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डेली न्यूज़

अंतर्राष्ट्रीय संबंध

प्रीलिम्स फैक्ट्स : 7 फरवरी, 2018

  • 07 Feb 2018
  • 8 min read

अग्नि 1 मिसाइल

भारत ने मंगलवार को सतह से सतह पर मार करने में सक्षम स्वदेशी अग्नि 1 बैलिस्टिक मिसाइल का सफल परीक्षण किया है। भारतीय सेना के सामरिक कमांड बल द्वारा अब्दुल कलाम द्वीप (व्हीलर द्वीप) से परमाणु हथियार ले जाने में सक्षम इस मिसाइल का परीक्षण किया गया।

  • यह परिक्षण इंटिग्रेटेड तेंज के लॉन्च पैड से किया गया।

प्रमुख विशेषताएँ

  • ठोस इंजन आधारित मिसाइल तकनीक।
  • मारक क्षमता 900 किलोमीटर।
  • 1000 किलोग्राम तक के परमाणु हथियार ले जाने में सक्षम।
  • मिसाइल का वजन 12000 किलोग्राम है।
  • सशत्र बल में शामिल पहली एवं एकमात्र ठोस इंजन वाली मिसाइल।
  • लंबाई 15 मीटरइसे रेल एवं सड़क दोनों प्रकार के मोबाईल लॉन्चर से छोड़ा जा सकता है।

दुनिया का सबसे शक्तिशाली राकेट

'स्पेसएक्स' कंपनी द्वारा 'फ़ॉल्कन हेवी' नामक एक विशाल रॉकेट तोहलमप ने केप केनावेराल स्थित अमरीकी अंतरिक्ष संस्था नासा के जॉन एफ़ कैनैडी स्पेस सेंटर से उड़ान भरी।

  • ‘फ़ॉल्कन हेवी' के टैंक में एक टेस्ला कार रखी गई है। यह गाड़ी अंतरिक्ष की कक्षा में पहुँचने वाली विश्व की पहली कार होगी।
  • इस रॉकेट को कैनेडी सेंटर के उसी LC-39A प्लेटफ़ॉर्म से लॉन्च किया गया है जहाँ से अपोलो मिशन को लॉन्च किया गया था। 
  • टेस्ला और स्पेसएक्स ये दोनों कंपनियाँ अरबपति कारोबारी एलन मस्क की कंपनियाँ हैं। एलन मस्क की योजना 'फ़ॉल्कन हेवी' जैसे भारी-भरकम रॉकेट को भविष्य में मंगल ग्रह के लिये शुरू किये जाने वाले अभियानों में इस्तेमाल किये जाने की है।

विशेषताएँ

  • इस रॉकेट की लंबाई 70 मीटर है।
  • यह अंतरिक्ष की कक्षा में तकरीबन 64 टन वजन स्थापित करने की सक्षमता रखता है।  ये वजन पाँच डबल डेकर बसों के बराबर है।
  • इस कार की ड्राइविंग सीट पर स्पेस सूट पहने व्यक्ति का बुत रखा गया है। अगर यह रॉकेट अपनी उड़ान के सभी चरणों में कामयाब रहा तो टेस्ला कार और उसके मुसाफिर को सूर्य के आस-पास अंडाकार कक्षा में पहुँचा देगा। साथ ही वो जगह मंगल ग्रह के काफी पास होगी। 

ट्रैपिस्ट-1 नामक लाल तारे का चक्कर लगाने वाले ग्रह

बर्न विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों द्वारा ट्रैपिस्ट-1 नामक लाल तारे का चक्कर लगाने वाले साथ ग्रहों पर पानी मिलने की संभावना व्यक्त की गई है। इन सात ग्रहों का आकार पृथ्वी के आकार के बराबर आँका जा रहा है। 

ट्रैपिस्ट-1 क्या है?

