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शासन व्यवस्था

विश्व पर्यावास दिवस 2020

  • 07 Oct 2020
  • 8 min read

प्रिलिम्स के लिये

विश्‍व पर्यावास दिवस

मेन्स के लिये

महामारी और विश्व पर्यावास दिवस, पर्यावास के मामले में वैश्विक और भारतीय स्थिति

चर्चा में क्यों?

5 अक्तूबर को विश्व भर में विश्‍व पर्यावास दिवस (World Habitat Day) 2020 का आयोजन किया गया और इस वर्ष इस दिवस की मेज़बानी इंडोनेशिया के सुरबाया शहर द्वारा की गई। 

प्रमुख बिंदु

  • विश्‍व पर्यावास दिवस
    • संयुक्त राष्ट्र (United Nations) ने प्रत्येक वर्ष अक्तूबर माह के पहले सोमवार को विश्‍व पर्यावास दिवस (5 अक्तूबर, 2020) के रूप में नामित किया है।
    • यह दिवस मुख्य तौर पर मानव बस्तियों की स्थिति और पर्याप्त पर्यावास के मानवीय अधिकार पर ध्यान केंद्रित करता है। 
    • इस दिवस का उद्देश्य वर्तमान पीढ़ी को यह याद दिलाना है कि वे भावी पीढ़ी के पर्यावास (Habitat) हेतु उत्तरदायी हैं। 
    • पृष्ठभूमि: गौरतलब है कि वर्ष 1985 में संयुक्त राष्ट्र ने प्रत्येक वर्ष अक्तूबर माह के पहले सोमवार को विश्व पर्यावास दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की थी। 
      • पहली बार वर्ष 1986 में विश्व पर्यावास दिवस मनाया गया था, जिसकी थीम ‘शेल्टर इज़ माई राईट’ (Shelter is My Right) रखी गई थी।
      • ध्यातव्य है कि प्रत्येक वर्ष विश्व के अलग-अलग शहरों द्वारा इसकी मेज़बानी की जाती है और पहले विश्व पर्यावास दिवस की मेज़बानी केन्या की राजधानी नैरोबी द्वारा की गई थी।
  • विश्व पर्यावास दिवस 2020
    • विश्व पर्यावास दिवस 2020 की थीम ‘सभी के लिये आवास: एक बेहतर शहरी भविष्य’ (Housing for All- A better Urban Future) है और इस वर्ष इस दिवस की मेज़बानी इंडोनेशिया के सुरबाया (Surabaya) शहर द्वारा की जाएगी।

मौजूदा परिस्थिति में विश्व पर्यावास दिवस के मायने

  • वर्तमान समय में आवास का होना काफी महत्त्वपूर्ण हो गया है, महामारी के प्रसार के साथ ही एक सामान्य उपाय के तौर पर लोगों को अपने घर पर रहने के लिये कहा जा रहा है, किंतु यह सामान्य उपाय उन लोगों के लिये संभव नहीं है, जिनके पास न तो स्वयं का आवास है और न ही इतने पैसे हैं कि वे किराये पर एक घर प्राप्त कर सकें।
  • आँकड़ों के विश्लेषण से पता चलता है कि महामारी का प्रकोप उन इलाकों में सबसे अधिक देखने को मिला है, जहाँ लोगों के पास आवास की व्यवस्था नहीं है और जहाँ लोग असमानताओं तथा गरीबी का सामना कर रहे हैं।
  • ऐसे इलाकों में रहने वाले लोगों को प्रायः वहाँ के स्थानीय अधिकारियों द्वारा मान्यता नहीं दी जाती है और न ही उनके लिये किसी भी प्रकार की विशेष व्यवस्था की जाती है, ऐसे लोगों को विशेषतः संकट की स्थिति में स्थानांतरण और पलायन का सामना करना पड़ता है। 
    • ध्यातव्य है कि भारत में भी महामारी के शुरुआती दौर में काफी अधिक रिवर्स माइग्रेशन (Reverse Migration) देखा गया था यानी काफी बड़ी संख्या में लोग शहरों से वापस अपने गाँव और कस्बों की ओर लौटे थे। हालाँकि इनके संबंध में सरकार के पास कोई भी आधिकारिक आँकड़ा उपलब्ध नहीं है।

