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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

आरबीआई की मौद्रिक नीति–चेतावनी के साथ वृद्धि

  • 07 Apr 2017
  • 7 min read

संदर्भ
गौरतलब है कि रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया के गवर्नर उर्जित पटेल की अध्यक्षता वाली मौद्रिक नीति समिति (Monetary Policy Committee) द्वारा जहाँ एक ओर रिवर्स रेपो दर (जिस दर पर आरबीआई बैंकों से उधार लेता है) में 25 आधार अंकों की वृद्धि करते हुए इसे 5.75% से बढ़ाकर 6% कर दिया है, वहीं दूसरी ओर अन्य नीतिगत दरों में कोई परिवर्तन नहीं किया गया है। इससे पता चलता है कि केंद्रीय बैंक व्यवस्था में नकदी की स्थिति दुरुस्त करने की ओर अग्रसर है। वस्तुतः यह बैंकों के लिये भी एक अच्छी खबर है क्योंकि इससे उनकी आय में बढ़ोतरी होगी।

प्रमुख बिंदु

  • इसके अतिरिक्त भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा रेपो दर में कोई बदलाव नहीं किया गया है। यह वह दर होती है जिस पर केंद्रीय बैंक अन्य बैंकों को ऋण देता है। फिलहाल यह दर 6.25 फीसदी के स्तर पर है।
  • आरबीआई ने स्पष्ट किया है कि वह अतिरिक्त नकदी से निपटने के लिये बाजार को स्थिर बनाने वाली योजना के साथ-साथ लंबी अवधि की रिवर्स रेपो एवं मुक्त बाजार गतिविधियों का भी इस्तेमाल करने की ओर ध्यान दे रहा है।
  • मुद्रास्फीति को लेकर आरबीआई ने स्पष्ट किया है कि अभी इस संबंध में किसी भी प्रकार के जोखिम की स्थिति नहीं है।

स्थिति में सुधार

  • उल्लेखनीय है कि फरवरी में खुदरा महँगाई 3.65 फीसदी के स्तर पर रही है। पिछले सात माह में पहली बार ऐसा हुआ है कि खुदरा महँगाई की दर में तेजी आई है।
  • वहीं दूसरी ओर यदि बात करें थोक महँगाई की तो यह भी फरवरी में चार साल के उच्चतम स्तर पर जा पहुंची है। 

नई व्यवस्था

  • उल्लेखनीय है कि आरबीआई के द्वारा एक नया तरलता प्रबंधन उपकरण (Liquidity Management Tool) भी प्रस्तावित किया है जिसे अभी केंद्र सरकार की मंजूरी मिलनी बाकी है।
  • ध्यातव्य है कि इसके माध्यम से पूरे वर्ष बाजार में मुद्रा की अधिशेष तरलता को नियंत्रित करने के मुद्दे को महत्त्वपूर्ण प्राथमिकता प्रदान की जाएगी।
  • ध्यातव्य है कि भारतीय रिज़र्व बैंक की तरलता प्रबंधन टूलकिट की प्रभावकारिता को मुद्रास्फीति नामक एक और महत्त्वपूर्ण चिंता का सामना करना होगा, जिसका एक महत्त्वपूर्ण कारण यह है कि चालू वित्तीय वर्ष की दूसरी छमाही में मुद्रास्फीति की दर 5% तक रहने की संभावना व्यक्त की जा रही है।

चुनौतियाँ

  • वर्तमान में आरबीआई के समक्ष सबसे बड़ी समस्या बाजार में प्रवाहित अतिरिक्त नकदी का प्रबंधन है।
  • ध्यातव्य है कि वर्ष 2016-17 में बैंक जमाओं की दर 13 फीसदी बढ़ी है जबकि वर्ष 2015-16 में यह दर मात्र 9.3 फीसदी थी।
  • हालाँकि, इस अवधि में बैंक ऋण वृद्घि की दर में गिरावट आई है और यह 10 फीसदी के स्तर से घटकर 7 फीसदी हो गई है। 
  • विमुद्रीकरण के बाद से बाजार में नकदी की बाढ़ सी आ गई, जिसके परिणामस्वरूप बैंकिंग व्यवस्था में अतिरिक्त नकदी की संख्या जनवरी के 7.9 लाख करोड़ रुपए से घटकर मार्च में 4.8 लाख करोड़ रुपए हो गई।
  • जैसा की हम सभी जानते हैं कि इतनी अधिक नकदी आसानी से महँगाई को बढ़ावा प्रदान कर सकती है। और जैसा कि आरबीआई के बयान से भी स्पष्ट है कि अप्रैल-सितंबर तिमाही में महँगाई दर औसतन 4.5 फीसदी, जबकि अक्टूबर-मार्च तिमाही में 5 फीसदी तक रहने का अनुमान है।
  • स्पष्ट है कि यह मध्यम अवधि के 4 फीसदी के औसत लक्ष्य से कहीं अधिक है। 
  • इसके अतिरिक्त इस समय आरबीआई के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती के रूप में तीन अन्य समस्याएँ भी मुहँ बाए खड़ी है जिनके विषय में समाधान निकालने के लिये आरबीआई को गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता है। 
  • ये समस्याएँ मानसून पर पड़ने वाले संभावित अल-नीनों के प्रभाव, जीएसटी के क्रियान्वयन और सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों को लेकर हैं।

समाधान हेतु पहलें

  • इस संबंध में सबसे पहले, बैंकों में हो रही बुरे ऋणों की वृद्धि के संबंध में तत्काल ही कोई हल निकालने की आवश्यकता है, जिसके लिये आरबीआई द्वारा अप्रैल महीने के मध्य तक एक नए कार्रवाई ढाँचे (Prompt Corrective Action framework) का अनावरण किया जाएगा।
  • इसका कारण यह है कि इस ढाँचे को लाये बिना, निवेश और रोज़गार सृजन हेतु आवश्यक एक स्वस्थ ऋण वृद्धि का एक अच्छा चक्र तैयार नहीं किया जा सकता है। 
  • दूसरा, जैसा की ज्ञात है कि बैंकों की उधार दरों में कमी आई है। इस बात को मद्देनज़र रखते हुए आरबीआई ने यह संकेत दिया है कि यदि व्यवस्था में छोटी-छोटी बचतों के लिये जगह है, तो इन छोटी बचत योजनाओं से संबद्ध दरों में कोई परिवर्तन नहीं किया जाएगा।
  • हालाँकि, पिछले वर्ष अप्रैल माह में इन दरों को निर्धारित करने के लिये एक फार्मूला-आधारित दर अपनाई गई थी, तथापि छोटी बचत योजनाएँ अभी भी 61-95 आधार अंकों के साथ ज्यादा रिटर्न देने में सक्षम है।
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