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क्यासानूर फॉरेस्ट डिज़ीज़

  • 24 May 2021
  • 4 min read

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में क्यासानूर फॉरेस्ट डिज़ीज़ (Kyasanur Forest Disease- KFD) के तीव्रता से निदान में एक नया ‘पॉइंट-ऑफ-केयर परीक्षण’ (Point-Of-Care Test) अत्यधिक संवेदनशील पाया गया है।

  • इस रोग को मंकी फीवर (Monkey Fever) के नाम से भी जाना जाता है।

प्रमुख  बिंदु: 

पॉइंट-ऑफ-केयर परीक्षण’ के बारे में:

  • इसे इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (Indian Council of Medical Research-ICMR)- नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी द्वारा विकसित किया गया है।
  • पॉइंट-ऑफ-केयर परीक्षण में बैटरी से चलने वाला पॉलीमर चैन रिएक्शन (Polymerase Chain Reaction- PCR) एनालाइज़र शामिल है, जो एक पोर्टेबल, हल्का और यूनिवर्सल कार्ट्रिज-आधारित सैंपल प्री-ट्रीटमेंट किट और न्यूक्लिक एसिड एक्सट्रैक्शन डिवाइस (Nucleic Acid Extraction Device) है जो देखभाल के स्तर पर सैंपल प्रोसेसिंग में सहायता करता है। 
  • लाभ:
    • यह क्यासानूर फॉरेस्ट डिज़ीज़ के निदान में फायदेमंद साबित होगा क्योंकि इसका प्रकोप मुख्य रूप से दूरदराज के क्षेत्रों में होता है, जहांँ परीक्षण हेतु अच्छी तरह से सुसज्जित लैब सुविधाओं का अभाव होता है।
    • यह त्वरित रोगी प्रबंधन और वायरस के प्रसार को नियंत्रित करने में उपयोगी होगा।

क्यासानूर फॉरेस्ट डिज़ीज़:

  • यह क्यासानूर फॉरेस्ट डिज़ीज़ वायरस (Kyasanur Forest disease Virus- KFDV) के कारण होता है, जो मुख्य रूप से मनुष्यों और बंदरों को प्रभावित करता है।
  • वर्ष 1957 में इस रोग की पहचान सबसे पहले  कर्नाटक के क्यासानूर जंगल (Kyasanur Forest) के एक बीमार बंदर में की गई थी। तब से प्रतिवर्ष 400-500 लोगों के इस रोग से ग्रसित होने के  मामले सामने आए हैं।
  • परिणामस्वरूप KFD पूरे पश्चिमी घाट में एक गंभीर सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या के रूप में उभरी है।
  • संचरण:
    • यह वायरस मुख्य रूप से हार्ड टिकस ( हेमाफिसालिस स्पिनिगेरा), बंदरों, कृन्तकों (Rodents) और पक्षियों में  उपस्थित होता है।
    • मनुष्यों  में, यह कुटकी/टिक नामक कीट के काटने या संक्रमित जानवर (एक बीमार या हाल ही में मृत बंदर) के संपर्क में आने से फैलता है।

लक्षण:

  • ठंड लगना, सिरदर्द, शरीर में दर्द और 5 से 12 दिनों तक तेज़ बुखार का आना आदि। इनके कारण होने वाले मृत्यु की दर 3-5% है।
  • निदान:
    • रक्त से वायरस को अलग करके या पॉलीमर शृंखला अभिक्रिया द्वारा आणविक परीक्षण (Molecular Detection) से बीमारी के प्रारंभिक चरण में निदान किया जा सकता है।
    • बाद में सेरोलॉजिकल परीक्षण (Serologic Testing) में एंजाइम-लिंक्ड इम्यूनोसॉर्बेंट सेरोलॉजिक ऐसे-एलिसा  (Enzyme-linked Immunosorbent Serologic Assay- ELISA) का उपयोग किया जा सकता है।।

उपचार और रोकथाम:

  • मंकी फीवर का कोई विशेष इलाज नहीं है।
  • केएफडी हेतु फॉर्मेलिन इनएक्टिवेटेड केएफडीवी वैक्सीन मौजूद है जिसका उपयोग भारत के स्थानिक क्षेत्रों में किया जाता है।
    • हालांँकि इस रोग में यह देखा गया  कि जब एक बार व्यक्ति बुखार से संक्रमित हो जाता है तो वैक्सीन कारगर साबित नहीं होती है।

KFD

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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