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डेली न्यूज़

भारतीय अर्थव्यवस्था

सस्टेनेबल फैशन

  • 10 Jun 2022
  • 9 min read

प्रिलिम्स के लिये:

'स्लो एन्वायरनमेंट’ आंदोलन, संयुक्त राष्ट्र, सतत् विकास लक्ष्य (SDG)। 

मेन्स के लिये:

स्वस्थ और समावेशी वातावरण के लिये सस्टेनेबल फैशन की आवश्यकता। 

चर्चा में क्यों? 

संयुक्त राष्ट्र का सतत् विकास लक्ष्य 12 (संवहनीय खपत और उत्पादन) स्लो फैशन' आंदोलन के चलते एक महत्त्वपूर्ण मुद्दा बन गया है, यह विशेषतः वर्ष 2013 में बांग्लादेश में ‘राणा प्लाज़ा त्रासदी' के बाद से अधिक महत्त्वपूर्ण विषय बनकर उभरा है। 

  • 24 अप्रैल, 2013 को बांग्लादेश के ढाका में राणा प्लाज़ा की इमारत के ढहने से (जिसमें पाँच कपड़ा कारखाने थे) कम-से-कम 1,132 लोग मारे गए और 2,500 से अधिक घायल हो गए। इसने अंतर्राष्ट्रीय समुदाय एवं उपभोक्ताओं का ध्यान श्रमिकों की स्थिति और ‘सस्टनेबल फैशन’ की ओर दिलाया। 

स्लो फैशन: 

  • स्लो फैशन कपड़ों के उत्पादन के लिये एक दृष्टिकोण है जो आपूर्ति शृंखला के सभी पहलुओं को ध्यान में रखता है और ऐसा करने का उद्देश्य लोगों, पर्यावरण एवं जानवरों का सम्मान करना है। 
  • इसका मतलब यह भी है कि डिज़ाइन प्रक्रिया पर अधिक समय देना तथा यह सुनिश्चित करना कि परिधान का प्रत्येक भाग गुणवत्तापूर्ण हो। 
  • फास्ट फैशन खुदरा विक्रेताओं ने मोर इज़ बेटर (More is better) की अवधारणा को जन्म दिया है और इस अवधारणा ने बड़ी मात्रा में खपत को बढ़ावा दिया है। फास्ट फैशन उद्योग गुणवत्ता को कम कर रहा है, सस्ते वस्त्र बनाने के लिये पर्यावरण और श्रमिकों का शोषण कर रहा है जो संधारणीय नहीं हैं। 
    • स्लो फैशन इसके ठीक विपरीत है। यह गुणवत्तापूर्ण कार्य के आधार पर विचारशील, क्यूरेटेड  फैशन का संग्रह है 

सस्टेनेबल फैशन का महत्त्व: 

  • कपड़े वैश्विक विनिर्माण में 2.4 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर का योगदान करते हैं। 
  • यह दुनिया भर में मूल्य शृंखला के साथ 300 मिलियन लोगों को रोगार प्रदान करता है, जिनमें महिलाएँ भी शामिल हैं। 
  • यह दुनिया के 2-6% ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन के लिये ज़िम्मेदार है। 
  • यह प्रतिवर्ष लगभग 215 बिलियन लीटर पानी की खपत करता है। 
  • कम उपयोग के कारण इसे 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर की वार्षिक सामग्री की हानि का सामना करना पड़ता है। 
  • समुद्र में होने वाले प्रदूषण के लगभग 9 प्रतिशत के लिये वस्त्रों के माइक्रोप्लास्टिक्स ज़िम्मेदार हैं

सस्टेनेबल फैशन पहल: 

