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डेली न्यूज़

शासन व्यवस्था

अंतर-राज्यीय गिरफ्तारियाँ

  • 07 May 2022
  • 7 min read

प्रिलिम्स के लिये:

दंड प्रक्रिया संहिता, भारतीय संविधान की सातवीं अनुसूची, भारत के संविधान का अनुच्छेद 22(2)

मेन्स के लिये:

अंतर-राज्यीय गिरफ्तारी, पुलिस सुधार, विभिन्न सुरक्षा बल और एजेंसियाँ और उनके अधिदेश, निर्णय और मामले

चर्चा में क्यों?

हाल ही में पंजाब पुलिस द्वारा एक राजनेता की गिरफ्तारी पर दिल्ली पुलिस द्वारा पंजाब पुलिस टीम के खिलाफ अपहरण का मामला दर्ज करने पर संकट की स्थिति उत्पन्न हो गई है।

  • गिरफ्तारी को लेकर उग्र विवाद ने पुलिस अधिकार क्षेत्र और अंतर-राज्यीय पुलिस सहयोग को लेकर बहस छेड़ दी है।
  • इस तरह की राजनीतिक रूप से संचालित प्रक्रिया के प्रभाव निष्पक्षता और समानता के लिये चुनौती के अलावा और कुछ नहीं हैं। यह मामला न्याय का विषय बनने के बजाय राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता का विषय बन गया ह।

अंतर-राज्यीय गिरफ्तारी की प्रक्रिया:

  • भारतीय संविधान की सातवीं अनुसूची (सूची II) की प्रविष्टि संख्या 2 में 'पुलिस' को राज्य सूची में रखा गया है, जिसका अर्थ है कि पुलिस से संबंधित सभी मामलों पर राज्य सरकार द्वारा निर्णय लिया जाएगा।
  • मोटे तौर पर कानून की मंशा यह रही है कि किसी विशेष राज्य में अपराधी को उस राज्य की पुलिस द्वारा गिरफ्तार किया जाना चाहिये।
    • हालांँकि कुछ परिस्थितियों में कानून एक राज्य की पुलिस को दूसरे राज्य में आरोपी को गिरफ्तार करने की अनुमति देता है।
  • यह एक सक्षम न्यायालय द्वारा जारी किये गए वारंट के निष्पादन द्वारा या बिना वारंट के भी किया जा सकता है, इस मामले में संबंधित राज्य पुलिस को स्थानीय पुलिस को गिरफ्तारी के बारे में सूचित करना होता है।
  • देश भर में राज्य पुलिस बल नियमित रूप से अन्य राज्यों में गिरफ्तारी करते हैं। सामान्य तौर पर यह कार्य स्थानीय पुलिस की सहायता से किया जाता है।
    • हालांँकि कई मामलों में स्थानीय पुलिस को गिरफ्तारी से पहले या बाद में केवल सूचित किया जाता है।

अंतर-राज्यीय गिरफ्तारियों पर कानून:

  • दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 79 सक्षम अदालतों द्वारा जारी वारंट के आधार पर अंतर-राज्यीय गिरफ्तारी से संबंधित है।
    • यह धारा ऐसी गिरफ्तारियों के लिये विस्तृत प्रक्रिया निर्धारित करती है। हालाँकि जहांँ तक वारंट के बिना गिरफ्तारी का संबंध है, किसी अन्य राज्य में किसी आरोपी को गिरफ्तार करने की पुलिस की शक्तियों को स्पष्ट रूप से परिभाषित नहीं किया गया है।
  • CrPC की धारा 48 पुलिस को ऐसी शक्तियांँ देती है लेकिन प्रक्रिया को परिभाषित नहीं किया गया है।
    • धारा 48 के अनुसार, "एक पुलिस अधिकारी बिना वारंट के किसी भी व्यक्ति को गिरफ्तार करने के उद्देश्य से अर्थात् जिसे गिरफ्तार करने के लिये उसे अधिकृत किया गया है, भारत में किसी भी स्थान पर ऐसे व्यक्ति का पीछा कर सकता है।"
    • यह पूर्व से विवादित है कि क्या "पीछा करना" शब्द का अर्थ किसी अन्य राज्य में पीछा करना है या किसी ऐसे आरोपी पर लागू होना है जो दूसरे राज्य में रह रहा है और जांँचकर्त्ताओं के साथ सहयोग नहीं कर रहा है।
  • भारत के संविधान का अनुच्छेद 22(2): प्रत्येक व्यक्ति जिसे गिरफ्तार किया गया है और हिरासत में रखा गया है, को चौबीस घंटे की अवधि के भीतर निकटतम मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया जाएगा।
    • गिरफ्तारी के स्थान से मजिस्ट्रेट के न्यायालय तक की यात्रा में लगा समय 24 घंटे में शामिल नहीं है।
    • इसके अलावा “ऐसे किसी भी व्यक्ति को मजिस्ट्रेट के अधिकार के बिना उक्त अवधि के बाद हिरासत में नहीं रखा जाएगा।"
    • यह CrPC की धारा 56 और 57 में भी निर्धारित है।

न्यायालयों द्वारा अंतर-राज्यीय गिरफ्तारियों पर कानूनी व्याख्या:

  • वर्ष 2019 में 'संदीप कुमार बनाम राज्य (दिल्ली सरकार की एनसीटी)' मामले में दिल्ली उच्च न्यायालय ने अंतर-राज्यीय गिरफ्तारी हेतु कुछ दिशा-निर्देश जारी किये। उदाहरण के लिये:
    • न्यायालय द्वारा कहा गया कि एक पुलिस अधिकारी को किसी अपराधी को गिरफ्तार करने हेतु दूसरे राज्य का दौरा करने के लिये अपने वरिष्ठ अधिकारी से लिखित या फोन पर अनुमति लेनी होगी।
    • पुलिस अधिकारी को इस तरह के कदम के कारणों को लिखित रूप में दर्ज करना चाहिये और "आकस्मिक मामलों" को छोड़कर पहले न्यायालय से गिरफ्तारी वारंट प्राप्त करने का प्रयास करना चाहिये।
    • “दूसरे राज्य का दौरा करने से पहले पुलिस अधिकारी को उस स्थानीय पुलिस स्टेशन से संपर्क स्थापित करने का प्रयास करना चाहिये जिसके अधिकार क्षेत्र में वह जांँच का संचालन करता है।
  • दिशा-निर्देश "तत्काल मामलों" में एक अपवाद हैं, जिसमें एक राज्य की पुलिस दूसरे राज्य में अपने समकक्षों को आसन्न गिरफ्तारी की सूचना नहीं दे सकती है।

आगे की राह

  • सर्वोच्च न्यायालय ने स्वीकार किया कि राजनीतिक हस्तक्षेप निष्पक्ष जाँच में बाधा के रूप में काम कर रहा है।
    • इसके अतिरिक्त द्वितीय प्रशासनिक आयोग ने यह भी उल्लेख किया कि बढ़ते राजनीतिक हस्तक्षेप ने इसकी जवाबदेही का लाभ उठाया है और राजनेता व्यक्तिगत या राजनीतिक लाभ के लिये पुलिस का उपयोग कर रहे हैं।
  • इस प्रकार अति आवश्यक पुलिस सुधारों को लागू करने की तत्काल आवश्यकता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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