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डेली न्यूज़

भारतीय राजव्यवस्था

पंजाब सूबा आंदोलन

  • 05 Jul 2021
  • 7 min read

प्रिलिम्स के लिये:

धारा 144, अनुच्छेद-3 

मेन्स के लिये:

पंजाब सूबा आंदोलन की प्रमुख मांगें, भारत में राज्य के दर्जे को लेकर वर्तमान मांगें   

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (Shiromani Gurdwara Parbandhak Committee- SGPC) ने  4 जुलाई, 1955 को पंजाब सूबा आंदोलन (मोर्चा) के दौरान स्वर्ण मंदिर (Golden Temple) के अंदर पुलिस बल द्वारा की गई कार्यवाही को याद करते हुए एक कार्यक्रम आयोजित  किया।

प्रमुख बिंदु: 

पंजाब सूबा आंदोलन के बारे में:

  • आज़ादी के तुरंत बाद पंजाब में इस आंदोलन की शुरुआत हुई। शिरोमणि अकाली दल (राजनीतिक दल) द्वारा एक पंजाबी भाषी राज्य को लेकर इस आंदोलन का नेतृत्व किया गया।
    • हालाँकि इस विचार का विरोध भी हुआ।
    • जो लोग इसकी मांग के पक्ष में थे उनके द्वारा पंजाबी सूबा अमर रहे (Punjabi Suba Amar Rahe) का नारा लगाया गया तथा मांग का विरोध करने वाले  लोग 'महा-पंजाब' (Maha-Punjab) के समर्थन में नारे लगा रहे थे।
    • अप्रैल 1955 में सरकार ने दंड प्रक्रिया संहिता (Code of Criminal Procedure- CrPC) की धारा 144 के तहत कानून व्यवस्था को बनाए रखने के लिये नारों पर प्रतिबंध लगा दिया।
  • पंजाबी सूबे के निर्माण की मांग ने स्वतः ही अलग हरियाणा राज्य की मांग का आधार निर्मित कर दिया।

आंदोलन की मांग:

  • एक पंजाबी भाषी राज्य का निर्माण जिसमें पंजाबी भाषी क्षेत्रों की जनसंख्या शामिल होगी।
  • किसी भी स्थायी तरीके से इसके आकार को बढ़ाने या घटाने हेतु कोई उग्र/हिंसक प्रयास न करना। पंजाबी भाषी राज्य भारतीय संविधान के अधीन होगा।

पंजाब का गठन (Formation of Punjab):

  • पंजाब पुनर्गठन अधिनियम 1966 (और राज्य पुनर्गठन आयोग की पूर्व सिफारिशों के अनुसार) के पारित होने के साथ हरियाणा वर्ष 1966 में पंजाब से अलग होकर भारत का 17वाँ राज्य बन गया।
  • इस प्रकार पूर्वी पंजाब का पूर्व राज्य अब दो राज्यों हरियाणा और पंजाब में विभाजित हो गया था।
  • कुछ क्षेत्र केंद्रशासित प्रदेश हिमाचल प्रदेश में भी स्थानांतरित कर दिया गया था।
  • पंजाब और हरियाणा दोनों की अस्थायी राजधानी के रूप में सेवा करने के लिये चंडीगढ़ को एक केंद्रशासित प्रदेश बना दिया गया।

राज्यों के निर्माण के लिये संवैधानिक प्रावधान:

  • भारतीय संविधान केंद्र सरकार को मौजूदा राज्यों में से एक नया राज्य बनाने या दो राज्यों का विलय करने का अधिकार देता है। इस प्रक्रिया को राज्यों का पुनर्गठन कहा जाता है।
    • पुनर्गठन का आधार भाषायी, धार्मिक, जातीय या प्रशासनिक हो सकता है।
  • अनुच्छेद 3 निम्नलिखित प्रक्रिया प्रदान करता है:
    • राष्ट्रपति का संदर्भ (Reference) राज्य विधानसभा को भेजा जाता है।
    • राष्ट्रपति के संदर्भ के बाद एक प्रस्ताव विधानसभा में पेश किया जाता है और पारित किया जाता है।
    • विधानसभा को नए राज्य/राज्यों के निर्माण के लिये एक विधेयक पारित करना होता है।
    • एक अलग विधेयक को संसद द्वारा अनुमोदित किया जाता है।

नए राज्यों के निर्माण के फायदे और नुकसान

          लाभ

      नुकसान

आर्थिक संसाधनों का बेहतर प्रबंधन

अंतर्राज्यीय जल, विद्युत एवं सीमा विवाद में वृद्धि की संभावना

अधिक निवेश के अवसर

क्षेत्रीय स्वायत्तता के नारे में राष्ट्रवाद की भावना कम होगी

तेज़ आर्थिक विकास

छोटे राज्य वित्तीय सहायता के लिये काफी हद तक केंद्र सरकार पर निर्भर हैं

छोटे राज्य के लोग अपने राज्य के मामलों में राय अच्छी तरह से रख सकेंगे

अलग-अलग राज्य का दर्जा प्रमुख समुदाय के आधिपत्य की ओर ले जा सकता है

भारत में राज्य के दर्जे को लेकर वर्तमान मांगें:

  • विदर्भ
    • इसमें पूर्वी महाराष्ट्र के अमरावती और नागपुर डिवीज़न शामिल हैं।
  • दिल्ली
    • विभिन्न मौलिक एवं बुनियादी शक्तियों पर नियंत्रण प्राप्त करने के लिये दिल्ली सरकार पूर्ण राज्य के दर्जे की मांग कर रही है।
  • हरित प्रदेश
    • इसमें पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कृषि प्रधान ज़िले शामिल हैं।
  • पूर्वांचल
    • यह उत्तर-मध्य भारत का एक भौगोलिक क्षेत्र है, जिसमें उत्तर प्रदेश राज्य का पूर्वी हिस्सा शामिल है।
  • बोडोलैंड 
    • बोडो उत्तरी असम में सबसे बड़ा जातीय और भाषायी समुदाय है, जो अपने लिये अलग राज्य की मांग कर रहा है।
  • सौराष्ट्र
    • दक्षिण-पश्चिमी गुजरात राज्य में काठियावाड़ प्रायद्वीप, जिसे सौराष्ट्र प्रायद्वीप भी कहा जाता है, के लिये भी अलग राज्य की मांग की जा रही है।
  • गोरखालैंड
    • यह एक प्रस्तावित राज्य है, जिसमें गोरखा (नेपाली) लोगों के निवासित स्थान जैसे- पश्चिम बंगाल के उत्तरी हिस्से में दार्जिलिंग पहाड़ियाँ और डुआर्स आदि शामिल हैं।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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