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धूमकेतु जैसी विशेषताओं युक्त अद्वितीय ‘बाइनरी क्षुद्रग्रह’ का अवलोकन

  • 22 Sep 2017
  • 9 min read

चर्चा में क्यों?

हाल ही में वैज्ञानिकों द्वारा हब्बल स्पेस टेलीस्कोप की सहायता से सौरमंडल की “क्षुद्रग्रहों की पट्टी” अथवा “एस्टेरॉइड बेल्ट” में एक असाधारण छवि का अवलोकन किया गया। ध्यातव्य है कि यह छवि दो क्षुद्रग्रहों की थी, जो एक-दूसरे के चारों और परिक्रमा कर रहे थे। ऐसे क्षुद्रग्रहों को ‘बाइनरी क्षुद्रग्रह’ (binary asteroid) कहा जाता है| विदित हो कि इन वैज्ञानिकों में एक भारतीय मूल के वैज्ञानिक भी शामिल थे। 

प्रमुख बिंदु

  • दरअसल, इस पिंड की विशेषताएँ धूमकेतु के समान हैं। इसमें पदार्थ का एक उज्जवल प्रभामंडल (bright halo) है, जिसे ‘कोमा’ (coma) कहा जाता है।  साथ ही  इनमें धूल-भरी एक लम्बी पूँछ भी है। 
  • ध्यातव्य है कि हब्बल स्पेस टेलीस्कोप के माध्यम से सितम्बर 2016 में सूर्य के नजदीक पहुँचने से पहले 300163 (2006 VW139) नामक क्षुद्रग्रह का चित्र लिया गया था। 
  • इसके परिणामस्वरूप इस बात का पता चला कि यह मात्र एक पिंड नहीं था, अपितु 96 किलोमीटर की दूरी पर स्थित लगभग समान द्रव्यमान और आकार के दो क्षुद्रग्रह एक-दूसरे के चारों ओर परिक्रमा कर रहे थे। 
  • क्षुद्रग्रह 300163 (2006 VW 139) की खोज नवंबर 2006 में ‘स्पेसवाच’ द्वारा की गई थी तथा इसके पश्चात् नवंबर 2011 में ‘पैन-एसटीएआरआरएस’ (Pan—STARRS) द्वारा इसमें धूमकेतु के समान गतिविधियाँ देखी गईं। 
  • उल्लेखनीय है कि स्पेसवाच और पैन-एसटीएआरआरएस दोनों ही नासा के ‘नियर अर्थ ऑब्जेक्ट ऑब्जरवेशन’ (Near Earth Object Observations) कार्यक्रम के क्षुद्रग्रह सर्वेक्षण प्रोजेक्ट (asteroid survey projects) हैं। 
  • पैन- एसटीएआरआरएस के अवलोकनों के पश्चात् इसे “288 P” नामक धूमकेतु का दर्ज़ा भी दे दिया गया था। 
  • वस्तुतः यह अब तक का ज्ञात सर्वप्रथम ‘बाइनरी क्षुद्रग्रह’ (binary asteroid) बन गया है, और इसे मुख्य पट्टी के धूमकेतु (main-belt comet) की श्रेणी में रखा गया है।  
  • हब्बल स्पेस टेलीस्कोप द्वारा किये गए अवलोकनों से इस ‘बाइनरी सिस्टम’ में चलने वाली गतिविधियों के विषय में भी सूचनाएँ प्राप्त हुईं। 
  • वैज्ञानिकों के अनुसार, सूर्य की ऊष्मा में वृद्धि होने के साथ ही बर्फीले पानी के उर्ध्वपातन (sublimation ) के संकेत दिखाई दिये, जोकि धूमकेतु की पूँछ की उत्पत्ति से संबंधित जानकारी दे सकते थे। 
  • बाइनरी क्षुद्रग्रह की संयुक्त विशेषताओं जैसे- व्यापक पृथक्करण, एक समान आकार, उच्च विकेन्द्रित कक्षा और धूमकेतु के समान गतिविधि ने इसे कुछ ऐसे ज्ञात क्षुद्रग्रहों में अद्वितीय बना दिया, जिनमें मध्य व्यापक पृथक्करण होता है। 

