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राज्यसभा

विशेष/इन-डेप्थ: चलो...चलें सूरज की ओर (Parker Solar Probe on Mission SUN)

  • 12 Apr 2018
  • 21 min read

संदर्भ एवं पृष्ठभूमि

सूर्य के बेहद निकट पहुँचने के मानव के पहले प्रयास के तहत अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा अपना 'पार्कर सोलर प्रोब' (अंतरिक्ष यान) जुलाई-अगस्त में लॉन्च करने की तैयारी कर रही है। इस प्रोब को फ्लोरिडा स्थित नासा के केप केनेडी स्पेस सेंटर के लॉन्च कांप्लेक्स-37 से डेल्टा 4 रॉकेट के माध्यम से अंतरिक्ष में भेजा जाएगा। नासा के अनुसार 31 जुलाई, 2018 से खुलने वाली 20 दिवसीय लॉन्च विंडो के दौरान इसे प्रक्षेपित किया जाएगा। लॉन्च विंडो 31 जुलाई को सुबह चार बजे खुलेगी और उसके बाद 19 अगस्त तक रोज़ सुबह चार बजे से थोड़ा पहले खुलेगी। यह प्रोब नवंबर 2018 में सूर्य के निकट पहुँचेगा।

कोपरनिकस और ब्रूनो की सौरमंडलीय अवधारणा

जब निकोलस कोपरनिकस ने सर्वप्रथम यह बताया कि पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा करती है तथा पृथ्वी ब्रह्मांड के केंद्र में नहीं है, तो लोगों ने इस पर सहज विश्वास नहीं किया था। कोपरनिकस के इस सूर्यकेंद्री मॉडल में यह बताया गया था कि पृथ्वी व अन्य ग्रह सूर्य की परिक्रमा करते हैं। लेकिन चर्च ने कोपरनिकस के सिद्धांत को प्रचारित तथा प्रसारित करने पर रोक लगा दी। बाद में जब रोमन प्रचारक ज्योदार्न ब्रूनो को कोपरनिकस के सिद्धांत के बारे में पता चला तो उसने कोपरनिकस के मॉडल का अध्ययन किया तथा इसे समर्थन भी दिया। ब्रूनो ने बताया कि सूर्य एक तारा है और ब्रह्मांड में ऐसे अनगिनत तारे हैं। आकाश अनंत है, तथा हमारे सौरमंडल की तरह अन्य अनेक सौरमंडल इस ब्रह्मांड में मौजूद हैं। 18वीं सदी आते-आते अन्य सौरमंडलों के होने की ब्रूनो की इस संकल्पना को स्वीकार कर लिया गया था।

पहले खगोल वैज्ञानिकों का यह मानना था कि पृथ्वी की संरचना भी सूर्य की ही तरह है, लेकिन बाद में पता चला कि पृथ्वी और सूर्य की रासायनिक संरचना एक-दूसरे से बिलकुल अलग है। वैज्ञानिकों का मानना था कि सौरमंडल में सभी वस्तुओं की संरचना एक जैसे रासायनिक तत्त्वों से हुई है, लेकिन जब वैज्ञानिकों ने सूर्य और पृथ्वी की संरचना का अध्ययन किया तो पता चला कि पृथ्वी और सूर्य की रासायनिक संरचना में बहुत अंतर है। वैज्ञानिकों ने पृथ्वी के गर्भ से निकली एक चट्टान का 20 वर्ष तक अध्ययन करने के बाद पाया कि पृथ्वी की संरचना भीतर से वैसी नहीं है जैसी समझी जाती है।

(टीम दृष्टि इनपुट)

