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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

गंगा नदी के 2018 तक साफ होने की संभावना नहीं है|

  • 02 Mar 2017
  • 4 min read

गौरतलब है कि जल संसाधन मंत्रालय द्वारा गंगा नदी की सफाई के सन्दर्भ में निर्धारित किये गए लक्ष्यों को 2018 तक तय कर पाना असंभव प्रतीत हो रहा है| संभवतः इसका मुख्य कारण राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (National Green Tribunal - NGT) द्वारा जारी किये गए बेबुनियादी दिशा-निर्देश हैं, जिनके तहत उत्तर प्रदेश में सीवेज उपचार संयंत्र (Sewage Treatment Plants - STPs) की संचालन क्षमता तथा इन परियोजनाओं को आरंभ करने में राज्य सरकारों की ढिलाई के संबंध में प्रश्न पूछे गए हैं|

प्रमुख बिंदु

  • एक वरिष्ठ अधिकारी के कथनानुसार, उत्तर प्रदेश राज्य में एसटीपी के संचालन कार्य को रोक दिया गया है, क्योंकि गंगा नदी में सीवेज के निस्तारण के संबंध में जारी की गई सभी रिपोर्टों में अलग-अलग आँकड़े प्रस्तुत किये गए हैं| जिसके कारण संशय की स्थिति बन गई हैं|
  • ध्यातव्य है कि सीवेज उपचार संयंत्रों के विषय में सटीक जानकारी प्राप्त होना अत्यधिक आवश्यक है, ताकि गंगा नदी की सफाई के संबंध में आवश्यक निर्णय लिये जा सकें|
  • प्रदेश में सीवेज संचालन क्षमता के विषय में जानकारी एकत्रित करने का एकमात्र उद्देश्य यह ज्ञात करना है कि किस संयंत्र से प्रतिदिन कितनी मात्रा में अवशिष्ट प्रदार्थों को अपवाहित किया जाता है तथा इन पदार्थों में कितनी मात्रा में दूषित तत्त्व निहित होते हैं?
  • परन्तु अब जब इस संबंध में प्रश्न उठाये जा रहे हैं, तो स्पष्ट है कि इस कार्य के समय पर अनुपालन में विलंब होना निश्चित हैं| ऐसी स्थिति में गंगा नदी की सफाई के संबंध में तय किये गए वर्ष 2018 के लक्ष्य को प्राप्त कर पाना संभव नहीं हो सकेगा|
  • ध्यातव्य है कि अभी हाल ही में एनजीटी द्वारा राज्य में 30 नदी वाहिकाओं के विषय में अपर्याप्त जानकारी उपलब्ध कराए जाने के आरोप में कईं अधिकारियों को “जनता के धन का दुरुपयोग करने” के सन्दर्भ में दंडित किया गया है|
  • इसके अतिरिक्त एनजीटी द्वारा सीबीआई (Central Bureau of Investigation - CBI) को गढ़मुक्तेश्वर के जल निगम द्वारा कुछ विशेष परियोजनाओं को मंजूरी प्रदान किये जाने के संबंध में भी खोजबीन करने का कार्य दिया गया है|
  • उल्लेखनीय है कि 20,000 करोड़ रुपए के बजट वाले स्वच्छ भारत अभियान के अंतर्गत एनएमसीजी (National Mission for Clean Ganga) के लिये 2000 करोड़ रुपए की धनराशि का आवंटन किया गया है|
  • इस कार्यक्रम के अंतर्गत कार्यपालक प्राधिकारी (Executive Authority) को उपचार संयंत्रों का संचालन करने, नदी किनारे घाटों की सुंदरता एवं स्वच्छता को बनाए रखने तथा अन्य आवश्यकताओं की पूर्ति सुनिश्चित करने का कार्य सौंपा गया है|
  • गौरतलब है कि वर्तमान में उत्तराखंड से लेकर पश्चिम बंगाल तक देश के 11 राज्यों में 4000 मिलियन लीटर सीवेज का प्रतिदिन उपचार करने की क्षमता वाले संयंत्रों के द्वारा मात्र 1000 मिलियन लीटर सीवेज का ही उपचार किया जा रहा है| जबकि प्रतिदिन तकरीबन 12,000 मिलियन लीटर अपशिष्ट को नदियों में प्रवाहित किया जा रहा है|
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