  • वैश्विक स्तर पर: 
    • सस्टेनेबल फैशन के लिये संयुक्त राष्ट्र गठबंधन: 
      • यह संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों और संबद्ध संगठनों की एक पहल है जिसे फैशन क्षेत्र में समन्वित कार्रवाई के माध्यम से सतत् विकास लक्ष्यों में योगदान करने के लिये  डिज़ाइन किया गया है। 
      • विशेष रूप से गठबंधन फैशन में काम कर रहे संयुक्त राष्ट्र निकायों के बीच समन्वय का समर्थन करने और परियोजनाओं एवं नीतियों को बढ़ावा देने के लिये काम करता है जो सुनिश्चित करता है कि फैशन मूल्य शृंखला सतत् विकास लक्ष्यों की उपलब्धि में योगदान देती है। 
    • सस्टेनेबल गारमेंट और फुटवियर के लिये अभिगम्यता:  
      • इस पहल के हिस्से के रूप में UNECE (यूरोप के लिये संयुक्त राष्ट्र आर्थिक आयोग) ने "द सस्टेनेबिलिटी प्लेज" लॉन्च किया है, जिसमें सरकारों, परिधान और जूते निर्माताओं तथा उद्योग के हितधारकों को कार्यवाही हेतु उपायों  को लागू करने एवं पर्यावरण और नैतिक साख क्षेत्र में सुधार की दिशा में सकारात्मक कदम उठाने के लिये आमंत्रित किया गया है। 
      • विश्व कपास दिवस (7 अक्तूबर): यह अल्प विकसित देशों से कपास और कपास से संबंधित उत्पादों के लिये बाज़ार पहुंँच की आवश्यकता के बारे में जागरूकता पैदा करता है, स्थायी व्यापार नीतियों को बढ़ावा देता है तथा विकासशील देशों को कपास मूल्य शृंखला के हर चरण से अधिक लाभ उठाने में सक्षम बनाता है। 
  • राष्ट्रीय स्तर पर: 
    • प्रोजेक्ट SU.RE: SU.RE का तात्पर्य ‘सस्टेनेबल रिज़ॉल्यूशन’ (Sustainable Resolution) से है यह भारतीय परिधान उद्योग द्वारा भारतीय फैशन उद्योग के लिये एक स्थायी मार्ग निर्धारित करने हेतु प्रतिबद्धता है। इसे वर्ष 2020 में लॉन्च किया गया था। 
      • उद्देश्य: भारतीय फैशन उद्योग हेतु स्वच्छ वातावरण के निर्माण में योगदान देना। 
    • खादी प्रोत्साहन: खादी और ग्रामोद्योग आयोग (KVIC) खादी उत्पादों को बढ़ावा देता है। इसने प्रमुख अग्रणी ब्रांँडों- अरविंद मिल्स और रेमंड्स के साथ करार किया है तथा खादी उत्पादों को बढ़ावा देने के लिये एयर इंडिया के साथ भी काम कर रहा है। 
    • बांँस प्रोत्साहन: नीति आयोग के पूर्वोत्तर मंच ने उत्तर-पूर्व के विकास में बांँस की भूमिका पर प्रकाश डाला है। भारत का 60% से अधिक बांँस उत्तर-पूर्व में उगाया जाता है। 
    • ब्राउन कॉटन: ब्राउन कॉटन, देसी कॉटन की एक स्थानीय (कर्नाटक के लिये) किस्म है जो अपने प्राकृतिक भूरे रंग के लिये जानी जाती है। यह प्रयास एक बड़ा समावेशी अभ्यास है जिसमें पर्यावरण, अर्थव्यवस्था के साथ-साथ स्थानीय समुदाय भी शामिल हैं। 

सस्टेनेबल फैशन से जुड़ी चुनौतियांँ: 

  • आर्थिक और वित्तीय बाधाएंँ। 
  • बाधाओं का नया वर्गीकरण: मानवीय धारणाएंँ, संसाधन की कमी और कमज़ोर कानून। 
  • मानक निर्माण प्रक्रिया के लिये पर्यावरण के अनुकूल और नैतिक विकल्प खोजने से संबंधित मुद्दे। 
  • तकनीकी लाभ का अभाव। 
  • पर्यावरण को बचाने के प्रयासों हेतु निवेश में वृद्धि और श्रमिकों की मज़दूरी में वृद्धि के कारण विनिर्माण लागत में वृद्धि। 

आगे की राह  

  • पर्यावरण जागरूकता: दुनिया भर के लोगों को जागरूक किया जाना चाहिये कि जलवायु परिवर्तन एक वास्तविकता है, न कि एक धोखा, इसलिये उन्हें पर्यावरण की सुरक्षा और संरक्षण की अपनी ज़िम्मेदारी को समझना चाहिये। 
  • सार्वजनिक अभियान: पर्यावरणविदों द्वारा उन कंपनियों के खिलाफ सार्वजनिक अभियान चलाया जाना चाहिये जो पर्यावरण मानकों का पालन नहीं करती हैं और उनके द्वारा निर्मित किसी भी उत्पाद को खरीदने से बचना चाहिये। 
  • कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (CSR) में वृद्धि: दुनिया भर की सरकारों को CSR में वृद्धि करनी चाहिये जिसमें पर्यावरण को नुकसान पहुंँचाने पर कंपनियों को भुगतान करने की आवश्यकता होती है। यह उन्हें स्थायी प्रथाओं को अपनाने के लिये प्रेरित करेगा।

स्रोत: डाउन टू अर्थ 

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