पार्कर सोलर प्रोब की विशेषताएँ

  • यह पहली बार है जब नासा सूर्य के वायुमंडल में अपने किसी यान को भेजने जा रहा है। 
  • यह प्रोब सूर्य के वायुमंडल की सतह के इतना करीब तक जाएगा, जहाँ तक पहले कोई भी अंतरिक्ष यान नहीं गया।
  • छोटी कार के आकार वाले इस प्रोब का निर्माण 1.5 अरब डॉलर की लागत से जॉन हॉपकिंस यूनिवर्सिटी लैब ने किया है।
  • नासा ने ‘पार्कर सोलर प्रोब’ का नाम प्रख्यात खगोल भौतिकीविद् यूज़ीन पार्कर के सम्मान में रखा है। पहले इसका नाम सोलर प्रोब प्लस था।
  • 90 साल के यूज़ीन पार्कर ने लगभग 60 साल पहले 1958 में पहली बार यह बताया था कि अंतरिक्ष में सौर तूफान भी चलते हैं। 
  • अमेरिका में यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो के प्रोफेसर पार्कर के अनुसार सौर जांच अंतरिक्ष के ऐसे क्षेत्र में की जाएगी जिसमें पहले कभी अन्वेषण नहीं किया गया है। 
  • यह पहली बार है जब नासा ने किसी जीवित व्यक्ति के नाम पर अंतरिक्ष यान का नाम रखा है।
  • पार्कर सोलर प्रोब परियोजना की वैज्ञानिक निकोला फॉक्स के अनुसार यह प्रोब सौर भौतिकी के उन प्रश्नों का उत्तर देगा जिन्होंने छह से अधिक दशकों से वैज्ञानिकों को उलझा रखा है। 
  • यह प्रोब सूर्य के कई बड़े रहस्यों से पर्दा उठाते हुए यह जानने की कोशिश भी करेगा कि सूर्य का 'कोरोना' इसकी सतह की तुलना में इतना अधिक गर्म क्यों होता है।
  • यह प्रोब बेहद अधिक तापमान और अत्यधिक विकिरण वाली परिस्थितियों का सामना करेगा और अंतत: एक ऐसे तारे का सबसे निकटतम पर्यवेक्षण उपलब्ध कराएगा, जिसके बारे में बहुत अधिक वैज्ञानिक जानकारी उपलब्ध नहीं है। 
  • इस प्रोब का 4.5 इंच मोटा कार्बन मिश्रित कवच (Carbon Composite Heat Shield) इसे और इसके उपकरणों को सूर्य की गर्मी से बचाएगा ताकि इस प्रकार की जाँच करने में कोई कठिनाई न आए।
  • यह यान सीधा सूर्य की ओर नहीं जाएगा, बल्कि पहले शुक्र का चक्कर लगाएगा और इसके बाद मंगल की कक्षा में प्रवेश करते हुए सूर्य की तरफ बढ़ेगा।
  • पार्कर सोलर प्रोब का प्रक्षेपण डेल्टा-4 नामक रॉकेट से किया जाएगा।
 सौर तूफान क्या है?

सूर्य की सतह पर कभी-कभी बेहद चमकदार प्रकाश दिखने की घटना को सन फ्लेयर (Sun Flare) कहा जाता है और पृथ्वी से ऐसा रोज़ नहीं दिखाई पड़ता। कभी-कभार होने वाली इस घटना के दौरान सूर्य के कुछ हिस्से असीम ऊर्जा छोड़ते हैं और इस ऊर्जा से एक विशेष प्रकार की चमक पैदा होती है जो आग की लपटों जैसी नज़र आती है।

अगर यह असीम ऊर्जा लगातार कई दिनों तक निकलती रहे तो इसके साथ सूर्य से अति सूक्ष्म नाभिकीय कण भी निकलते हैं। यह ऊर्जा और कण ब्रह्मांड में फैल जाते हैं। दरअसल, यह बहुत ज़बरदस्त नाभिकीय विकिरण होता है, जिसे सौर तूफान भी कहा जाता है।

सौर तूफान अपने राह में आने वाली हर चीज़ पर असर डालता है। यह वैज्ञानिकों को सूर्य को समझने का मौका भी देता है। अब तक यह पता चला है कि सौर तूफान की वज़ह से ब्रह्मांड में मौजूद कण इतने गर्म हो जाते हैं कि वे भी प्रकाश की गति से यात्रा करने लगते हैं।

सूर्य से लगातार आते आवेशित (Charged) कणों से पृथ्वी का चुंबकीय क्षेत्र इसकी रक्षा करता है। ये चुंबकीय शक्तियाँ वायुमंडल के आस-पास कवच का काम करती हैं और आवेशित कणों का रुख मोड़ देती हैं, लेकिन सौर तूफान के दौरान कई आवेशित कण इस चुंबकीय कवच को भेद देते हैं।

(टीम दृष्टि इनपुट)

