लखनऊ शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 23 दिसंबर से शुरू :   अभी कॉल करें
ध्यान दें:



एडिटोरियल

अंतर्राष्ट्रीय संबंध

उचित नहीं है पीछा करने को ‘सामान्य यौन अपराध’ मानना

  • 14 Aug 2017
  • 7 min read

संदर्भ

  • हरियाणा बीजेपी अध्यक्ष सुभाष बराला के बेटे विकास बराला और उसके दोस्त आशीष द्वारा की गई कथित छेड़छाड़ और तुरत-फुरत में मिली जमानत ने महिलाओं की सुरक्षा के लिये बनाए गए एक कानून में मौजूद कमियों को सतह पर ला दिया है।
  • विदित हो कि आशीष बराला को पीछा करने और छेड़छाड़ करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था, लेकिन उसे थाने में ही जमानत दे दी गई।
  • दरअसल, आशीष बराला को जमानत इसलिये मिल गई क्योंकि वर्ष 2013 में महिला का पीछा किये जाने को पूर्णरूपेण गैर-जमानती अपराध बनाने के केंद्र सरकार के कदम पर रोक लगा दी गई थी।
  • वर्तमान स्थिति में महिला का पीछा करने का अपराध पहली बार करने पर "जमानत" मिल सकती है। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार जब से यह प्रावधान किया है, तब से लेकर अब तक महिलाओं का पीछा किये जाने के मामलों में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।
  • यह चिंतनीय है कि हमारा समाज और हमारा कानून दोनों ही महिलाओं का पीछा करने के अपराध को लेकर उतने गंभीर नहीं हैं।

पीछा करने को कैसे बनाया गया एक गैर-जमानती अपराध ?

  • वर्ष 2012 में दिल्ली में सामूहिक बलात्कार के बाद बनाई गई वर्मा समिति ने सिफारिश की थी कि इसे एक गैर-जमानती अपराध माना जाए जिसके लिये एक से तीन साल तक जेल की सज़ा मिल सके।
  • तत्कालीन यूपीए सरकार ने इस सिफारिश को स्वीकार कर लिया था और स्टैंडिंग कमेटी ने भी इसे अनुमोदित कर दिया था। तत्पश्चात वर्ष 2012 में “क्रिमिनल लॉ अमेंडमेंट बिल” लागू किया गया था।
  • हालाँकि, बाद में कुछ लोगों ने प्रावधान के विरोध में आवाज़ उठाई। उनका कहना था कि पुरुषों के खिलाफ इस कानून का दुरुपयोग किया जा सकता है।
  • वर्तमान स्थिति में महिला का पीछा करने का अपराध पहली बार करने पर "जमानत" मिल सकती है। यानी अभियुक्त को जमानत लेने के लिये कोर्ट में पेश करने की ज़रूरत नहीं है। उसे पुलिस थाने से ही रिहा किया जा सकता है। इसके बाद दोबारा यह गलती करने पर अपराध 'गैर-जमानती' होगा।

समस्याएँ क्या हैं ?

  • पीछा करने को तो गैर-जमानती अपराध बना दिया गया लेकिन अभी भी कई मोर्चों पर सुधार की ज़रूरत है। वर्मा समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि भारतीय दंड संहिता की धारा 354-डी किसी महिला का प्रत्यक्ष रूप से पीछा करने के साथ-साथ उसकी ऑनलाइन गतिविधियों पर नज़र रखने को आपराधिक गतिविधि मानती है।
  • लेकिन धारा 354-डी के कुछ सब-सेक्शन यानी उप-धाराएँ भी हैं, जहाँ मामला पेचीदा हो जाता है। धारा 354-डी की उपधारा 1 के तहत पीछा करने वाले का इरादा चाहे कुछ भी हो यदि महिला की उस व्यक्ति में कोई रुचि नहीं है तो पीछा करने को अपराध मानकर उस व्यक्ति पर कार्रवाई की जाएगी।
  • वहीं धारा 354-डी की उपधारा 2 के तहत किसी महिला का ऑनलाइन पीछा किया जाना, आपराधिक गतिविधि मानी जाती है। वर्मा समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि किसी महिला के ऊपर ऑनलाइन निगरानी रखने को उसका पीछा करना तभी माना जाएगा जब पीड़िता को हिंसा या मानसिक अशांति का भय हो।
  • दरअसल, मानसिक अशांति या हिंसा के डर को कैसे परिभाषित किया जाएगा यह अभी भी समाज के विवेक पर निर्भर करता है और यह चिंतित करने वाला है क्योंकि हमारा समाज पीछा करने और छेड़खानी या फिर महिलाओं पर फब्तियाँ कसने को मामूली अपराध मानता है।
  • साथ ही, धारा 354-डी के तीन अपवाद भी हैं, इन अपवादों की स्थिति में पीछा करने को अपराध नहीं माना जाता है। एव अपवाद इस प्रकार हैं: 

→ यदि किसी महिला का पीछा किसी अधिकार प्राप्त व्यक्ति द्वारा अपराध का पता लगाने या रोकथाम के लिये किया जा रहा हो।
→ यदि महिला का पीछा किसी कानून के तहत किया जा रहा हो।
→ किन्हीं परिस्थितियों में यदि पीछा करना उचित और न्यायसंगत हो।

  • पुलिस प्रशासन का भी व्यक्ति हमारे बीच का ही होता है अतः पीछा करने को सामान्य अपराध मानने वाले समाज में धारा 354-डी के इन तीन अपवादों के अनुचित इस्तेमाल की पूरी संभावना है।
  • यह इस बात का भी सूचक है कि निर्भया मामले के बाद जनसामान्य के भारी दबाव के बीच महिलाओं का पीछा किये जाने को रोकने के लिये बनाए गए कानूनों को पर्याप्त विचार-विमर्श के बिना ही लागू कर दिया गया है।

क्या हो आगे का रास्ता ?

  • महिलाओं का पीछा करना, उनपर फब्तियाँ कसना और उनसे छेड़खानी करना  गंभीर अपराध नहीं माना जाता है, ऐसे मामलों में कड़ी सज़ा नहीं मिलती जिससे बलात्कार और एसिड अटैक जैसे अपराधों को अंजाम देने वाले लोगों को  प्रोत्साहन मिलता है।
  • पीछा करने वाले अपराधियों को कड़ी से कड़ी सज़ा मिल सके इसके लिये विधायिका को संबंधित कानूनों में अपेक्षित सुधार करना होगा।
  • यह भी सत्य है कि कोई भी कानून तब तक कारगर नहीं हो सकता जब तक कि समाज इसके लिये तैयार न हो। लोगों को समझना चाहिये कि महिलाओं का पीछा करना और उन्हें परेशान करना ‘कूल’ नहीं बल्कि यह एक गंभीर अपराध है।

निष्कर्ष
कहा जाता है कि ‘प्रिवेंशन इज़ बेटर देन द क्योर’ यानी बचाव किसी भी इलाज से बेहतर है। स्टॉकिंग (STALKING) यानी महिलाओं का पीछा करने को यदि रोका गया तो बलात्कार और एसिड अटैक जैसे गंभीर अपराधों से काफी हद तक निजात मिल सकती है। महिलाओं की सुरक्षा के लिये सरकार और समाज दोनों को सम्मिलित प्रयास करने होंगे और इसकी शुरुआत स्टॉकिंग के विरुद्ध एक मज़बूत कानून के द्वारा की जानी चाहिये।

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2