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जैव विविधता और पर्यावरण

एमएसएमई हेतु जलवायु वित्त की आवश्यकता

  • 23 Jun 2022
  • 10 min read

प्रिलिम्स के लिये:

एमएसएमई, जलवायु वित्त, CoP26, UNFCCC। 

मेन्स के लिये:

जलवायु वित्त, CoP26। 

चर्चा में क्यों? 

सेंटर फॉर स्टडी ऑफ साइंस, टेक्नोलॉजी एंड पॉलिसी (CSTEP) की 2018 में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (MSME) लगभग 110 मिलियन टन CO2 उत्पन्न करता है। भारत के MSME को उत्सर्जन और जलवायु वित्त को कम करना चाहिये, क्योंकि उन्हें इसकी ज़रूरत है। 

  • MSME क्षेत्र भारत के सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 30% का योगदान देता है और लगभग 120 मिलियन लोगों को रोज़गार प्रदान करता है। 

MSME के उत्सर्जन पर अंकुश लगाने की आवश्यकता: 

  • CoP26 के प्रति भारत की प्रतिबद्धता: 
  • कार्बन पदचिह्न को कम करना: 
    • CSTEP रिपोर्ट में कहा गया है कि MSME क्षेत्र ने 2015-16 में भारत में आपूर्ति किये गए कुल कोयले /लिग्नाइट का 13%, पेट्रोलियम उत्पादों का 7% औ प्राकृतिक गैस का 8% उपयोग किया। 
    • MSME क्षेत्र को नई प्रौद्योगिकियों को अपनाने के लिये मदद की ज़रूरत है ताकि तेज़ी से अपने कार्बन पदचिह्न को कम कर सके और इसे जलवायु परिवर्तन और जोखिम के प्रति कम संवेदनशील बना दें। 
    • यह क्षेत्र जलवायु वित्त की सहायता से इस परिवर्तन को प्राप्त कर सकता है। 
    • पारंपरिक वित्त अकेले इस क्षेत्र को कार्बन मुक्त होने में मदद नहीं कर सकते हैं। 

जलवायु वित्त: 

  • जलवायु वित्त विकसित देशों (जो अधिकांश ऐतिहासिक उत्सर्जन के लिये ज़िम्मेदार हैं) द्वारा विकासशील देशों को उत्सर्जन में कमी के उपायों और अनुकूलन हेतु मदद करने के लिये भुगतान किया गया धन है। 
  • जलवायु वित्त मार्ग प्रदान करेगा और विकसित देशों से विकासशील देशों को प्रौद्योगिकी तथा विशेषज्ञता के हस्तांतरण को सक्षम करेगा, जिसके लिये इन संसाधनों और क्षमता की आवश्यकता होती है ताकि जलवायु परिवर्तन का मुकाबला उस दर पर किया जा सके जिसकी वर्तमान में दुनिया मांग करती है। 

एमएसएमई को जलवायु वित्त की आवश्यकता: 

  • अत्यधिक क्रेडिट गैप: 
    • भारत में MSME क्षेत्र को भारी क्रेडिट गैप का सामना करना पड़ रहा है, जिसका अर्थ है देश में औपचारिक चैनलों से ऋण की कुल आपूर्ति और पता योग्य मांग के बीच का गैप। 
    • इंटरनेशनल फाइनेंस कॉरपोरेशन के अनुसार, वर्ष 2010 में क्रेडिट गैप लगभग 37 बिलियन डॉलर था जो वर्ष 2017 में 3,30,75,60,00,000 डॉलर तक पहुंँच गया। 
    • 10 वर्षों में यह अंतर 37% की दर से सालाना चक्रवृद्धि होता गया। 

MSME-Sector

  • वित्त प्रवाह की स्थिति: 
    • MSME क्षेत्र की कुल ऋण मांँग 8,88,42,60,00,000 अमेरिकी डॉलर है। 
    • लेकिन विडंबना यह है कि केवल इसका 16% औपचारिक क्षेत्र द्वारा पूरा किया जाता है और शेष को अनौपचारिक क्षेत्र द्वारा पूरा किया जाता है। 

MSMEs के समक्ष चुनौतियाँ: 

