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सैटेलाइट इंटरनेट

  • 05 Jun 2021
  • 10 min read

प्रिलिम्स के लिये  

 लो अर्थ ऑर्बिट (LEO), स्पेस इंटरनेट, जियोस्टेशनरी सैटेलाइट, ‘पाँच से 50' सेवा (OneWeb), स्टारलिंक, प्रोजेक्ट कुइपर (Kuiper) प्रोज़ेक्ट लून 

मेन्स के लिये 

सैटेलाइट इंटरनेट और LEO प्रौद्योगिकी की विशेताएँ, सूचना और प्रौद्योगिकी के विकास में स्पेस इंटरनेट की भूमिका, अंतरिक्ष में इंटरनेट सेवाओं संबंधित प्रमुख पहलें

चर्चा में क्यों?

एक अनुमान के अनुसार, इस दशक में वार्षिक रूप में 1,250 उपग्रह या सैटेलाइट लॉन्च किये जाएंगे, जिनमें से 70% वाणिज्यिक उद्देश्यों के लिये अनुप्रयोग किये जाएंगे।

  • विभिन्न निजी कंपनियाँ लो अर्थ ऑर्बिट (LEO) उपग्रहों के अपने बेड़े के माध्यम से दुनिया भर में ब्रॉडबैंड उपग्रह इंटरनेट प्रसारित करने का लक्ष्य बना रही हैं।
  • अंतरिक्ष (Space) इंटरनेट प्रणाली कोई नया विचार नहीं है। इसका उपयोग जियोस्टेशनरी सैटेलाइट (Geostationary Satellite) के माध्यम से चुनिंदा उपयोगकर्त्ताओं के लिये किया जा रहा है।

प्रमुख बिंदु 

सैटेलाइट इंटरनेट और LEO प्रौद्योगिकी:

  • उपग्रहों की स्थिति: LEO उपग्रह पृथ्वी से लगभग 500 किमी. से 2000 किमी. की दूरी पर स्थित हैं जो स्थिर कक्षा उपग्रहों (Stationary Orbit Satellites) की तुलना में लगभग 36,000 किमी. दूर  हैं।
  • विलंबता (Latency): विलंबता या डेटा भेजने और प्राप्त करने के लिये आवश्यक समय का निर्धारण उनकी निकटता पर निर्भर है। 
    • चूँकि LEO उपग्रह पृथ्वी की कक्षा के समीप परिक्रमा करते हैं, वे पारंपरिक स्थिर-उपग्रह प्रणालियों की तुलना में मज़बूत सिग्नल और तीव्र गति प्रदान करने में सक्षम हैं।
    • इसके अतिरिक्त वे मौजूदा ग्राउंड-आधारित नेटवर्क से अधिक नहीं होने के कारण प्रतिद्वंद्वी होने की क्षमता रखते हैं क्योंकि ये सिग्नल फाइबर-ऑप्टिक केबल की तुलना में अंतरिक्ष के माध्यम से तीव्र गति से चलते हैं।
  • उच्च निवेश : LEO उपग्रह 27,000 किमी./घंटा की गति से यात्रा करते हैं और 90-120 मिनट में ग्रह के पूर्ण परिपथ का एक चक्कर पूरा करते हैं।
    • परिणामस्वरूप व्यक्तिगत उपग्रह केवल थोड़े समय के लिये भूमि ट्रांसमीटर के साथ सीधे संपर्क कर सकते हैं, इस प्रकार बड़े पैमाने पर LEO उपग्रह प्रणाली की आवश्यकता होती है जिसके फलस्वरूप एक महत्त्वपूर्ण पूंजी निवेश होता है।
    • इन लागतों के कारण यह इंटरनेट के तीन माध्यमों (फाइबर, स्पेक्ट्रम और सैटेलाइट) में से दूसरी सबसे महँगी प्रणाली है।

भूस्थिर (Geostationary) उपग्रह इंटरनेट:

  • उपग्रहों की स्थिति: भूस्थैतिक कक्षा भूमध्य रेखा के ठीक ऊपर पृथ्वी की सतह से 35,786 किमी. की ऊँचाई पर स्थित है।
    • अधिकांश मौजूदा अंतरिक्ष-आधारित इंटरनेट सिस्टम भूस्थिर कक्षा में उपग्रहों का उपयोग करते हैं।
    • इस कक्षा में उपग्रह लगभग 11,000 किमी. प्रतिघंटा की गति से चलते हैं, और पृथ्वी की एक परिक्रमा को उसी समय पूरा करते हैं जब पृथ्वी अपनी धुरी पर एक बार घूमती है।
      • सतहों पर जाँच या परीक्षण के लिये भूस्थिर कक्षा में एक उपग्रह स्थिर होता है।
  • आवृत्त क्षेत्र: GEO में स्थापित एक सैटेलाइट पृथ्वी के लगभग एक-तिहाई हिस्से को सिग्नल संप्रेषित कर सकता है तथा इसी कक्षा में स्थापित 3 या 4 सैटेलाइट मिलकर पृथ्वी के प्रत्येक हिस्से को सिग्नल संप्रेषित कर सकते हैं।
  • सुलभ कनेक्टिविटी : चूँकि उपग्रह स्थिर रूप में प्रतिस्थापित होते हैं, इसलिये उनसे जुड़ना आसान हो जाता है।
  • विलंबता संबंधी मुद्दे: GEO में उपस्थित सैटेलाइटों से संचरण में लगभग 600 मिली. सेकंड की लेटेंसी या विलंबता होती है।  LEO की तुलना में भूस्थिर उपग्रह अधिक ऊँचाई पर स्थित होते हैं, इस प्रकार जितनी लंबी दूरी तय की जाएगी, उतनी ही अधिक विलंबता होती है।

