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विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

GISAT-1 के प्रक्षेपण की तैयारी

  • 17 Feb 2020
  • 8 min read

प्रीलिम्स के लिये:

GISAT-1 उपग्रह, चंद्रयान- 3, गगनयान, आदित्य एल-1, युवा विज्ञानी कार्यक्रम

मेन्स के लिये:

भू प्रेक्षण उपग्रह का महत्त्व, अंतरिक्ष कूटनीति में इसरो का योगदान, अंतरिक्ष मिशन एवं खोजों का महत्त्व

चर्चा में क्यों?

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (indian Space Research Organisation- ISRO) एक नए भू प्रेक्षण (Earth Observation- EO) उपग्रह GISAT-1 को मार्च के पहले सप्ताह में लॉन्च करने की तैयारी कर रहा है।

महत्त्वपूर्ण बिंदु

  • वर्ष 2019-20 के लिये भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन की नवीनतम वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2020-21 के दौरान इसरो द्वारा 10 भू प्रेक्षण (Earth Observation) उपग्रहों को भेजे जाने की योजना है।
  • इसरो की वार्षिक योजना के अंतर्गत 36 मिशनों का उल्लेख किया गया है जिसमें एक वर्ष के दौरान उपग्रह और उनके लॉन्चर दोनों के विकास एवं प्रक्षेपण को शामिल किया गया है।
  • चालू वित्त वर्ष 2019-20 में 17 मिशनों को शुरू करने की योजना बनाई गई है और इनमें से 6 मिशनों को 31 मार्च 2020 तक पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है।
  • ध्यातव्य है कि इसरो को हाल ही में अगले वित्त वर्ष के लिये लगभग 13,480 करोड़ रुपए का बजट आवंटित किया गया है।

GISAT के बारे में

  • GISAT-1 एक जियो इमेजिंग सैटेलाइट है।
  • यह 36,000 किमी. दूर स्थित भूस्थैतिक कक्षा में स्थापित किये जाने वाले दो योजनाबद्ध भारतीय EO अंतरिक्षयानों में से पहला होगा।
  • इसे एक निश्चित स्थान पर स्थापित किया जाएगा जिससे यह हर समय भारतीय महाद्वीप पर नज़र रख सकेगा। ध्यातव्य है कि अभी तक सभी भारतीय पृथ्वी अवलोकन उपग्रहों को केवल 600 किमी. की दूरी की कक्षा में स्थापित किया जाता था, ये उपग्रह ध्रुव-से-ध्रुव के बीच चक्कर लगाते थे।
  • GISAT-1 को श्रीहरिकोटा उपग्रह प्रक्षेपण केंद्र से लॉन्च किया जा सकता है।
  • इसे GSLV MK II के माध्यम से प्रक्षेपित किया जाएगा।

GISAT- 1 का महत्त्व

  • GISAT- 1 में पाँच प्रकार के मल्टीस्पेक्ट्रल कैमरे होंगे जिनकी सहायता से देश के विभिन्न क्षेत्रों की रियल टाइम इमेज प्राप्त की जा सकती है।
  • साथ ही इस उपग्रह की सहायता से देश की भौगोलिक स्थिति में किसी भी प्रकार के परिवर्तन की निगरानी भी की जा सकती है।
  • भू प्रेक्षण उपग्रह का उपयोग मुख्य रूप से भूमि एवं कृषि संबंधी निगरानी के लिये किया जाता है किंतु सेना के लिये सीमा की निगरानी करने हेतु इसके द्वारा ली गई इमेजेस का भी बहुत महत्त्वपूर्ण उपयोग है। ध्यातव्य है कि RISAT जैसे उपग्रह, जो सिंथेटिक एपर्चर रडार से लैस होते हैं, सुरक्षा एजेंसियों को 24-घंटे सभी प्रकार की जानकारी प्रदान करते हैं।