  •  इस अभियान की समयावधि 6 वर्ष 321 दिन की होगी।
  • इस अवधि में यह प्रोब सूर्य की कक्षा में 24 बार परिक्रमा करेगा।
  • इसमें चार ऐसे उपकरणों (पेलोड) को भेजा जाएगा जो सूर्य के चुंबकीय क्षेत्र, प्लाज़्मा और ऊर्जा कणों का परीक्षण कर उनका 3-D चित्र तैयार करेंगे। 
  • इस प्रोब की लंबाई 1 मीटर, ऊँचाई 2.5 मीटर तथा चौड़ाई 3 मीटर है।
  • सूर्य के सौर वातावरण तक का सफर तय करने के दौरान यह प्रोब सूर्य की सतह के 62 लाख किमी. के दायरे में परिक्रमा करेगा।
  • यह प्रोब 1977 में प्रक्षेपित हीलियम-2 की तुलना में सूर्य के वातावरण में 7 गुना अधिक आगे तक जाएगा। 
  • अधिकतम 6.92 लाख किमी. प्रति घंटे की रफ्तार से पार्कर सोलर प्रोब कुल 59 लाख किमी. से अधिक का सफर तय करेगा। 
  • सूर्य के निकट पहुँचते ही इस यान की रफ़्तार 192 किमी. प्रति सेकण्ड हो जाएगी। 

सूर्य को कितना पहचानते हैं आप? 

सूर्य को तीन हिस्सों में बाँटा जा सकता है--इसके कोर ज़ोन में नाभिकीय क्रियाएँ होती हैं, जिनसे उत्पन्न विकीर्णित ऊर्जा को इसका रेडिएटिव ज़ोन बाहर फेंकता है तथा कनवेक्शन ज़ोन इस विकीर्णित ऊर्जा को सतह तक लाता है। 

  • सूर्य अपने अक्ष पर एक परिक्रमा 25 दिन 9 घण्टे 7 मिनट में करता है। 
  • पृथ्वी से सूर्य की दूरी 149.8 मिलियन किलोमीटर है। 
  • पृथ्वी की तुलना में सूर्य 13 लाख गुना बड़ा है तथा 3 लाख 33 हज़ार गुना भारी है। 
  • सूर्य का व्यास 13 लाख 92 हज़ार किलोमीटर है, जो पृथ्वी के व्यास से 107 गुना अधिक है। 
  • सूर्य की सतह का तापक्रम लगभग 5500 डि.से. है।
  • सूर्य के वातावरण का तापमान इसे 300 गुना अधिक है। 
  • सूर्य के कोर का तापमान 15 मिलियन डि.से. है।
  • सूर्य की सतह से कोरोना की दूरी 38 लाख मील है।
  • सूर्य का परिभ्रमण काल 250 मिलियन वर्ष है। 
  • सूर्य अपनी धुरी पर 250 किलोमीटर प्रति सेकण्ड की गति से घूमता है। 
  • सूर्य संरचना में 71% हाइड्रोजन, 26.5% हीलियम और 2.5% अन्य तत्त्व हैं। 
  • सूर्य की संभावित आयु लगभग 5 बिलियन वर्ष है। 
  • सूर्य से पृथ्वी तक प्रकाश को पहुँचने में 8 मिनट 20 सेकण्ड का समय लगता है। 
  • प्रकाश की गति लगभग तीन लाख किमी. प्रति सेकण्ड आँकी गई है।

प्रकाश वर्ष: प्रकाश द्वारा निर्वात में एक वर्ष में तय की गई दूरी को प्रकाश वर्ष कहते हैं। एक प्रकाश वर्ष लगभग दस ट्रिलियन किलोमीटर (=9.5 x 1012  किलोमीटर) के बराबर होता है। 

(टीम दृष्टि इनपुट)

प्रोब की सुरक्षा

  • सूर्य की बाहरी कक्षा इसकी सतह के मुकाबले सैकड़ों गुना ज़्यादा गर्म होती है। इसका तापमान 5 लाख डिग्री सेल्सियस या इससे भी ज़्यादा हो सकता है।
  • पार्कर सोलर प्रोब को सूर्य के ताप से बचाने के लिये इसमें स्पेशल थर्मल प्रोटेक्शन सिस्टम यानी हीट शील्ड लगाई गई है। 
  • यह शील्ड फाइबर और ग्रेफाइट (ठोस कार्बन) से तैयार की गई है।
  • इस हीट शील्ड की मोटाई 11.43 सेमी. है, जो यान के बाहर लगभग 1377 डि.से. का तापमान झेल सकेगी।
  • सभी वैज्ञानिक उपकरणों एवं संचालन यंत्रों को इस शील्ड के पीछे व्यवस्थित किया जाएगा ताकि ये सभी यंत्र सूर्य की रोशनी से सीधे प्रभावित न हों।
  • अब तक देखा यह गया है कि सूर्य के निकट जाने वाले किसी भी यान से कोई संकेत नहीं मिलते, क्योंकि अत्यधिक गर्म वातावरण में यंत्र काम करना बंद कर देते हैं। 

क्या खास होगा इस मिशन में?

