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एडिटोरियल

अंतर्राष्ट्रीय संबंध

ब्रिक्स: चुनौतियाँ एवं संभावनाएँ

  • 01 Jun 2022
  • 12 min read

यह एडिटोरियल 30/05/2022 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित “Building Peace and Prosperity with Strong BRICS” लेख पर आधारित है। इसमें ब्रिक्स समूह के प्रभावी कार्यकरण से संबद्ध चुनौतियों की चर्चा की गई है और सहयोग के संभावित क्षेत्रों के बारे में सुझाव दिया गया है।

संदर्भ

अपनी स्थापना के सोलह वर्ष बाद आज ब्रिक्स (BRICS) ब्राज़ील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका के बीच विन-विन (Win-Win) सहयोग के लिये एक महत्त्वपूर्ण मंच बन चुका है और अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था के विकास, वैश्विक शासन में सुधार और साझा विकास को बढ़ावा देने के लिये एक महत्त्वपूर्ण शक्ति होने की स्थिति रखता है।

  • यद्यपि यह समूह एक सीमा तक सफल रहा है, लेकिन इसके समक्ष कई चुनौतियाँ भी विद्यमान हैं, जैसे सदस्य देशों के भीतर संघर्ष या समूह की चीन-केंद्रीयता।
  • चीन द्वारा इस वर्ष ब्रिक्स की अध्यक्षता संभाले जाने के साथ भागीदार देशों के लिये भू-राजनीति, सुरक्षा, अर्थव्यवस्था एवं वित्त, लोगों के आपसी संपर्क, सार्वजनिक स्वास्थ्य और अन्य क्षेत्रों में सहयोग के साथ आगे बढ़ना और भी महत्त्वपूर्ण हो गया है।

ब्रिक्स: परिचय

  • ब्रिक्स दुनिया की अग्रणी उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं— ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका के समूहन (Brazil, Russia, India, China, and South Africa- BRICS) के लिये एक संक्षिप्त शब्द है।
    • वर्ष 2001 में ब्रिटिश अर्थशास्त्री जिम ओ'नील (Jim O’Neill ) ने ब्राजील, रूस, भारत और चीन की चार उभरती अर्थव्यवस्थाओं का वर्णन करने के लिये ‘BRIC’ शब्द गढ़ा था।
      • दिसंबर 2010 में दक्षिण अफ्रीका को भी BRIC में शामिल होने के लिये आमंत्रित किया गया, जिसके बाद समूह ने ‘BRICS’ संक्षिप्त नाम अपनाया।
    • वर्ष 2006 में BRIC के विदेश मंत्रियों की पहली बैठक के दौरान इस समूह को औपचारिक रूप दिया गया था।
  • ब्रिक्स विश्व के पाँच सबसे बड़े विकासशील देशों को एक साथ लाता है, जो वैश्विक आबादी के 41%, वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद के 24% और वैश्विक व्यापार के 16% का प्रतिनिधित्व करते हैं।
  • वर्ष 2014 में फोर्टालेज़ा, ब्राज़ील में आयोजित छठे ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में इन देशों के नेताओं ने एक समझौते पर हस्ताक्षर कर न्यू डेवलपमेंट बैंक (NDB- मुख्यालय: शंघाई, चीन) की स्थापना का मार्ग प्रशस्त किया।
    • उन्होंने सदस्य देशों को अल्पकालिक तरलता सहायता (Short-term Liquidity Support) प्रदान करने के लिये ‘ब्रिक्स आकस्मिक आरक्षित व्यवस्था’ (BRICS Contingent Reserve Arrangement) पर भी हस्ताक्षर किये।

ब्रिक्स के अंतर्गत संलग्नता को सुदृढ़ क्यों किया जाना चाहिये?