  • यह एक अति शीतल बौना तारा (ultra-cool dwarf star) है, जो एक्वेरियस तारा समूह (Aquarius constellation) में अवस्थित है।
  • हाल ही में नासा के खगोलविदों की एक अंतर्राष्ट्रीय टीम ने नासा/ई.एस.ए. हबल स्पेस टेलीस्कोप के प्रयोग से यह अनुमान लगाया है कि 40 प्रकाश वर्ष दूर स्थित इस तारे के सात ग्रहों में पानी के मौज़ूद होने की संभावना है। अर्थात् प्राप्त आँकडों के अनुसार इस ड्वार्फ स्टार सिस्टम के कुछ ग्रह रहने योग्य हो सकते हैं।

प्रमुख बिंदु

  • ट्रैपिस्ट-1 बी इस तारामंडल का सबसे निकटतम ग्रह है। इसका वायुमंडल पृथ्वी से ज़्यादा घना है, जबकि इसका भीतरी हिस्सा पथरीला है।
  • ट्रैपिस्ट-1 सी का भी भीतरी भाग पथरीला है, लेकिन बाहरी वायुमंडल पृथ्वी की तुलना में कम सघन पाया गया है।ट्रैपिस्ट-1 डी इस तारामंडल का सबसे हल्का ग्रह है। इन सभी ग्रहों में ट्रैपिस्ट-1ई की विशेषताएँ सबसे ज़्यादा चौकाने वाली है। 
  • ट्रैपिस्ट-1 ई की विशेषताएँ बहुत हद तक पृथ्वी से मिलती-जुलती है, उदाहरण के तौर पर इसका आकार, घनत्व और ग्रहण किये विकिरण की मात्रा इस ग्रह पर जीवन की संभावना को और बढ़ा देती है। 
  • इस तारामंडल में ट्रैपिस्ट-1 जी एवं एच सुदूर स्थित ग्रह है। इस कारण इसकी सतह के पूर्ण रूप से बर्फीली होने की संभावना है।
  • ट्रैपिस्ट-1 के समीप स्थित ग्रहों पर जलवाष्प तथा सुदूर स्थित ग्रहों पर बर्फ के रूप में पानी के मौजूद होने की आशंका है। इस शोध के लिये वैज्ञानिकों द्वारा स्पिट्जर एवं केपलर टेलिस्कोप के माध्यम से आँकड़े एकत्रित किये गए।   
  • वैज्ञानिकों द्वारा इन सात ग्रहों पर पृथ्वी की तुलना में 250 गुना अधिक पानी मिलने की संभावना व्यक्त की गई है।

माइक्रोलेंसिंग 

प्रमुख बिंदु 

  • नासा के चंद्र एक्स-रे वेधशाला (Chandra X-ray Observatory) से प्राप्त डेटा का उपयोग करते हुए वैज्ञानिकों ने पहली बार मिल्की वे आकाशगंगा के बाहर ग्रहों की खोज की है। चंद्र एक्स-रे वेधशाला अंतरिक्ष में स्थापित एक दूरबीन है। 
  • अमेरिका में ओक्लाहामा विश्वविद्यालय के शोधकर्त्ताओं ने चंद्रमा के द्रव्यमान से लेकर बृहस्पति के द्रव्यमान तक वाली एक्सट्रागैलेक्टिक (मिल्की वे आकाशगंगा से परें) आकाशगंगाओं में वस्तुओं का पता लगाने के लिये माइक्रोलेंसिंग तकनीक का उपयोग किया था। 
  • माइक्रोलेंसिंग एक खगोलीय घटना है जो कि ग्रहों का पता लगाने के लिये गुरुत्वाकर्षण द्वारा वक्रित प्रकाश का उपयोग करती है।
  • जबकि ग्रहों को मिल्की वे आकाशगंगा में माइक्रोलेंसिंग उपयोग करके खोजा जाता है। वहीं छोटे पिंडों का गुरुत्वाकर्षण प्रभाव भी उच्च आवर्धन उत्पन्न कर सकता है जिसके माध्यम से आकशगंगा से परे खगोलीय घटनाओं को समझा जा सकता है।
  • यह आकाशगंगा 3.8 अरब प्रकाश वर्ष दूर स्थित है और अब तक की सर्वश्रेष्ठ दूरबीन से भी इसका अवलोकन संभव नहीं था किंतु माइक्रोलेंसिंग के कारण यह खोज संभव हो सकी है।
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