  • यह अभियान सौर पवन के स्रोतों पर मौजूद चुंबकीय क्षेत्र की बनावट और इनके डायनामिक्स की पहल करेगा।
  • सौर तूफान चार्ज किये गए कणों से बने होते हैं, जो लाखों मील की गति से दूर-दूर तक जाते हैं। अभी तक इसे केवल कैमरे और दूरबीन का उपयोग करके ही देखा जाता था।
  • यह सूर्य के सबसे बाहरी हिस्से (कोरोना) को गर्म करने वाली तथा सौर तूफानों को गति प्रदान करने वाली ऊर्जा के बहाव को समझने में सहायक सिद्ध होगा। 
  • इसकी सहायता से सूर्य के वातावरण से उत्सर्जित होने वाले ऊर्जा कणों को मिलने वाली गति के विषय में भी जानकारी प्राप्त हो सकेगी।
  • सूर्य के आस-पास मौजूद धूल प्लाज़्मा को खंगालना और सौर आँधी एवं सौर ऊर्जा कणों पर उनके असर को समझने में मदद मिलेगी।
  • इसकी मदद से खगोलीय मौसम की घटनाओं का बेहतर अनुमान लगाते हुए यह भी समझा जा सकेगा कि अंतरिक्ष की इन घटनाओं का पृथ्वी पर क्या असर होता है।
  • इस मिशन से यह जानकारी भी मिल सकेगी कि कैसे सूर्य के चारों ओर हीलियोस्फियर का निर्माण होता है, जिसकी वज़ह से सूर्य के चारों ओर का तापमान इतना ज़्यादा होता है।
  • इससे यह पता लगाने में भी सहायता मिलेगी कि वे कौन से कारक हैं जो सूर्य की सौर वायु और आवेशित कणों को गति देते हैं।

भारत का मिशन आदित्य L-1

मंगल अभियान और चंद्रयान-1 की सफ़लता के बाद इसरो के वैज्ञानिक अब 'सन मिशन' की तैयारी कर रहे हैं। सूर्य के कोरोना का अध्ययन करने एवं पृथ्वी पर इलेक्ट्रॉनिक संचार में व्यवधान पैदा करने वाली सौर पवनों की जानकारी हासिल करने के लिये भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने आदित्य L-1 उपग्रह का प्रक्षेपण वर्ष 2020 में करने की योजना बनाई है।

क्या करेगा आदित्य L-1?

  • आदित्य L-1 सोलर कोरोनोग्राफ की सहायता से सूर्य के सबसे भारी भाग का अध्ययन करेगा। 
  • अभी तक वैज्ञानिक सूर्य के कोरोना का अध्ययन केवल सूर्य ग्रहण के समय ही कर पाते हैं।
  • इससे कॉस्मिक किरणों, सौर तूफानों और विकिरण के अध्ययन में मदद मिलेगी। 
  • सौर पवनों के अध्ययन से जानकारी मिलेगी कि ये किस तरह से पृथ्वी पर इलेक्ट्रिक प्रणालियों और संचार नेटवर्क को प्रभावित करती हैं। 
  • इससे सूर्य के कोरोना से धरती के भू-चुम्बकीय क्षेत्र में होने वाले बदलावों के बारे में घटनाओं को समझा जा सकेगा। 
  • लगभग 200 किग्रा. वज़नी आदित्य L-1 सूर्य के कोरोना का अध्ययन कृत्रिम ग्रहण द्वारा करेगा और इसका अध्ययन काल 10 वर्ष रहेगा। 

सौर मैक्सिमा (Solar Maxima) के अध्ययन में सहायक 

  • आदित्य L-1 से वैज्ञानिकों को सौर मैक्सिमा (Solar Maxima) के अध्ययन का मौका मिलेगा सौर मैक्सिमा एक ऎसी खगोलीय घटना है, जो प्रत्येक 11 वर्ष बाद घटित होती है। पिछली बार सौर मैक्सिमा की घटना 2012 में हुई थी। इस दौरान सूर्य की सतह से असामान्य सौर लपटें उठती हैं और उनका पृथ्वी के मौसम पर व्यापक प्रभाव होता है। 

