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डेली न्यूज़

भारतीय अर्थव्यवस्था

हरित नौकरियों के लिये हरित कौशल का महत्त्व

  • 02 Jun 2018
  • 6 min read

संदर्भ 

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने जलवायु संरक्षण के प्रयासों को नौकरियों पर नकारात्मक प्रभाव डालने वाला कदम करार दिया था। लेकिन, अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (International Labour Organization) ने वैश्विक रोजगार बाजार पर जारी की अपनी वार्षिक रिपोर्ट में बताया है कि पेरिस समझौते के 2 डिग्री सेल्सियस के लक्ष्य को प्राप्त करने से 2030 तक दुनिया भर में 18 मिलियन नौकरियों की शुद्ध वृद्धि होगी।

प्रमुख बिंदु

  •  ‘वर्ल्ड एम्प्लॉयमेंट एंड सोशल आउटलुक 2018-ग्रीनिंग विद जॉब्स’ रिपोर्ट में दर्शाया गया है कि भारत के 2022 तक नवीकरणीय संसाधनों से 175 GW विद्युत उत्पादन के लक्ष्य को हासिल करने के लिये सौर और पवन ऊर्जा क्षेत्रों में 300,000 से अधिक लोगों को नियोजित किया जाएगा। हालाँकि, इस लक्ष्य की प्राप्ति हेतु हरित कौशल प्रशिक्षण कार्यक्रमों की स्थापना करने की आवश्यकता होगी।
  • भारत सौर, पवन और बायोमास के माध्यम से नवीकरणीय ऊर्जा के उत्पादन वाले शीर्ष 10 देशों में से एक है।
  • हालाँकि, मौजूदा कौशल विसंगति न केवल भविष्य की संवृद्धि में बाधक बन सकती है, बल्कि गरीबों को इस संवृद्धि से बाहर भी कर सकती है।
  • इस हरित कौशल संबंधी अंतराल को समाप्त करना अनिवार्य रूप से आवश्यक है, ताकि मजबूत पर्यावरणीय कार्यक्रमों की शुरुआत की जा सके।
  • प्रारंभिक कदम के रूप में आवश्यक कौशल की पहचान करनी होगी। हरित नौकरियों को दो प्रकार से सृजित किया जा सकता है। प्रथम, कार्बन-आधारित उत्पादन वाले उद्योगों में नौकरियों की संख्या में गिरावट लाना। दूसरा, कामगारों के कौशल में परिवर्तन से श्रमिकों को कृषि एवं अवसंरचना जैसे क्षेत्रों में काम करने का कौशल प्रदान किया जा सकता है।
  • पहले वाले तरीके में सामाजिक-आर्थिक व्यवधान का प्रबंधन और दूसरे वाले तरीके में उद्योग की मांग के साथ समन्वय स्थापित करने के लिये मात्रात्मक और गुणात्मक रोजगार आँकड़ों की आवश्यकता होगी।
  • उदाहरणस्वरूप, दक्षिण अफ्रीका नियमित रूप से उन व्यवसायों की एक सूची प्रकाशित करता है जो उच्च मांग में हैं। इसमें हरित क्षेत्र भी शामिल है।
  • फ्राँस में हरित अर्थव्यवस्था में नौकरियों और कौशल आकलन हेतु एक समर्पित राष्ट्रीय वेधशाला है, जो नियमित रूप से हरित अर्थव्यवस्था (green economy) में रोजगार रुझान का आकलन करती है।
  • हालाँकि, भारत में नौकरियों के सृजन हेतु तेज हुई बहसों में विश्वसनीय और सामयिक डाटा के अभाव को रेखांकित किया गया है।
  • अगले चरण के अंतर्गत औपचारिक शिक्षा और प्रशिक्षण कार्यक्रमों में हरित कौशल का समावेशन करना होगा। 
  • सरकार द्वारा विनियमित टीवीईटी कार्यक्रम (Technical and vocational education and training-Tvet) उद्योग की मांग के अनुरूप अपने पाठ्यक्रम को संरेखित करने में विफल रहे हैं। इस कारण स्नातक लोग अच्छी नौकरियों से वंचित रह जा रहे हैं। 
  • यह एक दीर्घकालिक समस्या है, जो हरित नौकरियों के मामले में विशेष रूप से हानिकारक है। क्योंकि वर्तमान समय में ऐसी नौकरियों की मांग तेजी से बढ़ रही है।
  • सरकार की यह विफलता लगभग निश्चित थी, क्योंकि वर्तमान में लगभग 17 मंत्रालय शिक्षा, व्यावसायिक और तकनीकी प्रशिक्षण और कौशल विकास में लगे हुए हैं। 
  • उदाहरणस्वरूप, 2015 में लॉन्च किया गया ‘स्किल इंडिया मिशन’ पटरी से उतर चुका है, क्योंकि यह खराब प्रबंधन और योग्य प्रशिक्षकों की कमी से जूझ रहा है।
  • पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने हाल ही में एक ग्रीन स्किल डेवलपमेंट प्रोग्राम (जीएसडीपी) लॉन्च किया किया, जिसका लक्ष्य अगले तीन वर्षों में पर्यावरण और वन क्षेत्रों में 550,000 से अधिक लोगों को प्रशिक्षित करना है। यदि इस कार्यक्रम को सफल बनाना है, तो अतीत की विफलताओं से सीख लेनी होंगी।  
  • उन सीखों में से एक सीख निजी क्षेत्र के साथ साझेदारी के महत्त्व को पहचानने की है।
  • फरवरी 2018 तक भारत में कुल स्थापित नवीकरणीय विद्युत ऊर्जा क्षमता 65 GW थी, जबकि देश का लक्ष्य 2022 तक 175 GW का उत्पादन करना है। यदि सरकार वास्तव में इस लक्ष्य तक पहुँचना चाहती है, तो उसे हरित ऊर्जा संबंधी बुनियादी ढाँचे पर ध्यान केंद्रित करना होगा।
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