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कृष्णा-गोदावरी बेसिन में भूमि का धँसना?

  • 24 Jul 2017
  • 3 min read

संदर्भ
कृष्णा-गोदावरी बेसिन की उपजाऊ भूमि में लवणता की मात्रा बढ़ रही है। विशेषज्ञों के अनुसार ऐसा कृष्णा-गोदावरी बेसिन में तेल और प्राकृतिक गैस के निष्कर्षण के परिणाम स्वरुप जमीन धँसने के कारण हो रहा है| 

प्रमुख बिंदु

  • आंध्र विश्वविद्यालय के सेवानिवृत्त भूविज्ञानी, जी. कृष्ण राव, जिन्होंने इस क्षेत्र में 30 से अधिक वर्षों तक काम किया है और जो क्षेत्रीय सर्वेक्षणों में प्रशिक्षित हैं, के अनुसार कृष्णा-गोदावरी बेसिन के पूर्वी तट को भूमि के अवतलन या धँसने से अधिक खतरा है ना कि जलवायु परिवर्तन के कारण समुद्र के जल स्तर के बढ़ने से।
  • श्री राव द्वारा केजी बेसिन में किये गये सर्वेक्षणों से स्पष्ट होता है कि पिछले 30 वर्षों  की अवधि में इस क्षेत्र की भूमि 1.5 फीट से 5.4 फीट धँसी है, जिसके कारण यहाँ समुद्र का जल प्रवेश करता है और मृदा में लवणता भी बढ़ रही है। 
  • भूमि के अवतलन को गन्नावरम नहर या कृत्रिम जलमार्ग, जो पूर्वी गोदावरी ज़िले में दवेल्स्वरम बाँध के साथ जुड़ा हुआ है, में बाढ़ से डूबने वाले गेज स्तरों में परिवर्तन का अध्ययन करके सत्यापित किया गया।
  • यह नहर या कृत्रिम जलमार्ग जो वर्ष 1986 में बाढ़ से 23.6 फिट तक डूब जाता था,  वर्ष 2013 में मात्र 18.2 फिट ही डूबा था।  इससे इस बात की पुष्टि होती है कि यहाँ की भूमि 5.4 फिट नीचे धँस गई है। 

विवादास्पद कारक 

  • श्री कृष्ण राव केजी बेसिन में भूमि के डूबने के लिये ओएनजीसी द्वारा तेल और प्राकृतिक गैस के निष्कर्षण को ज़िम्मेदार मानते हैं।
  • कृष्णा-गोदावरी डेल्टा परिरक्षण समिति (एक गैर सरकारी संगठन) ने ओएनजीसी सहित तेल और गैस की बड़ी कंपनियों पर इसकी ज़िम्मेदारी तय करने के लिये  हैदराबाद उच्च न्यायालय में अपील की है। 
  • उन्होंने तर्क दिया कि पृथ्वी की सतह की गहराई से हाइड्रोकार्बन की निकासी से उस बल या तनाव में कमी आई है, जो चट्टानों के निर्माण में संतुलन बनाये रखती है।  
  • ओएनजीसी ने इस बात से इंकार किया है कि केजी बेसिन में उसकी गतिविधियों के कारण उन क्षेत्रों में किसी भी तरह की गड़बड़ी पैदा हो रही है। 
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