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डेली न्यूज़

जैव विविधता और पर्यावरण

वैश्विक मृदा जैव विविधता (soil biodiversity) एटलस

  • 01 Nov 2018
  • 5 min read

यूरोपीयन कमीशन जॉइंट रिसर्च सेंटर (European Commission Joint Research Centre) द्वारा तैयार वैश्विक मृदा जैव विविधता एटलस के अनुसार, भारत की मृदा जैव विविधता गंभीर खतरे में है।

प्रमुख बिंदु

  • WWF का 'जोखिम सूचकांक या रिस्क इंडेक्स' – ज़मीन के ऊपर जैव विविधता में कमी, प्रदूषण, पोषक तत्त्वों की ओवरलोडिंग, ओवरग्रेज़िंग,गहन कृषि, आग, मृदा अपरदन, मरुस्थलीकरण और जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाले खतरों को इंगित करता है।
  • इस एटलस पर लाल रंग वाले क्षेत्रों में पाकिस्तान, चीन, अफ्रीका और यूरोप के कई देश तथा उत्तरी अमेरिका के अधिकांश देश शामिल हैं।
  • ये निष्कर्ष ‘लिविंग प्लैनेट रिपोर्ट’ 2018 का हिस्सा हैं। उल्लेखनीय है कि यह रिपोर्ट वर्ष में दो बार प्रकाशित की जाती है।
  • इस साल की रिपोर्ट का एक प्रमुख पहलू मृदा जैव विविधता और परागण के प्रमुख घटकों [जैसे मधुमक्खियाँ] के लिये खतरा है।

Blue Planet under threatमृदा जैव विविधता के घटक

  • मृदा जैव विविधता में सूक्ष्म जीवों, सूक्ष्म प्राणीजात [उदाहरण के लिये सूत्रकृमी (Nematodes) और टारडीग्रेड्स (Tardigrades)] तथा सूक्ष्म-जीव (चीटियाँ, दीमक, और केंचुए) की उपस्थिति शामिल है।

भारत की स्थिति

  • यह सूचकांक भारत को उन देशों के बीच दर्शाता है जिनकी मृदा जैव विविधता जोखिम के उच्चतम स्तर का सामना कर रही है।
  • तमिलनाडु कृषि विश्वविद्यालय द्वारा किये गए एक अध्ययन के अनुसार, भारत में लगभग 50 मिलियन हेक्टेयर कृषि भूमि की परागण आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये 150 मिलियन मधुमक्खी कॉलोनियों की आवश्यकता थी जबकि केवल 1.2 मिलियन कॉलोनी मौज़ूद थीं।

वैश्विक स्थिति

  • 1970 से 2014 तक मछली, पक्षियों, स्तनधारियों, उभयचर और सरीसृपों की आबादी में औसतन 60% की कमी हुई है और इसी अवधि में ताज़े पानी में रहने वाली प्रजातियों की आबादी में 83% की कमी आई है।
  • 1960 से अब तक वैश्विक पारिस्थितिकीय पदचिह्न (footprint) में 190% से अधिक की वृद्धि हुई है।
  • वैश्विक स्तर पर 1970 से अब तक आर्द्रभूमि की सीमा में 87% की कमी हुई है।
  • WWF ने अपनी रिपोर्ट में यह भी शामिल किया कि जैव विविधता में हानि के दो प्रमुख कारक प्राकृतिक संसाधनों और कृषि का अधिक शोषण थे।
  • WWF के अनुसार, भारत की उच्च आबादी ने इसे पारिस्थितिक संकट के प्रति संवेदनशील बना दिया है।

पारिस्थितिकी पदचिह्न

The Ecological Footprint

  • पारिस्थितिकी पदचिह्न, पृथ्वी के पारिस्थितिक तंत्र पर मानवीय मांग का एक मापक है।
  • यह इंसान की मांग की तुलना पृथ्वी की पारिस्थितिकी के पुनरुत्पादन की क्षमता से करता है।
  • इसका प्रयोग करते हुए यह अनुमान लगाया जा सकता है कि अगर प्रत्येक व्यक्ति एक निश्चित जीवनशैली का अनुशरण करे तो मानवता की सहायता के लिये पृथ्वी के कितने हिस्से की ज़रूरत होगी।

समाधान

उपरोक्त चुनौतियों का समाधान करने के लिये, WWF ने तीन आवश्यक उपाय भी सुझाए हैं:

  1. जैव विविधता की पुनः प्राप्ति के लिये स्पष्ट रूप से एक लक्ष्य निर्दिष्ट करना।
  2. प्रगति के मापनीय और प्रासंगिक संकेतकों का एक सेट विकसित करना।
  3. उन कार्यों के एक समूह पर सहमति, जो सामूहिक रूप से आवश्यक समयसीमा में लक्ष्य प्राप्त कर सकें।

(प्रिय विद्यार्थियों, द हिंदू न्यूज़पेपर द्वारा इन न्यूज़ में कुछ परिवर्तन किया गया है है, जो हम आपको अपडेट कर रहे हैं।
यूरोपीयन कमीशन जॉइंट रिसर्च सेंटर (European Commission Joint Research Centre) द्वारा तैयार वैश्विक मृदा जैव विविधता एटलस के अनुसार, भारत की मृदा जैव विविधता गंभीर खतरे में है। इसे पहले वर्ल्ड वाइड फंड फॉर नेचर के नाम से लिखा गया, जिसे बदलकर यूरोपीयन कमीशन जॉइंट रिसर्च सेंटर (European Commission Joint Research Centre) कर दिया गया है।)

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