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कर्नाटक में लिंगायत को अलग धार्मिक अल्पसंख्यक का दर्जा देगी सरकार

  • 29 Mar 2018
  • 5 min read

चर्चा में क्यों?
हाल ही में सिद्दरमैया के नेतृत्व वाली कर्नाटक राज्य सरकार द्वारा लिंगायत एवं वीरशैव समुदाय को अलग धार्मिक अल्पसंख्यक के रूप में मान्यता प्रदान करने संबंधी प्रस्ताव को मंज़ूरी दी गई। इसके पश्चात् इस प्रस्ताव को केंद्र सरकार के पास भेजा जाएगा। इस प्रस्ताव के संबंध में आयोग द्वारा सिफारिश की गई थी।

महत्त्वपूर्ण बिंदु

  • राज्य अल्पसंख्यक आयोग द्वारा जस्टिस नागमोहन दास की अध्यक्षता में बनी विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट को आगे बढ़ाते हुए लिंगायत समुदाय को अलग धार्मिक समूह के रूप में मान्यता देने की मांग स्वीकार कर ली गई है। 
  • साथ ही यह सिफारिश भी की गई है कि इस फैसले से अन्य धार्मिक एवं भाषाई अल्पसंख्यकों को मिलने वाले लाभों पर कोई विपरीत असर नहीं पड़ना चाहिये।
  • कर्नाटक राज्य सरकार द्वारा पिछले साल दिसंबर में सात सदस्यों की एक समिति का गठन किया था।
  • गौरतलब है कि लिंगायत को भाजपा का कोर वोट बैंक माना जाता है। यही कारण है कि सरकार के इस निर्णय को राज्य विधानसभा चुनाव से पहले राजनीतिक लाभ के कथित उद्देश्य से उठाया गया कदम समझा जा रहा है।

लिंगायत एवं वीरशैव सम्प्रदाय

  • लिंगायत अर्थात् भगवान शिव का लिंग धारण करने वाले।  वीरशैव का अर्थ है भगवान शिव के वीर।
  • बारहवीं शताब्दी में कर्नाटक में एक नवीन आंदोलन का उदय हुआ, जिसका नेतृत्त्व बासवन्ना (1106-68 ) नामक एक ब्राह्मण ने किया।
  • बासवन्ना, कलाचूरी राजा के दरबार में मंत्री थे। इनके अनुयायी वीरशैव व लिंगायत कहलाए। आज भी लिंगायत समुदाय का इस क्षेत्र में महत्त्व है।
  • वे शिव की आराधना लिंग के रूप में करते हैं।
  • इस समुदाय के पुरुष अपने वाम स्कंध पर चाँदी के एक पिटारे में एक लघु लिंग को धारण करते हैं।
  • लिंगायतों का विश्वास है कि मृत्यु के बाद भक्त शिव में लीन हो जाएंगे तथा इस संसार में पुनः नहीं लौटेंगे। वे धर्मशास्त्र में बताए गए श्राद्ध संस्कार का पालन नहीं करते और अपने मृतकों को विधिपूर्वक दफनाते हैं। 
  • लिंगायतों ने जाति की अवधारणा और कुछ समुदायों के “दूषित” होने की ब्राह्मणीय अवधारणा का भी विरोध किया। पुनर्जन्म के सिद्धांतों पर भी उन्होंने प्रश्नवाचक चिन्ह लगाया।
  • इन सब कारणों से ब्राह्मणीय सामाजिक व्यवस्था में जिन समुदायों को निम्न स्थान मिला था, वे सभी लिंगायतों के अनुयायी हो गए।

इसका संवैधानिक पक्ष क्या है?

  • यद्यपि, भारतीय संविधान में ‘अल्पसंख्यक’ को नहीं परिभाषित किया गया है। किंतु, संविधान के अनुच्छेद- 29, 30, 350 (क) और 350 (ख) में ‘अल्पसंख्यक’ शब्द का उल्लेख किया गया है।
  • TMA पाई फाउंडेशन वाद में सर्वोच्च न्यायालय ने संविधान के अनुच्छेद 30(1) के तहत अल्पसंख्यक को परिभाषित करने के लिये एक इकाई के प्रश्न पर विचार किया। इसने माना कि अल्पसंख्यकों का निर्धारण केवल राज्य की जननांकीय के संदर्भ में संभव है, राष्ट्र के स्तर पर नहीं।
  • भारत में अल्पसंख्यक समुदाय के अंतर्गत दो प्रकार के अल्पसंख्यकों को शामिल किया गया है- 
    ♦ धार्मिक अल्पसंख्यकः राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग, 1992 के धार्मिक अल्पसंख्यक के तहत, धार्मिक अल्पसंख्यक के अंतर्गत मुसलमानों, सिखों, बौद्धों, पारसियों, ईसाइयों और जैनियों को शामिल किया गया है। उल्लेखनीय है कि धर्म के अंतर्गत समुदायों को धार्मिक अल्पसंख्यक की श्रेणी में नहीं रखा जाता है।
    ♦ भाषाई अल्पसंख्यकः यह राज्य-आधारित संकल्पना है, न कि राष्ट्रीय स्तर की। इसके लिये आवश्यक है कि भाषाई अल्पसंख्यकों की पृथक बोली हो, लिपि की मौजूदगी अनिवार्य नहीं है।
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