ISRO-GSLV

अंतरिक्ष में भारत की वर्तमान स्थिति

  • इसरो के अनुसार, वर्तमान समय में 19 राष्ट्रीय भू प्रेक्षण उपग्रह, 18 संचार उपग्रह और 8 नौपरिवहन उपग्रहों (Navigation Satellites) की सेवा ली जा रही है।
  • ये उपग्रह प्रसारण, टेलीफोनी, इंटरनेट सेवाएँ, मौसम और कृषि से संबंधित पूर्वानुमान, सुरक्षा, आपदा के समय बचाव एवं राहत और स्थान आधारित सेवाएँ प्रदान करते हैं। ध्यातव्य है कि संचार उपग्रहों में से तीन उपग्रह सैन्य संचार और नेटवर्किंग के लिये समर्पित हैं।

इसरो के भविष्य के मिशन

  • 10 भू प्रेक्षण उपग्रहों में से चालू वित्त वर्ष के लिये इसरो ने 6 EO उपग्रह लॉन्च करने का प्रस्ताव दिया था जिनमें से दो उपग्रहों का प्रक्षेपण आगामी कुछ दिनों में किया जाएगा, जबकि आठ EO उपग्रहों को वित्त वर्ष 2021-22 में प्रक्षेपित किये जाने की योजना है।
  • GISAT- 1 के अलावा अंतरिक्ष एजेंसी एकल PSLV लॉन्चर पर एक त्रिगुट के रूप में उच्च रिज़ॉल्यूशन HRSAT की एक नई शृंखला लॉन्च करने की योजना बना रही है।
  • आगामी EO उपग्रहों में रडार इमेजिंग उपग्रह RISAT-2BR2, RISAT- 1A और 2A, ओशनसैट -3 एवं रिसोर्ससैट -3 / 3 एस शामिल हैं।
  • RISAT-2BR2 अपने पूर्ववर्तियों RISAT-2B और RISAT-2B1 के साथ एक ट्रायड बेड़ा बनाएगा जो लगभग 120 डिग्री के आसपास घूमेंगे तथा वे अंतरिक्ष से मौसम, दिन/रात इमेजिंग सेवाएँ प्रदान करने के लिये महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में अवलोकन की आवृत्ति में वृद्धि करेंगे।
  • इसरो का एक दशक के भीतर अमेरिका एवं चीन की भाँति स्वयं का अंतरिक्ष स्टेशन विकसित करने का लक्ष्य भी है।
  • इसके अतिरिक्त इसरो के आगामी वर्षों में चंद्रयान- 3, गगनयान, आदित्य L-1 जैसे बड़े एवं महत्त्वाकांक्षी मिशन प्रस्तावित हैं।

इसरो द्वारा प्रस्तावित एवं सक्रिय मिशन का महत्त्व

  • इसके माध्यम से भारत को अंतरिक्ष कूटनीति के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण स्थान दिलाया जा सकता है।
  • इसके ज़रिये अंतरिक्ष एवं पृथ्वी की उत्पत्ति से संबंधित विभिन्न प्रकार के प्रश्नों को सुलझाया जा सकता है जिसके उपयोग से भविष्य की चुनौतियों से निपटने के लिये उपाय खोजे जा सकते हैं।
  • साथ ही संचार सेवा, सुरक्षा एवं नौवहन तकनीक के उपयोग से राष्ट्र की सीमाओं, मौसम एवं कृषि संबंधी पूर्वानुमान जैसे अनेक क्षेत्रों की निगरानी एवं सुरक्षा संभव है।

आगे की राह

  • अंतरिक्ष विज्ञान से संबंधित क्रियाकलापों को भारतीय शिक्षा प्रणाली में उचित स्थान दिये जाने की आवश्यकता है तथा युवा विज्ञानी कार्यक्रम (YUVIKA) जैसे कार्यक्रमों के माध्यम से बच्चों में अंतरिक्ष विज्ञान एवं अंतरिक्ष खोजों के प्रति रुचि पैदा करने की आवश्यकता है।
  • शिक्षा प्रणाली में सकारात्मक परिवर्तन के माध्यम से शिक्षा पद्धति में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी की सैद्धांतिक शिक्षा के साथ प्रायोगिक शिक्षा को भी महत्त्व प्रदान किया जाना चाहिये।
  • इसके अतिरिक्त विभिन्न अंतरिक्ष कार्यक्रमों हेतु इसरो को आवंटित धन में वृद्धि की जानी चाहिये ताकि इसरो अपने कार्यक्रमों को बेहतर तरीके से संचालित कर पाए।

स्रोत: द हिंदू

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