनोफोस जैसे कीटनाशकों को ज़िम्मेदार माना जाता है।
  • आको बता दें कि विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा मोनोक्रोटो सीस एवं ऑक्सिडेमेटेन-मिथाइल को अत्यधिक खतरनाक (वर्ग-1 का) में शामिल किया गया है।
  • इतना ही नहीं अभी तक मोनोक्रोटो सीस को 60, फोरेट को 37, ट्रायाफोस को 40 और फॉस्फैमिडोन को 49 देशों द्वारा प्रतिबंधित किया जा चुका है।

देश में मौजूद नियामक तंत्र

  • हमारे देश में कीटनाशक नियंत्रण हेतु तीन बड़ी संस्थाएँ मौजूद हैं- सेंट्रल इंसेक्टिसाइड्स बोर्ड एंड रजिस्ट्रेशन कमेटी, फूड सेफ्टी एंड स्टैंडडर्स अथारिटी आफ इंडिया तथा एग्रीकल्चर एंड प्रोसेस्ड फूड प्रोडक्टस एक्सपोर्ट डेवलपमेंट अथारिटी।
  • ये तीनों संस्थान क्रमशः कृषि, स्वास्थ्य और वाणिज्य मंत्रालयों के अंतर्गत काम करते हैं, यही कारण है कि इनके बीच में आपसी तालमेल की कमी बनी रहती है, जिसका स्पष्ट प्रभाव इनके कार्यों पर परिलक्षित होता है।
  • ऐसा इसलिये भी हो रहा है क्योंकि सरकार की प्रमुख प्राथमिकता अधिक पैदावार के साथ-साथ अधिक-से-अधिक लोगों के लिये भोजन सुनिश्चित करना है। स्पष्ट रूप से ऐसी स्थिति में कीटनाशक प्रबंधन का मुद्दा दरकिनार कर दिया जाता है।

निष्कर्ष

जैसा कि हम सभी जानते है कि कीटनाशकों के इस्तेमाल से भले ही कुछ समय के लिये कृषि उपज को बढ़ावा मलता है, लेकिन दीर्घावधि के संदर्भ में इसके इस्तेमाल बहुत अधिक खतरनाक होते है। ऐसे में सरकार को इस संबंध में एक प्रभावी नियामक बनाने पर बल देना चाहिये ताकि किसानों की आय को हानि पहुँचाए बिना उसने स्वास्थ्य के साथ-साथ उनकी आजीविका को नुकसान पहुँचने से बचाया जा सके। इसके लिये जहाँ एक ओर उक्त विधेयक में कुछ प्रभावी परिवर्तन करते हुए इसे लागू किया जाना चाहिये वहीं दूसरी ओर कृषि में खतरनाक रसायनों के इस्तेमाल की बजाय जैविक कृषि को अपनाए जाने की व्यवस्था की जानी चाहिये।

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