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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

इंसेफलाइटिस (मस्तिष्क ज्वर) के नए कारक की खोज

  • 29 Dec 2017
  • 6 min read

चर्चा में क्यों?
भारतीय पत्रिका ‘करेंट साइंस’ में ओडिशा के मलकानगिरी ज़िले में पाई जाने वाली मस्तिष्क सूजन बीमारी इंसेफलाइटिस के लिये एक नया और अप्रत्याशित कारण बताया गया है।

प्रमुख बिंदु 

  • कई सालों से इंसेफलाइटिस की आवर्ती महामारी का कारण जापानी इंसेफलाइटिस (जेई) वायरस को माना जाता रहा है।
  • अब शोधकर्त्ताओं का कहना है कि इस बीमारी का कारण इस क्षेत्र में स्वतंत्र रूप से उगने वाली ‘बडा चकुंडा’ (Bada Chakunda) नामक जंगली सेम (Wild Bean) का उपभोग है।
  • कई प्राकृतिक विषाक्त पदार्थों की तरह इस सेम में पाए जाने वाले एन्थ्राक्वीनोन (Anthraquinone) स्वस्थ लोगों को नुकसान नहीं पहुँचाते, लेकिन अल्पपोषित बच्चों के यकृत, हृदय और मस्तिष्क पर घातक दुष्प्रभाव पैदा करते हैं।
  • एन्थ्राक्वीनोन्स कुछ पौधों में पाए जाने वाले कार्बनिक यौगिक हैं, जिनका उपयोग डाईज़, पिगमेंट्स और औषधीय प्रयोजनों में किया जाता है।

इंसेफलाइटिस क्या है?

  • इंसेफलाइटिस को प्राय: जापानी बुखार भी कहा जाता है, क्योंकि यह जापानी इंसेफलाइटिस (जेई) नामक वायरस के कारण होता है।
  • यह एक प्राणघातक संक्रामक बीमारी है, जो फ्लैविवायरस के संक्रमण से होती है। यह मुख्य रूप से बच्चों को प्रभावित करती है, जिनकी प्रतिरक्षा प्रणाली वयस्कों की तुलना में काफी कमज़ोर होती है। 
  • क्यूलेक्स मच्छर इस बीमारी का वाहक होता है। सूअर तथा जंगली पक्षी मस्तिष्क ज्वर के विषाणु के स्रोत होते हैं। 
  • केंद्रीय संचारी रोग नियंत्रण कार्यक्रम (एनवीबीडीसीपी) निदेशालय के आँकड़ों के अनुसार उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, असम और बिहार समेत 14 राज्यों में इंसेफलाइटिस का प्रभाव है, लेकिन पश्चिम बंगाल, असम, बिहार तथा उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल में इस बीमारी का प्रकोप काफी अधिक है।

नए कारक की खोज के कारण 

  • राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र (National Centre for Disease Control-NCDC) और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी (National Institute of Virology) जैसी जाँच एजेंसियाँ ​​केवल जेई पर ध्यान केंद्रित कर रही हैं। 
  • नि:संदेह जेई दशकों तक भारत में इन्सेफेलाइटिस का सबसे बड़ा कारण था, लेकिन जेई के टीकाकरण की दर बढ़ने के साथ ही इन्सेफेलाइटिस के कई अन्य कारण जैसे डेंगू, स्क्रब टायफस, हर्पीज़ सिम्प्लेक्स और वेस्ट नाइल (West Nile) जैसे विषाणु आगे निकल गए।
  • एक और समस्या इन्सेफेलाइटिस की सरकार को रिपोर्टिंग के प्रारूप की है। 
  • इसके तहत इन्सेफेलाइटिस के मामले की जेई के रूप में पुष्टि नहीं होने पर चिकित्सक इसे एक्यूट इन्सेफेलाइटिस सिंड्रोम (Acute Encephalitis Syndrome-AES) नाम देते है जो कि अलग-अलग अनामित (Unnamed) रोगों के लिये प्रयुक्त एक अप्रचलित और अस्थायी संकेत है। इससे बीमारी के वास्तविक कारण का पता लगाने के प्रयास हतोत्साहित होते है। 

यह निष्कर्ष उत्तर प्रदेश के सहारनपुर ज़िले में प्राप्त शोध परिणामों से मिलता-जुलता सा है, जहाँ बार-बार आने वाले इंसेफलाइटिस के लिये इस बीन पर आशंका जताई गई थी। हालाँकि, इस निष्कर्ष  की पुष्टि करने के लिये  अधिक डेटा की आवश्यकता है, किंतु यह स्पष्ट है कि मलकानगिरी का संकट जेई वायरस के कारण नहीं था।

नए कारक की खोज के निहितार्थ

  • यह केवल ऐसी जाँच की एक श्रृंखला में नवीनतम है, जिसमें जेई के संदिग्ध कारक कुछ और ही पाए गए हैं, जैसे: तीन दशकों से पीड़ित उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में इस  बीमारी का मूल कारण स्क्रब टाइफ़स  (scrub typhus) को पाया गया, जबकि बिहार के मुजफ्फरपुर में इस महामारी का संबंध लीची (Lychee) के उपभोग से जुड़ा था।
  • इन सभी मामलों में जेई पर संदेह के चलते महामारी विज्ञान और लक्षणों का सही मिलान नहीं हुआ और इसके कारकों की खोज में देरी हुई। 
  • अत: आवश्यकता है कि भारतीय जाँचकर्त्ता इन्सेफेलाइटिस के बारे में अपनी समझ को अद्यतन करें और इन प्रकोपों को व्यापक नज़रिये से देखें, ताकि सभी मरीजों को इलाज़ उपलब्ध कराया जा सके।
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