संबंधित पहल:

  • 'पाँच से 50' सेवा (OneWeb): वनवेब (OneWeb) एक निजी कंपनी है जिसने LEO में 218 उपग्रहों के तारामंडल को सफलतापूर्वक लॉन्च किया है।

    • 50 डिग्री अक्षांश के उत्तर के सभी क्षेत्रों में इंटरनेट कनेक्टिविटी प्रस्तुत करने की 'पाँच से 50' सेवा की क्षमता हासिल करने के लिये अब केवल एक और प्रक्षेपण की आवश्यकता है।
    • जून 2021 तक 'पाँच से 50' सेवा को चालू किये जाने की उम्मीद है, जिसमें 2022 में उपलब्ध 648 उपग्रहों द्वारा संचालित वैश्विक सेवाएँ शामिल हैं।
  • स्टारलिंक (Starlink) : यह स्पेसएक्स (SpaceX) का उपक्रम है।

    • स्टारलिंक के पास वर्तमान में कक्षा में 1,385 उपग्रह हैं और इससे पूर्व इसने उत्तरी अमेरिका में बीटा परीक्षण शुरू कर दिया है साथ ही भारत जैसे देशों में प्री-ऑर्डर या अग्रिम बुकिंग शुरू कर दी है।
    • हालाँकि स्टारलिंक के उपग्रह पृथ्वी के समीप गति करते हैं और इसलिये कंपनी को वनवेब की तुलना में वैश्विक कनेक्टिविटी प्रदान करने के लिये एक बड़े बेड़े ( Fleet) या तंत्र की आवश्यकता होती है।
  • प्रोजेक्ट कुइपर (Kuiper) : यह वर्ष 2019 में शुरू की गई अमेज़न (Amazon) की एक परियोजना है।

  • प्रोजेक्ट लून : बहुराष्ट्रीय कंपनी गूगल ने वर्ष 2013 में प्रोजेक्ट लून की शुरुआत की है। इसमें उच्च ऊँचाई वाले गुब्बारों का उपयोग करते हुए बेतार-संचार प्रौद्योगिकी या एरियल वायरलेस नेटवर्क स्थापित किया जाता है।

    • केन्या के ग्रामीण क्षेत्रों में सेवा का परीक्षण करने के बाद Google की मूल कंपनी, अल्फाबेट ने वर्ष 2021 में इस परियोजना को समाप्त कर दिया। 

LEO उपग्रहों के प्रक्षेपण में समस्याएँ:

  • विनियमन मुद्दे: स्पुतनिक और अपोलो मिशन के दौरान  सरकारें अंतरिक्ष-आधारित गतिविधियों पर प्रभुत्त्व संपन्न और विनियमित थीं। 
    • हालाँकि वर्तमान में शक्ति का संतुलन देशों से कंपनियों में स्थानांतरित हो गया है 
    • परिणामस्वरूप इन कंपनियों पर किसका नियंत्रण स्थापित होगा जैसे प्रश्न शामिल हैं, विशेष रूप से वे राष्ट्र जो बड़ी संख्या में व्यक्तिगत परियोजनाओं में योगदान करते हैं।
    •  यह नियामक ढाँचे को जटिल बनाता है।
  • लॉजिस्टिक चैलेंज: अंतरिक्ष में हज़ारों उपग्रहों को प्रक्षेपित करने संबंधित आवश्यक वस्तुओं (लॉजिस्टिक) की चुनौतियाँ हैं।
  • अंतरिक्ष अवलोकन में जटिलता: उपग्रहों को कभी-कभी रात के  समय खुले आसमान में देखा जा सकता है जो खगोल वैज्ञानिकों के लिये मुश्किलें पैदा करता है क्योंकि उपग्रह पृथ्वी पर सूर्य के प्रकाश को दर्शाते हैं, जिससे प्रतिबिंब में लकीरें एक-दूसरे के पार दिखाई देती हैं।
  • रुकावटें:  निम्न कक्षा में गतिमान उपग्रह अपने ऊपर परिक्रमा करने वाले उपग्रह की आवृत्ति को भी बाधित कर सकते हैं।
  • स्पेस जंक (Space Junk): कक्षा में पहले से ही 1 सेमी. व्यास से बड़ी लगभग 1 मिलियन वस्तुएँ मौज़ूद हैं, जो दशकों की अंतरिक्ष गतिविधियों का उपोत्पाद है।
    • उन वस्तुओं को सामान्य भाषा में 'स्पेस जंक' कहा जाता है। इसमें अंतरिक्ष यान को नुकसान पहुँचाने या अन्य उपग्रहों से टकराने की क्षमता होती है।

स्रोत : इंडियन एक्सप्रेस

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