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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

इसरो का ऐतिहासिक मिशन : GSLV MK- III

  • 29 May 2017
  • 4 min read

संदर्भ
भारत जून में श्रीहरिकोटा (आंध्र प्रदेश) से अपने सबसे भारी रॉकेट जीएसएलवी मार्क-3 को लॉन्च करने की योजना बना रहा है, जो एक चार टन वज़नी संचार उपग्रह को ले जाने में सक्षम होगा। यह अपनी तरह के अंतरिक्ष मिशनों में एक "गेम-चेंजर" के रूप में साबित होगा। इसका उद्देश्य एक तरफ देश को ​​अरबों डॉलर के वैश्विक अंतरिक्ष बाज़ार में भागीदार बनाना है तो दूसरी तरफ, अंतर्राष्ट्रीय प्रमोचक यानों पर अपनी निर्भरता को कम करना है।

महत्त्वपूर्ण बिंदु

  • यह लगभग 8 टन वज़न को पृथ्वी की निम्न कक्षा (lower orbit) में स्थापित कर सकता है और साथ ही, चालक दल के मॉड्यूल (crew module) को भी ले जाने में सक्षम है।
  • सफल परीक्षण के बाद रूस, यू.एस.ए. और चीन के बाद भारत मानव अंतरिक्ष उड़ान करने वाला चौथा देश बन जाएगा । 
  • इसरो के पास वर्तमान में केवल 2.2 टन वज़न तक के पेलोड को लॉन्च करने की क्षमता है और इससे ज़्यादा वज़न के प्रक्षेपण हेतु उसे विदेशों पर निर्भर रहना पड़ता है।
  • जीएसएलवी मार्क-3 भारत का सबसे शक्तिशाली प्रमोचक यान होगा जो चार टन वज़नी संचार उपग्रहों को 36,000 किलोमीटर ऊँचाई वाली भू-स्थिर (geosynchronous) कक्षा में स्थापित कर सकेगा। ज्ञातव्य है कि वर्तमान में जीएसएलवी-मार्क-II की क्षमता लगभग 2 टन है।
  • इसकी महत्त्वपूर्ण विशेषता यह है कि इसमें भारतीय क्रायोजेनिक इंजन के तीसरे चरण का उपयोग किया गया है तथा वर्तमान जीएसएलवी की तुलना में इसमें उच्च पेलोड ले जाने की क्षमता है।
  • यह अपने साथ भू-स्तरीय विकिरण स्पेक्ट्रोमीटर पेलोड (GRASP) के साथ-साथ Ka-बैंड और Ku-बैंड पेलोड भी ले जाएगा जिनके द्वारा अंतरिक्ष यान और इलेक्ट्रॉनिक घटकों पर अंतरिक्ष विकिरण के प्रभावों का अध्ययन किया जाएगा।

क्या होगा लाभ ?

  • इससे देश को राजस्व की बचत होगी, जो वर्तमान में अपने भारी संचार उपग्रहों को विदेशी अंतरिक्ष एजेंसियों के माध्यम से भेजने पर खर्च होता है। इस धनराशि का उपयोग अनुसंधान एवं विकास कार्यों के लिये किया जा सकता है।
  • जिस प्रकार इसरो की वाणिज्यिक इकाई ‘एंट्रिक्स कॉर्पोरेशन लिमिटेड’ पीएसएलवी रॉकेट्स द्वारा काफी राजस्व अर्जित करती है, उसी प्रकार GSLV MARK-III द्वारा अन्य देशों के भारी उपग्रहों को अंतरिक्ष में प्रक्षेपित करके, काफी विदेशी मुद्रा अर्जित की जा  सकती है।
  • इससे अन्य देशों पर से भारत की निर्भरता घटेगी तथा आने वाले समय में अंतरिक्ष कार्यक्रमों के लिये बेहतर प्रोत्साहन भी मिलेगा।
  • इससे भी महत्त्वपूर्ण बात यह है कि जीएसएलवी मार्क-III के प्रक्षेपण के साथ, इसरो ने मानव रहित क्रू मॉड्यूल का भी प्रयोग किया था जो कि भविष्य में मानव अंतरिक्ष परियोजनाओं को विकसित करने में मदद करेगा । 
  • इसके सफल प्रक्षेपण के बाद देश, अंतरिक्ष कार्यक्रमों में आत्मनिर्भर बनने में सक्षम हो सकेगा।
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