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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

क्या तलाक के विषय में पुनर्विचार अवमानना कार्रवाई को आकर्षित करता है?

  • 31 Jan 2017
  • 7 min read

पृष्ठभूमि

  • हाल ही में उच्च न्यायालय की एक पीठ ने तलाक की अलग-अलग आठ याचिकाओं की सुनवाई के दौरान यह प्रश्न किया कि अगर तलाक की याचिका दाखिल करने वाला युगल आपसी सहमति से तलाक के विषय में पुनर्विचार करना चाहता है तो क्या उसे अदालत की अवमानना कार्यवाही का सामना पड़ेगा?
  • न्यायाधीश मनमोहन द्वारा इस विषय में गंभीर चिंता प्रकट की गई है कि यदि कोई युगल न्यायालय द्वारा प्रदत्त 6 माह की समयावधि (तलाक के संबंध में अंतिम निर्णय लेने से पूर्व न्यायालय द्वारा प्रत्येक युगल को तलाक के विषय में पुनर्विचार हेतु 6 माह का समय दिया जाता है) पूरी होने से पूर्व ही आपसी सहमति से तलाक के विचार को त्यागना चाहे तो क्या इसे न्यायालय की अवमानना माना जाएगा?

कानून क्या कहता है?

  • ध्यातव्य है कि हिन्दू विवाह अधिनियम (Hindu Marriage Act) की धारा 13 B के अंतर्गत द्वि-चरणीय प्रक्रिया के माध्यम से आपसी सहमति से तलाक की अनुमति प्रदान की गई है|
  • सर्वप्रथम, यदि कोई युगल तकरीबन एक वर्ष की समयावधि से एकसाथ नहीं रह रहा है तो वह तलाक की मांग कर सकता है| परन्तु इसके लिये उन्हें 6-18 महीने की “प्रतीक्षा अवधि” (waiting/cooling off period) में एक-दूसरे के साथ रहना होता है|
  • इस समयावधि के अंत में वह युगल चाहे तो अपने वैवाहिक जीवन को जारी भी रख सकता है और चाहे तो तलाक लेने के लिये पुनर्याचिका भी कर सकता है, इस प्रकार तलाक हेतु की गई पुनर्याचिका की स्थिति में तलाक मिलना निश्चित होता है|
  • इतना ही नहीं बल्कि “विवादास्पद तलाक” (contested divorce) की स्थिति में भी (ऐसे मामलों में वैवाहिक दम्पति में से किसी एक के द्वारा दूसरे की इच्छा के विरुद्ध न्यायालय के समक्ष आपराधिक शिकायत (Criminal Complaint) दर्ज़ कराई जाती है) दम्पति को तलाक हेतु आपसी मतभेद मिटाने के लिये “प्रतीक्षा अवधि” प्रदान की जाती है|
  • मध्यस्थता की इस अवधि के दौरान यदि दम्पति द्वारा आपसी सहमति से अलग होने का फैसला लिया जाता है तो वे तलाक हेतु पुनर्याचिका दाखिल कर सकते है|

विवाद 

  • परन्तु यदि कभी ऐसा हो कि किसी वैवाहिक दम्पति द्वारा अधिनियम की धारा 13B (1) अथवा धारा 13B (2) अथवा दोनों के तहत तलाक की याचिका दाखिल की जाए तथा दोनों में से किसी एक के द्वारा अपने वैवाहिक जीवन को खत्म करने अथवा आगे बढ़ाने का निर्णय लिया जाता है तो क्या इस निर्णय को न्यायालय की अवमानना समझा जाना चाहिये अथवा नहीं? 
  • गौरतलब है कि तलाक के ऐसे ही एक मामले में पति द्वारा तलाक की “प्रतीक्षा अवधि” के दौरान अपना निर्णय बदलने का मामला सामने आया है| (उक्त मामले में पत्नी द्वारा अपने पति एवं उसके परिवार के खिलाफ़ क्रूरता का आरोप लगाते हुए तलाक की याचिका दाखिल की गई थी|)
  • एक अन्य मामले में पत्नी द्वारा “प्रतीक्षा अवधि” समाप्त होने के पूर्व भत्ते की आंशिक राशि प्राप्त होने के पश्चात् आपसी सहमति से तलाक सम्बन्धी पुनर्याचिका दाखिल करने से इनकार कर दिया गया| (उक्त मामले में बच्चे की हिरासत के संबंध में महिला का मन परिवर्तित हो गया|)
  • उक्त दोनों मामले में, उच्च न्यायालय द्वारा यह स्पष्ट किया गया है कि “स्खलित पति” (Erring Spouse) को तलाक के संबंध में आपसी सहमति के विकल्प का लाभ उठाने की अनुमति प्रदान नहीं की जा सकती है|
  • एक अन्य याचिका की सुनवाई के दौरान उच्च न्यायालय के न्यायाधीश मनमोहन द्वारा तलाक के संबंध में “माफ़ी के अधिकार” (Waiver of Right) का उपयोग किये जाने पर भी बल दिया गया|
  • उक्त याचिका में कहा गया था कि यदि दो पक्षों द्वारा मध्यस्थता हेतु वैकल्पिक विवाद निवारण तंत्र (Alternate Dispute Redressal mechanism of mediation) के तहत समझौते का मार्ग निकला जाता है तो उन्हें हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा 13B के तहत अपना मन बदलने का वैधानिक अधिकार (Statutory Right) प्रदत्त होता है, जिसके परिणामस्वरूप वह दम्पति समझौते के फैसले को मानने के लिये बाध्य होता है|
  • गौरतलब है कि न्यायाधीश मनमोहन द्वारा सर्वोच्च न्यायालय के कईं विरोधाभासी फैसलों की व्याख्या करते हुए यह स्पष्ट किया गया कि यदि सर्वोच्च न्यायालय द्वारा डिक्री की तारीख तक आपसी सहमति से तलाक को जारी रखने की व्यवस्था की गई है, तो ऐसी स्थिति में दम्पति के पास अपना निर्णय बदलने का अधिकार होता है|
  • हालाँकि इस सन्दर्भ में कुछ ऐतिहासिक मामले भी सामने आए है, जिनमें यह स्पष्ट किया गया है कि भत्ता राशि प्राप्त होने अथवा एफआईआर दाखिल होने की स्थिति में दोनों में से किसी भी पक्ष को आपसी सहमति से निर्णय लेने का अधिकार प्राप्त नहीं होता है|
  • चूँकि यह तलाक संबंधी मामले का एक अन्य विपरीत पक्ष है, अतः ऐसी स्थिति में दो न्यायाधीशों अथवा तीन न्यायाधीशों की पीठ द्वारा इस मामले की पुनः सुनवाई होने की संभावना है|
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