  • जागरुकता का अभाव:  
    • MSMEs के लिये जलवायु वित्त अभी भी एक कल्पना है, क्योंकि कई अभी भी पारंपरिक वित्तपोषण प्राप्त करने के लिये संघर्ष करते हैं। 
    • MSME क्षेत्र में जलवायु वित्त संरचनाओं और नीतियों के बारे में जागरूकता का अभाव है। 
    • जलवायु वित्त से उनके व्यवसाय को किस प्रकार अधिकाधिक लाभांवित किया जा सकता है  इस विषय पर जागरूकता की कमी और वित्तीय साक्षरता की कमी के कारण उनका ज्ञान सीमित है। 
  • औपचारिक वित्तीय संरचना: 
    • भारत में केवल लगभग 16 प्रतिशत MSMEs को देश की औपचारिक बैंकिंग प्रणाली के माध्यम से वित्तपोषित किया गया है। 
    • भारत में अधिकांश जलवायु वित्त सख्त दिशा-निर्देशों के साथ औपचारिक वित्तीय ढांँचे के माध्यम से उपलब्ध कराया जाता है, यह लाभ प्राप्त करने के लिये इस क्षेत्र पर एक बड़ी बाधा भी डालता है। 
  • व्यापक प्रक्रियात्मक आवश्यकताएंँ: 
    • अंतर्राष्ट्रीय जलवायु निधि प्रक्रियाओं का लाभ उठाने के लिये व्यापक प्रक्रियाओं की आवश्यकता है। 
    • इनमें एक विस्तृत परियोजना का निर्माण, ऊर्जा और उत्सर्जन लेखा परीक्षा रिपोर्ट आदि शामिल हैं।  
    •  कई छोटे और सूक्ष्म व्यवसाय इन्हें लागू नहीं कर सकते क्योंकि उनके पास ऐसा करने के लिये साधन या क्षमता का अभाव है। 

आगे की राह: 

  • भारत सरकार को रणनीतियों पर कार्य करने और MSME के लिये वित्त उपलब्ध कराने की कोशिश करने की ज़रूरत है ताकि इस क्षेत्र को डीकार्बोनाइज किया जा सके। 
  • इस क्षेत्र को अधिक औपचारिक वित्तीय ऋण प्रणाली से जोड़ने की आवश्यकता है, जो उन्हें जलवायु वित्त प्राप्त करने और भारी क्रेडिट गैप को पाटने में सक्षम बनाएगी। 
  • मुख्य ध्यान डीकार्बोनाइज़ेशन के सबसे त्वरित पहलुओं पर होना चाहिये, जैसे स्वच्छ ईंधन, सामान्य दहन सुविधाएँ और ऊर्जा दक्षता प्रौद्योगिकियाँ जो इस क्षेत्र में उच्च स्तर के डीकार्बोनाइज़ेशन को प्राप्त कर सकती हैं। 

विगत वर्षों के प्रश्न 

निम्नलिखित में से कौन-सा कथन ‘कार्बन के सामाजिक मूल्य’ पद का सर्वोत्तम रूप से वर्णन करता है ? आर्थिक मूल्य के रूप में यह निम्नलिखित में से किसका माप है? 

(a) प्रदत्त वर्ष में एक टन CO2 के उत्सर्जन से होने वाली दीर्घकालीन क्षति 
(b) किसी देश की जीवाश्म ईंधनों की आवश्यकता, जिन्हें जलाकर देश अपने नागरिकों को वस्तुएँ और सेवाएँ प्रदान करता है 
(c) किसी जलवायु शरणार्थी (Climate refugee) दारा किसी नए स्थान के प्रति अनुकूलित होने हेतु किये गए प्रयास 
(d) पृथ्वी ग्रह पर किसी व्यक्ति विशेष द्वारा अंशदत कार्बन पदचिह्न 

उत्तर: (a) 

  • ‘कार्बन के सामाजिक मूल्य’ (SCC) वातावरण में एक अतिरिक्त टन ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन से होने वाली आर्थिक क्षति का अनुमान है। SCC नीति निर्माताओं और अन्य निर्णय निर्माताओं को उन निर्णयों के आर्थिक प्रभावों को समझने में मदद करने के लिये जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को आर्थिक संदर्भ में रखता है जो उत्सर्जन में वृद्धि या कमी करेंगे। 
  • कार्बन उत्सर्जन की भारत की देश-स्तरीय सामाजिक लागत $86 प्रति टन CO2 पर सबसे अधिक होने का अनुमान लगाया गया था। इसका मतलब है कि प्रत्येक अतिरिक्त टन CO2 उत्सर्जित करने से भारतीय अर्थव्यवस्था को 86 डॉलर का नुकसान होगा। भारत के बाद अमेरिका ($48) और सऊदी अरब ($47) का स्थान है। 

अतः विकल्प (a) सही उत्तर है। 

स्रोत- डाउन टू अर्थ 

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