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डेली न्यूज़

अंतर्राष्ट्रीय संबंध

भारत: ILO के शाषी निकाय का अध्यक्ष

  • 26 Oct 2020
  • 7 min read

प्रिलिम्स के लिये

अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन, ILO शाषी निकाय, ILO के प्रमुख अभिसमय 

मेन्स के लिये

भारत और अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन

चर्चा में क्यों?

भारत और अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (International Labour Organization-ILO) के बीच 100 वर्षों के उपयोगी संबंधों के एक नए अध्याय को चिह्नित करते हुए भारत ने 35 वर्षों बाद अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के शाषी निकाय की अध्यक्षता ग्रहण की है।

प्रमुख बिंदु

  • श्रम और रोज़गार सचिव अपूर्वा चंद्रा को अक्तूबर 2020 से जून 2021 तक की अवधि के लिये ILO के शाषी निकाय का अध्यक्ष चुना गया है।
  • ILO के शाषी निकाय के अध्यक्ष का पद अंतर्राष्ट्रीय स्तर के महत्त्व का पद है। शाषी निकाय (Governing Body- GB) ILO का शीर्ष कार्यकारी निकाय है।
    • शाषी निकाय की बैठकें वर्ष में तीन बार मार्च, जून और नवंबर में आयोजित की जाती हैं। यह ILO नीति पर निर्णय लेता है, अंतर्राष्ट्रीय श्रम सम्मेलन के लिये एजेंडा निर्धारित करता है, सम्मेलन के दौरान प्रस्तुत करने के लिये कार्यक्रम प्रारूप तथा बजट को स्वीकार करता है तथा महानिदेशक (Director-General) का चुनाव करता है। 
    • ILO की व्यापक नीतियाँ अंतर्राष्ट्रीय श्रम सम्मेलन के माध्यम से निर्धारित की जाती हैं जिसका आयोजन प्रत्येक वर्ष एक बार जून में स्विट्ज़रलैंड के जिनेवा में किया जाता है। इसे प्रायः अंतर्राष्ट्रीय श्रम संसद के रूप में संदर्भित किया जाता है।
  • अपूर्वा चन्द्रा शाषी निकाय की आगामी बैठक की अध्यक्षता करेंगे जिसका आयोजन नवंबर 2020 में किया जाएगा। 
    • यह संगठित अथवा असंगठित क्षेत्र के सभी श्रमिकों को सामाजिक सुरक्षा के सार्वभौमिकरण के संबंध में धारणा स्पष्ट करने के अलावा श्रम बाज़ार की कठोरता को दूर करने के लिये सरकार द्वारा की गई परिवर्तनकारी पहलों से प्रतिभागियों को अवगत कराने हेतु एक मंच प्रदान करेगा।
    • मज़दूरी, औद्योगिक संबंध, सामाजिक एवं व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य एवं कार्य स्थिति से संबंधित चार संहिताओं से यह अपेक्षा की जा सकती है कि वे श्रमिकों के हितों की रक्षा कर सकती हैं तथा व्यवसाय संचालन को सरल बनाकर उसमें सुधार कर सकती हैं।
      • हाल ही में भारतीय संसद ने औद्योगिक संबंधों, व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य एवं कार्य स्थिति और सामाजिक सुरक्षा पर तीन श्रम संहिताएँ पारित की हैं जो देश के पुरातन श्रम कानूनों को सरल बनाने और श्रमिकों के लाभों से समझौता किये बिना आर्थिक गतिविधियों को गति देने के लिये प्रस्तावित हैं। 

अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO)

  • यह संयुक्त राष्ट्र की एकमात्र त्रिपक्षीय संस्था है जिसकी स्थापना वर्ष 1919 में वर्साय की संधि द्वारा राष्ट्र संघ की एक संबद्ध एजेंसी के रूप में की गई थी।
  • यह श्रम मानक निर्धारित करने, नीतियाँ विकसित करने एवं  सभी महिलाओं तथा पुरुषों के लिये सभ्य कार्य को बढ़ावा देने वाले कार्यक्रम तैयार करने हेतु 187 सदस्य देशों की सरकारों, नियोक्ताओं और श्रमिकों को एक साथ लाता है।
  • वर्ष 1946 में ILO, संयुक्त राष्ट्र से संबद्ध पहली विशिष्ट एजेंसी बना।
  • ILO में कार्रवाई का मुख्य साधन अभिसमयों एवं समझौतों के रूप में अंतर्राष्ट्रीय श्रम मानकों की स्थापना करना है।
    • अभिसमय अंतर्राष्ट्रीय संधियाँ और ऐसे उपकरण हैं, जो उन देशों के लिये कानूनी रूप से बाध्यकारी दायित्वों का निर्माण करते हैं जिनके द्वारा इनकी पुष्टि की जाती है।
    • इसकी अनुशंसाएँ गैर-बाध्यकारी हैं और राष्ट्रीय नीतियों तथा कार्यों को उन्मुख करने वाले दिशा-निर्देशों  का निर्धारण करती हैं।
  • वर्ष 1969 में अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन को नोबेल शांति पुरस्कार प्रदान किया गया।
  • यह वार्षिक विश्व रोज़गार और सामाजिक दृष्टिकोण (World Employment and Social Outlook- WESO) रुझान रिपोर्ट जारी करता है।

भारत और ILO:

  • भारत, ILO का संस्थापक सदस्य है और यह वर्ष 1922 से ILO के शाषी निकाय का स्थायी सदस्य रहा है। भारत में ILO का पहला कार्यालय वर्ष 1928 में शुरू हुआ था।
  • भारत ने ILO के 41 अभिसमयों की पुष्टि की है, जो कई अन्य देशों में मौजूद स्थिति की तुलना में कहीं अधिक बेहतर है।
  • भारत ने आठ प्रमुख/मौलिक ILO अभिसमयों में से 6 की पुष्टि की है। ये अभिसमय निम्नलिखित हैं:
    1. बलात् श्रम पर अभिसमय (संख्या 29)
    2. बलात् श्रम के उन्मूलन पर अभिसमय (संख्या 105)
    3. समान पारिश्रमिक पर अभिसमय (संख्या 100)
    4. भेदभाव (रोज़गार और व्यवसाय) पर अभिसमय (संख्या 111)
    5. न्यूनतम आयु पर अभिसमय (संख्या 138)
    6. बाल श्रम के सबसे विकृत स्वरूप पर अभिसमय (संख्या 182)
  • भारत ने दो प्रमुख/मौलिक अभिसमयों, अर्थात् संघ बनाने की स्वतंत्रता एवं संगठित होने के अधिकार की सुरक्षा पर अभिसमय, 1948 (संख्या 87) और संगठित एवं सामूहिक सौदेबाज़ी के अधिकार पर अभिसमय, 1949 (संख्या 98) की पुष्टि नहीं की है।
    • ILO की कन्वेंशन संख्या 87 एवं  98 की पुष्टि नहीं करने का मुख्य कारण सरकारी कर्मचारियों पर लगाए गए कुछ प्रतिबंध हैं।
  • ILO ने कोविड-19 के प्रकोप के कारण धीमी पड़ चुकी आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिये कई भारतीय राज्यों द्वारा श्रम कानूनों में किये गए परिवर्तनों पर गहरी चिंता व्यक्त की है।

स्रोत: पी.आई.बी.

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