आवास के मामले में वैश्विक स्थिति

  • संयुक्त राष्ट्र (UN) के आँकड़ों के अनुसार, वर्तमान में विश्व की 55 प्रतिशत जनसंख्या यानी लगभग 4.2 बिलियन लोग शहरों में रहते हैं और यह आँकड़ा धीरे-धीरे बढ़ता जा रहा है।
    • अनुमानानुसार, वर्ष 2050 तक शहरी आबादी अपने वर्तमान आकार से दोगुनी हो जाएगी और विश्व के 10 लोगों में से लगभग 7 लोग शहरों में निवास करेंगे। 
  • महामारी की शुरुआत से पूर्व ही अनुमानित 1.8 बिलियन लोग झोपड़पट्टियों, अनौपचारिक बस्तियों या बेघर के रूप में जीवनयापन कर रहे थे तथा महामारी के बाद इनकी संख्या में और अधिक वृद्धि होने का अनुमान है।
  • विश्व में तकरीबन 3 बिलियन लोगों के पास हाथ धोने के लिये आवश्यक बुनियादी सुविधाओं का अभाव है।

भारतीय परिदृश्य

  • आँकड़ों के अनुसार, वर्ष 2001 तक भारत की आबादी का तकरीबन 27.81 प्रतिशत हिस्सा शहरों में रहता था। वर्ष 2011 की जनगणना में यह संख्या 31.16 प्रतिशत (यानी तकरीबन 377 मिलियन) हो गई और वर्तमान में ( 2018 में) यह 34 प्रतिशत के आस-पास है।
  • वर्ष 2001 की जनगणना में शहर-कस्बों की कुल संख्या 5161 थी, जो कि वर्ष 2011 में बढ़कर 7936 हो गई थी।
  • कई अन्य विकासशील देशों की तरह भारत में भी शहरी आबादी में वृद्धि और योजनाबद्ध आवास प्रबंधन की कमी ने तकरीबन 26-37 मिलियन आबादी (कुल शहरी आबादी का 33-47 प्रतिशत) को झोपड़पट्टियों और अनौपचारिक बस्तियों में रहने के लिये मजबूर कर दिया है।

संबंधित चुनौतियाँ

  • बुनियादी सुविधाओं का अभाव: भारतीय शहरों खासतौर पर झोपड़पट्टियों और अनौपचारिक बस्तियों में स्वच्छ पेयजल एवं साफ-सफाई जैसी बुनियादी सुविधाओं का अभाव देखा जाता है, जिसके कारण इन क्षेत्रों में संक्रमण फैलने का खतरा काफी अधिक रहता है।
  • सार्वजनिक स्वास्थ्य अवसंरचना का अभाव: पिछले कुछ दशकों के दौरान शहरी क्षेत्र के जनसंख्या घनत्व में भारी वृद्धि के बावजूद सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा के बुनियादी ढाँचे में कोई विशेष सुधार नहीं किया जा सका है।
  • प्रदूषण की समस्या: बड़ी संख्या में वाहनों के आवागमन और निर्माण कार्यों के परिणामस्वरूप शहरी क्षेत्रों में वायु प्रदूषण लगातार बढ़ रहा है। राजधानी दिल्ली इसका प्रमुख उदाहरण है।

आगे की राह

  • विश्व के सभी शहर वैश्विक अर्थव्यवस्था में तकरीबन 80 प्रतिशत का योगदान देते हैं, इस प्रकार यदि शहरों की उत्पादकता में वृद्धि के प्रयास किये जाएँ और इसे अच्छी तरह से प्रबंधित किया जाए तो शहरीकरण सतत् विकास में उल्लेखनीय योगदान दे सकता है।
  • झोपड़पट्टियों और अनौपचारिक बस्तियों में रहने वाले लोगों तथा प्रवासियों की पहचान करना, उन्हें बुनियादी सुविधाएँ प्रदान करने की दिशा में पहला कदम हो सकता है। 
  • केंद्र सरकार और राज्य सरकारों को ग्रामीण-शहरी विभाजन और सामाजिक-आर्थिक असमानता जैसे गंभीर मुद्दों को संबोधित करना होगा तथा संयुक्त रूप से इन्हें दूर करने के उपाय करने होंगे।

स्रोत: पी.आई.बी

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