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भारतीय रोज़गार बाजार में तेजी से बढ़ रहे शिक्षा से रिटर्न

  • 14 Jun 2018
  • 6 min read

चर्चा में क्यों?

21वीं शताब्दी की शुरुआत के बाद से भारत के  रोज़गार बाजार में शिक्षा से रिटर्न तेजी से बढ़ा है। यह तथ्य राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय (NSSO) के पंचवार्षिक रोज़गार सर्वेक्षण के तीन चरणों के  आँकड़ों से सामने निकल कर आया है।

प्रमुख बिंदु

  • 1999 -2000 के दौरान एक स्नातक कामगार आठवीं कक्षा तक पढ़े कामगार से 2.4 गुना अधिक वेतन प्राप्त करता था।
  • 2011-12 तक यह अंतराल और अधिक बढ़ गया। अब एक औसत स्नातक कामगार एक बेसिक शिक्षा प्राप्त औसत कामगार की तुलना में 3.3 गुना अधिक कमाने लगा।
  • आँकड़ों से पता चलता है कि 21वीं शताब्दी के दौरान शिक्षा के उच्च स्तर पर उपार्जन प्रीमियमों  (earnings premium) में तेजी से बढ़ोतरी हुई है, लेकिन शिक्षा के निचले स्तर पर उपार्जन प्रीमियम अभी भी नहीं बढ़ पाए हैं।
  • शिक्षा के प्रत्येक स्तर के लिये प्रीमियम की गणना शिक्षा के अगले स्तर के सापेक्ष की जाती है।
  • विश्लेषण में समय के साथ शैक्षिक नामांकनों में आए उतार-चढ़ाव को देखते हुए केवल 25 साल से अधिक आयु वाले कामगारों को ही शामिल किया गया है।
  • मध्य स्तर की स्कूली शिक्षा पर प्रीमियमों में काफी गिरावट आई है, जबकि माध्यमिक शिक्षा के संदर्भ में 1999-2000 के दौरान प्रीमियम अपरिवर्तित रहे। 
  • इसी अवधि के दौरान उच्च माध्यमिक शिक्षा और स्नातक पाठ्यक्रमों पर प्रीमियमों में तेजी से वृद्धि हुई।
  • उच्च स्तरीय शिक्षा और बुनियादी शिक्षा के संदर्भ में प्रीमियमों के इस पैटर्न के पीछे दो अंतर्निहित कारक हो सकते हैं।
  • पहला, प्रौद्योगिकी में बदलाव ने दुनियाभर की ही तरह भारत में भी अधिक कुशल और बेहतर शिक्षित श्रमिकों की मांग में वृद्धि कर दी है।
  • दूसरा, भारतीय स्कूली शिक्षा की गुणवत्ता में गिरावट संबंधी रिपोर्टों ने नियोक्ताओं को देश की स्कूली शिक्षा के मूल्य को कम करने के लिये प्रेरित किया है।
  • औपचारिक व्यावसायिक प्रशिक्षण पर प्रीमियम के संदर्भ में स्थिति का विश्लेषण करने पर पता चलता है कि जिन्होंने उच्च माध्यमिक स्तर या स्नातक स्तर तक शिक्षा प्राप्त की है, उनकी आय में व्यावसायिक प्रशिक्षण से बहुत बड़ा परिवर्तन नहीं हुआ। लेकिन, माध्यमिक और मध्य-स्तरीय शिक्षा प्राप्त कामगारों के मामले में व्यावसायिक शिक्षा से आय में बढ़ोतरी हुई है।
  • लेकिन यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि माध्यमिक और मध्य-स्तरीय शिक्षा प्राप्त लोगों में से बहुत कम ने ही व्यावसायिक प्रशिक्षण प्राप्त किया है, जबकि अधिकांश उच्च माध्यमिक शिक्षा और स्नातक डिग्री धारकों ने व्यावसायिक प्रशिक्षण का चुनाव किया है।
  • शिक्षा से बढ़ते रिटर्न को देखते हुए, यह आश्चर्य की बात नहीं है कि भारतीय लोगों ने शताब्दी की शुरुआत से, विशेषकर 2004-05 और 2011-12 के बीच शैक्षिक संस्थानों में अधिक संख्या में दाखिला लिया| 
  • हालाँकि, दिहाड़ी मजदूरी करने वालों में शिक्षित लोगों का हिस्सा बहुत कम है। 2011-12 की स्थिति के अनुसार, हाशिये वाले समूहों में यह स्थिति विशेष तौर पर देखने को मिलती है। अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति समूह के अधिकांश कामगार या तो अनपढ़ हैं या उनके पास पर्याप्त स्कूली शिक्षा नहीं है।
  • ओबीसी समूह के लगभग आधे दिहाड़ी मजदूरी करने वाले लोगों के पास औपचारिक स्कूली शिक्षा की कमी है। लेकिन सामान्य वर्ग के मामले में तक यह अनुपात पाँचवे हिस्से से भी कम है।  
  • सामान्य श्रेणी के श्रमिकों में से लगभग एक तिहाई स्नातक थे, जबकि ओबीसी के श्रमिकों में से केवल 10वें हिस्से के श्रमिकों के पास स्नातक की डिग्री थी। अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के कामगारों में से लगभग 6% स्नातक थे।
  • हालाँकि, हाशिये वाले जाति समूहों के कामगारों में कम स्नातक लोग ही थे, लेकिन इन समूहों के जिन कामगारों ने स्नातक की डिग्री अर्जित की, वे दूसरों की तुलना में नियमित रूप से काम करने की अधिक संभावना रखते थे।
  • नियमित नौकरी वाले अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति / ओबीसी स्नातक श्रमिकों का हिस्सा सामान्य श्रेणी के श्रमिकों के मुकाबले ज्यादा था। इसके पीछे दो कारक थे- पहला, इन समुदायों में कम स्नातक हैं। और दूसरा, इनको सरकारी नौकरियों में आरक्षण मिलता है।
  • हालाँकि, नियमित नौकरी तक पहुँच का मतलब अनिवार्य तौर पर सभी सामाजिक सुरक्षा लाभों या समान उपार्जन तक पहुँच नहीं है। आमतौर पर हाशिए वाले समूहों के लोगों को सामान्य श्रेणी के श्रमिकों की तुलना में बहुत कम वेतन प्राप्त होता है।
  • हालाँकि, शिक्षा पूरी तरह से किसी विशेष जाति से संबंधित विशेषाधिकारों को खत्म नहीं कर सकती, लेकिन यह सबसे वंचित लोगों की अवसरों तक पहुँच बढ़ाने में मदद अवश्य करती है।
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