लग्रांज बिंदु के निकट स्थापित होगा 

  • आदित्य L-1 को सूर्य के प्रभामंडल के कक्षा में एल-1 लग्रांज बिंदु के निकट स्थापित किया जाएगा। यहाँ से यह सूर्य पर लगातार नज़र रख सकेगा और सूर्य ग्रहण के समय भी इस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। 
  • सूर्य के केंद्र से पृथ्वी के केंद्र तक एक सरल रेखा खींचने पर जहाँ सूर्य और पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण बल बराबर होते हैं, उसे लग्रांज बिंदु कहते हैं। 
  • दरअसल, सूर्य का गुरुत्वाकर्षण बल पृथ्वी की तुलना में काफी अधिक है, यदि कोई वस्तु इस रेखा के बीचों-बीच रखी जाए तो वह सूर्य के गुरुत्वाकर्षण से उसमें समा जाएगी। 
  • लग्रांज बिंदु पर सूर्य और पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण बल समान रूप से लगने से दोनों का प्रभाव बराबर हो जाता है। 
  • इस स्थिति में वस्तु को न तो सूर्य अपनी ओर खींच पाएगा, न पृथ्वी अपनी ओर खींच सकेगी और वस्तु अधर में लटकी रहेगी। 
  • लग्रांज बिंदु को एल-1, एल-2, एल-3, एल-4 और एल-5 से निरूपित किया जाता है। इसरो की योजना पृथ्वी से 800 किलोमीटर ऊपर एल-1 लग्रांज बिंदु के निकट आदित्य L-1 को स्थापित करने की है। 
  • 200 किलोग्राम वज़नी आदित्य L-1 को पीएसएलवी (एक्सएल) से प्रक्षेपित किया जाएगा। 

ये पेलोड होंगे आदित्य L-1 में 

आदित्य L-1 से प्राप्त आँकड़ों और अध्ययनों से इसरो भविष्य में सौर मैक्सिमा से अपने उपग्रहों की रक्षा कर सकेगा। इसरो ने इसके लिये कुछ उपकरणों का चयन भी किया है, जो आदित्य-1 के पेलोड होंगे। इनमें विज़िबल एमिशन लाइन कॅरोनोग्राफ, सोलर अल्ट्रा-वॉयलेट इमेजिंग टेलीस्कोप, प्लाज़्मा एनालाइज़र पैकेज, आदित्य सोलर विंड एक्सपेरिमेंट, सोलर एनर्जी एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर और हाई एनर्जी एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर शामिल हैं। 

(टीम दृष्टि इनपुट)

निष्कर्ष: सूर्य के बारे में मनुष्य की जानकारियाँ आधी-अधूरी हैं और हमें सूर्य के बारे में बहुत कुछ जानना बाकी है। जैसे कि अभी सोलर कोरोना के बारे में वैज्ञानिक अधिक नहीं जानते, ज्वालाएँ कब उत्पन्न होंगी...इसका कोई अनुमान वैज्ञानिक नहीं लगा पाते। पृथ्वी से सूर्य का कोरोना केवल पूर्ण सूर्य ग्रहण के दौरान ही दिखाई देता है। लेकिन सूर्य का अध्ययन करने के लिये भेजा जा रहा पार्कर सोलर प्रोब यदि सफलतापूर्वक काम करता रहा तो कोरोना के अध्ययन से सूर्य पर होने वाली इस प्रकार की गतिविधियों के बारे में महत्त्वपूर्ण जानकारियाँ मिल सकेंगी।

अंतरिक्ष के लिये रवाना होने के बाद यह अंतरिक्ष यान सीधा सूर्य के कोरोना में पहुँचेगा, जहाँ अब तक कोई मानव निर्मित वस्तु नहीं पहुँच पाई है। सूर्य की प्रचंड ताप और विकिरण को झेलते हुए इस मिशन से विज्ञान की मौलिक गुत्थियाँ सुलझाने में मदद मिलेगी। सूर्य की सतह और सूर्य के आसपास हो रही गतिविधियों तथा सौर विस्फोटकों के बारे में भी लोग जान सकेंगे। इसके अलावा, नासा का यह मिशन शायद इन बातों का भी जवाब दे पाएगा कि सूर्य की सतह उसके वातावरण की तरह गर्म क्यों नहीं है? सौर पवनों को गति कैसे मिलती है? सूर्य कई बार इतनी अधिक ऊर्जा के कण क्यों उत्सर्जित करता है, जो असुरक्षित अंतरिक्ष यात्रियों और अंतरिक्ष यानों के लिये खतरा बन जाते हैं?

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