परिणाम

  • बाइनरी क्षुद्रग्रह के उद्भव और विकास को समझने से सौर मंडल की आरंभिक अवस्था के विषय में जानकारियाँ प्राप्त की जा सकती हैं।  
  • इसके अतिरिक्त, मुख्य पट्टी के धूमकेतु के बारे में जानकारियाँ प्राप्त करने से इस संबंध में पता लगाया जा सकता है, कि हजारों वर्ष पूर्व सूखी पृथ्वी अथवा धरती पर पानी आखिर कहाँ से आया। 
  • यह अनुमान लगाया गया कि 2006 VW139/288P लगभग 5,000 वर्षों के लिये एक बाइनरी सिस्टम के रूप में मौजूद था। इसके तीव्र घूर्णन के कारण ही इसे वर्तमान रूप में देखा जा सकता है।  
  • हालाँकि, 2006 VW139/288P अन्य सभी ज्ञात बाइनरी क्षुद्रग्रहों से काफी अलग है। परंतु इस तथ्य ने वैज्ञानिकों के समक्ष इस संबंध में कुछ प्रश्नचिन्ह खड़े कर दिये कि क्षुद्रग्रहों की पट्टी में ऐसे सिस्टम सामान्यतः क्यों पाए जाते हैं? 

क्षुद्रग्रह क्या हैं?

  • क्षुद्रग्रहों को कभी-कभी ‘छोटे ग्रह’ (minor planets) भी कहा जाता है।  ये चट्टानी अवशेष हैं, जिन्हें लगभग 4.6 बिलियन वर्ष पूर्व सौर मंडल के आरंभिक निर्माण के दौरान छोड़ दिया गया था। 
  • सभी क्षुद्रग्रहों का कुल द्रव्यमान पृथ्वी के उपग्रह के द्रव्यमान से कम होता है। 
  • 150 से अधिक क्षुद्रग्रहों के दो चन्द्रमा हैं। इसलिये इन्हें ‘बाइनरी क्षुद्रग्रह’ भी कहा जाता है। इनमें एक समान आकार के दो चट्टानी पिंड एक दूसरे की परिक्रमा करते हैं। 
  • इनका वर्गीकरण मुख्य क्षुद्रग्रह पट्टी (main asteroid belt), ट्रोजन्स (trojans) और पृथ्वी के समीप उपस्थित क्षुद्रग्रह (near earth asteroids) में किया जाता है। 

धूमकेतु क्या हैं?

  • धूमकेतु बर्फीले पिंड होते हैं जिनसे गैस और धूल का उत्सर्जन होता है।  
  • इनकी तुलना प्रायः डर्टी स्नोबॉल (dirty snowball) से की जाती है। हालाँकि कुछ अनुसंधानों के पश्चात् वैज्ञानिक इन्हें बर्फीली डर्टबॉल (snowy dirtballs) के नाम से भी जानने लगे हैं।  
  • धूमकेतु में धूल, बर्फ, कार्बन-डाइऑक्साइड, अमोनिया, मीथेन आदि होते हैं।  धूमकेतु सूर्य के चारों और परिक्रमा तो करते हैं, परन्तु इनमें से अधिकांश धूमकेतु ऐसे स्थानों पर पाए जाते हैं जिन्हें ‘ऊर्ट क्लाउड’ (oort cloud) कहा जाता है।  यह ऊर्ट क्लाउड प्लूटो की कक्षा से काफी दूर हैं। 

हब्बल स्पेस टेलीस्कोप

  • हब्बल स्पेस टेलीस्कोप यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी और नासा के सहयोग से बनाया गया था।  यह दीर्घकालिक-अंतरिक्ष आधारित वैधशाला है।  
  • इसे 24 अप्रैल 1990 को लॉन्च किया गया था|
  • यह ऐसा पहला बड़ा प्रकाशीय टेलीस्कोप है जिसे अंतरिक्ष में रखा गया है|
  • वर्ष 1990 से लेकर अब तक यह 1.3 मिलियन से अधिक अवलोकन कर चुका है। 
  • इसे अब तक का सर्वाधिक उत्पादक वैज्ञानिक उपकरण माना जाता है। 
  • इसकी लम्बाई 13.3 मीटर (43.5 फीट ) है। 
  • इसमें कोई प्रणोदक नहीं है, सांकेतिक बिन्दुओं को बदलने के लिये यह अपने चक्कों को विपरीत दिशा में घुमाकर न्यूटन के तीसरे नियम का उपयोग करता है।  
  • वायुमंडल की धुंध से परे यह 0.05 अर्क सेकंड के कोणीय आकार वाले खगोलीय पिंडों को देख सकता है। 
  • इसका भार लॉन्च के समय 24,000 पौंड था परन्तु वर्तमान में इसका भार 27,000 पौंड है।
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