  • आज विश्व अस्थिरता, अनिश्चितता और असुरक्षा के बढ़ते कारकों का सामना कर रहा है।
    • ब्रिक्स देशों के लिये वैश्विक सुरक्षा और विकास से संबंधित कई महत्त्वपूर्ण मुद्दों पर आम सहमति और परिणामों तक पहुँचना बेहद आवश्यक है।
  • एक मज़बूत ब्रिक्स चुनौतियों का सामना करने के लिये दृढ़ विश्वास के साथ एकजुटता और सहयोग को मजबूत करेगा तथा शांति एवं विकास को बढ़ावा देने के लिये वास्तविक कार्रवाई कर सकेगा, जबकि निष्पक्षता एवं न्याय को बनाए रखेगा। ब्रिक्स वैश्विक विकास को और मज़बूती प्रदान कर सकेगा।

ब्रिक्स से संबद्ध चुनौतियाँ

  • विभिन्न मुद्दों का संकट: समूह ने पूर्वी लद्दाख में चीन की आक्रामकता जैसे संघर्षों का सामना किया है जिसने भारत-चीन संबंधों को कई दशकों में अपने सबसे निचले स्तर पर ला दिया है।
    • समूह के समक्ष पश्चिम के साथ चीन एवं रूस के तनावपूर्ण संबंधों और ब्राजील एवं दक्षिण अफ्रीका में गंभीर आंतरिक चुनौतियों की वास्तविकता भी मौजूद है।
    • दूसरी ओर, कोविड-19 के कारण वैश्विक स्तर पर चीन की छवि भी खराब हुई है।
  • विषमता/विविधता: आलोचकों द्वारा यह दावा किया जाता है कि ब्रिक्स राष्ट्रों की विविधता (सदस्य देशों की परिवर्तनशील/विविध प्रकृति), जहाँ उनके अपने-अपने हित हैं, समूह की व्यवहार्यता के लिये खतरा है।
  • चीन-केंद्रित स्थिति: ब्रिक्स समूह के सभी देश एक-दूसरे की तुलना में चीन के साथ अधिक व्यापार करते हैं, इसलिये इस पर चीन के हित को बढ़ावा देने वाला मंच होने का आरोप लगाया जाता है। चीन के साथ व्यापार घाटे को संतुलित करना अन्य भागीदार देशों के लिये एक बड़ी चुनौती है।
  • प्रभावकारिता की कमी: पाँच शक्तियों का यह गठबंधन सफल तो रहा है, लेकिन एक सीमा तक ही। चीन के वृहत आर्थिक उभार ने ब्रिक्स के भीतर एक गंभीर असंतुलन पैदा किया है।
    • इसके अलावा, समूह ने अपने एजेंडे के लिये इष्टतम समर्थन हासिल करने हेतु ‘ग्लोबल साउथ’ की सहायता करने के लिये पर्याप्त प्रयास नहीं किया है।

ब्रिक्स के अंदर सहयोग के संभावित क्षेत्र कौन-से हो सकते हैं?

