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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

पाकिस्तान ने ऐतिहासिक हिंदू विवाह विधेयक पारित किया

  • 22 Mar 2017
  • 3 min read

समाचारों में क्यों ?

गौरतलब है कि पाकिस्तान में अल्पसंख्यक हिंदुओं के विवाहों को कानूनी मान्यता देने वाला ऐतिहासिक विधेयक अब कानून बन गया है| पाकिस्तान के राष्ट्रपति ममनून हुसैन ने इस विधेयक पर हस्ताक्षर के साथ ही प्रधानमंत्री कार्यालय ने एक बयान ज़ारी हुए हिंदू विवाह विधेयक-2017 को मंजूरी दे दी है|
 
भारत के लिये महत्त्पूर्ण है यह घटनाक्रम ?

विदित हो कि नए कानून से उन हिंदू विवाहों को भी वैधता मिलेगी जो इसके लागू होने से पहले हो चुके हैं| पाकिस्तान में अब तक हिंदुओं के विवाहों को कानूनी मान्यता नहीं मिली हुई थी और यही कारण है कि उनको बच्चों को वहाँ की नागरिकता नहीं मिल पा रही थी| वहीं, महिलाओं की स्थिति सबसे ज़्यादा खराब है क्योंकि उन्हें पति की संपत्ति में हिस्सा पाने का अधिकार नहीं था| इन परिस्थितियों में भारत को प्रायः पाकिस्तान से भारी संख्या में वापस आए हिन्दुओं के पुनर्वास, अवैध नागरिकता और विभिन्न शरणार्थी समस्याओं से दो-चार होना पड़ता था, हालाँकि इस विधेयक के कानून बन जाने के बाद पाकिस्तान में हिन्दुओं कि बदहाली के कम होने की उम्मीद बन रही है|

महत्त्वपूर्ण बिंदु

नए कानून के तहत धार्मिक रीति-रिवाज से होने वाले हिंदुओं के विवाह कानूनी रूप से मान्य होंगे| इसके जरिये हिंदू पति-पत्नी के वैवाहिक अधिकारों, विवाह को रद्द घोषित करने की शर्तों, तलाक, पुनर्विवाह, महिला और बच्चों की आर्थिक सुरक्षा, आपसी सहमति से विवाह खत्म करने पर वैकल्पिक राहत जैसी बातों को कानूनी मान्यता के साथ स्पष्ट किया गया है| इसमें विवाह के लिये लड़के-लड़की की न्यूनतम आयु 18 साल रखी गई है| इसके अलावा सरकार मैरिज रजिस्ट्रार की नियुक्ति करेगी, जहाँ हिंदू अपनी शादियों का रजिस्ट्रेशन करा सकेंगे| यह कानून सिंध को छोड़कर पूरे पाकिस्तान में लागू होगा क्योंकि सिंध में पहले से ऐसा कानून मौजूद है|

निष्कर्ष

1947 में ब्रिटिश शासन के अंत के बाद, उपमहाद्वीप को दो देशों मुख्य रूप से भारत और पाकिस्तान में विभाजित कर दिया गया था, इस बँटवारे ने व्यापक धार्मिक खून-खराबे का रूप ले लिया जिसके कारण हजारों लोग मारे गए और लाखों विस्थापित हुए| वस्तुतः पाकिस्तान में पाकिस्तानी हिंदुओं के विवाहों को पंजीकृत करने के लिये अब तक कोई आवश्यक कानूनी प्रावधान नहीं बनाए गए थे, अतः पाकिस्तान का यह कदम निश्चित रूप से ऐतिहासिक और सराहनीय है|

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