  • समूह के अंदर सहयोग: ब्रिक्स को अपनी चीन-केंद्रित स्थिति का त्याग करने और बेहतर आंतरिक संतुलन बनाने की आवश्यकता है जो विविधीकरण की तत्काल आवश्यकता से प्रेरित हो।
    • अगले दशकों में ब्रिक्स के प्रासंगिक बने रहने के लिये इसके प्रत्येक सदस्य को अवसरों और अंतर्निहित सीमाओं का वास्तविक मूल्यांकन करना चाहिये।
    • समूह को अधिक स्तरों पर और व्यापक दायरे में 'ब्रिक्स प्लस' सहयोग का भी पता लगाना चाहिये।
      • इससे ब्रिक्स देशों के प्रतिनिधित्व और प्रभाव में वृद्धि होगी और समूह विश्व शांति एवं विकास में अधिक योगदान कर सकेगा।
  • ब्रिक्स देशों को सार्वभौमिक सुरक्षा का निर्माता होना चाहिये। दूसरों की कीमत पर अपनी सुरक्षा की तलाश करना केवल नए तनाव और जोखिम ही पैदा करेगा।
    • प्रत्येक देश की सुरक्षा का सम्मान करना और गारंटी देना, संघर्ष को संवाद एवं साझेदारी से प्रतिस्थापित करना और एक संतुलित, प्रभावी और संवहनीय सुरक्षा संरचना के निर्माण को बढ़ावा देना महत्त्वपूर्ण है।
    • इसके साथ ही, राजनीतिक परस्पर विश्वास और सुरक्षा सहयोग को मजबूत करना, प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय मुद्दों पर संचार एवं समन्वय बनाए रखना और एक-दूसरे के मूल हितों और प्रमुख चिंताओं को समायोजित करना भी उतना ही महत्त्वपूर्ण है।
  • आर्थिक हितों की सुरक्षा: ब्रिक्स देशों को साझा विकास का योगदानकर्ता होना चाहिये।
    • वैश्वीकरण के बढ़ते ज्वार और एकतरफा प्रतिबंधों में वृद्धि की स्थिति में ब्रिक्स देशों को आपूर्ति शृंखला, ऊर्जा, खाद्य और वित्तीय प्रत्यास्थता में पारस्परिक रूप से लाभकारी सहयोग की वृद्धि करनी चाहिये।
    • ब्रिक्स के लिये ओईसीडी (OECD) की तर्ज पर एक संस्थागत अनुसंधान विंग विकसित करना उपयोगी होगा, जो ऐसे समाधान पेश करे जो विकासशील विश्व के लिये बेहतर रूप से अनुकूल हों।
  • सार्वजनिक स्वास्थ्य शासन: से विकासशील देशों के पक्ष में वैश्विक स्वास्थ्य शासन के विकास को बढ़ावा देना चाहिये ।
    • भारत का ‘एक पृथ्वी, एक स्वास्थ्य’ (‘One Earth, One Health’) का दृष्टिकोण सार्वजनिक स्वास्थ्य पर बहुपक्षीय सहयोग में योगदान देता है।
    • ब्रिक्स देशों को ‘ब्रिक्स वैक्सीन अनुसंधान और विकास केंद्र’ का बेहतर उपयोग करना चाहिये, वृहत पैमाने पर संक्रामक रोगों की रोकथाम के लिये ‘ब्रिक्स पूर्व-चेतावनी तंत्र’ स्थापित करना चाहिये और वैश्विक स्वास्थ्य शासन सहयोग के लिये उच्च गुणवत्तायुक्त सार्वजनिक कल्याण प्रदान करना चाहिये।
  • एक वैश्विक शासन दर्शन (Global Governance Philosophy): वैश्विक चुनौतियाँ लगातार एक के बाद एक उभर रही हैं। इन चुनौतियों से निपटने के लिये वैश्विक कार्रवाइयों के बीच समन्वय की आवश्यकता है।
    • अंतर्राष्ट्रीय प्रणाली की सुरक्षा करना आवश्यक है, जहाँ यह सुनिश्चित किया जाए कि अंतर्राष्ट्रीय मामलों में सभी की भागीदारी हो, अंतर्राष्ट्रीय नियम सभी द्वारा तैयार किये जाते हैं और विकास के परिणाम सभी द्वारा साझा किये जाते हैं।
    • ब्रिक्स को एक वैश्विक शासन दर्शन को अपनाना चाहिये जो व्यापक परामर्श, संयुक्त योगदान और साझा लाभों पर बल देता हो, उभरते बाज़ारों एवं विकासशील देशों के साथ एकता एवं सहयोग की वृद्धि करता हो और वैश्विक शासन में अभिव्यक्ति की वृद्धि करता हो।

अभ्यास प्रश्न: ‘‘विश्व आज अस्थिरता, अनिश्चितता और असुरक्षा के बढ़ते कारकों का सामना कर रहा है। ब्रिक्स देशों के लिये वैश्विक सुरक्षा और विकास से संबंधित विभिन्न प्रमुख विषयों पर एक आम सहमति तक पहुँचना अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।’’ उन संभावित क्षेत्रों की चर्चा कीजिये जहाँ ब्रिक्स देश सहयोग की वृद्धि कर सकते हैं।

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