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डेली न्यूज़

भारतीय अर्थव्यवस्था

राजकोषीय घाटे में बढ़ोतरी

  • 02 Feb 2021
  • 7 min read

चर्चा में क्यों?

मुख्य रूप से कम राजस्व प्राप्ति के कारण सरकार का राजकोषीय घाटा (Fiscal Deficit) दिसंबर 2020 के अंत में बजट अनुमान ( Budget Estimate- BE) से बढ़कर 11.58 लाख करोड़ या 145.5% (वर्ष 2020-21 के पहले नौ महीनों का लेखा-जोखा) हो गया है।

प्रमुख बिंदु:

  • वर्ष 2020-21 के लिये निर्धारित राजकोषीय घाटा: केंद्र सरकार द्वारा मौजूदा वित्तीय वर्ष के लिये कुल 7.96 लाख करोड़ रुपए अथवा कुल सकल घरेलू उत्पाद (Gross Domestic Product- GDP) के 3.5 प्रतिशत राजकोषीय घाटे का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। 
  • वर्ष 2019-2020 में राजकोषीय घाटा: लेखा महानियंत्रक (CGA) द्वारा जारी आंँकड़ों के अनुसार, पिछले वित्त वर्ष में दिसंबर के अंत में राजकोषीय घाटा वर्ष 2019-20 के बजट अनुमान का 132.4% था।
  • उच्च राजकोषीय घाटे का कारण:
    • निम्न राजस्व प्राप्ति:
      • कोविड-19 महामारी और लॉकडाउन के बाद सामान्य व्यावसायिक गतिविधि में व्यवधान के कारण राजस्व प्राप्ति में कमी देखी गई।
    • अधिक व्यय:
      • सरकार के महामारी राहत कार्यक्रमों, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण तथा ग्रामीण विकास कार्यक्रमों के कारण राजस्व व्यय में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।
  • राजकोषीय घाटा
    • सरकार द्वारा राजकोषीय घाटे को ‘एक वित्तीय वर्ष के दौरान भारत की समेकित निधि (Consolidated Fund of India ) में कुल प्राप्तियों (ऋण प्राप्तियों को छोड़कर) की तुलना में कुल अदायगी (ऋण पुनर्भुगतान को छोड़कर) की अधिकता’ के रूप में वर्णित किया गया है।
    • सरल शब्दों में, यह सरकार के खर्च की तुलना में उसकी आय में कमी को दर्शाता है।
      • जिस सरकार का राजकोषीय घाटा अधिक होता है, वह अपने साधनों से ज़्यादा खर्च करती है।
    • इसकी गणना सकल घरेलू उत्पाद के प्रतिशत के रूप में की जाती है या आय के अतिरिक्त खर्च किये गए कुल धन के रूप में की जाती है।
      • किसी भी स्थिति में आय के आंँकड़े में केवल कर और अन्य राजस्व को ही शामिल किया जाता है तथा  राजस्व की कमी को पूरा करने के लिये उधार ली गई धनराशि को शामिल नहीं किया जाता है।
  • विधि:
    • राजकोषीय घाटा = सरकार का कुल व्यय (पूंजी और राजस्व व्यय) - सरकार की कुल आय (राजस्व प्राप्ति + ऋणों की वसूली + अन्य प्राप्तियाँ )।
      • व्यय के घटक: सरकार अपने बजट में कई कार्यों के लिये धन आवंटित करती है, जिसमें वेतन, पेंशन आदि के भुगतान (राजस्व व्यय) और बुनियादी ढांँचे, विकास आदि जैसे परिसंपत्तियों का निर्माण (पूंजीगत व्यय) शामिल है।
      • आय प्राप्ति के घटक: आय घटक दो चरों (Variables) से मिलकर बना है, पहला, केंद्र द्वारा लगाए गए करों से उत्पन्न राजस्व और दूसरा, गैर-कर स्रोतों से उत्पन्न आय।
        • कर योग्य आय में निगम कर, आयकर, सीमा शुल्क, उत्पाद शुल्क, जीएसटी तथा अन्य से प्राप्त धनराशि शामिल होती है।
        • गैर-कर योग्य आय में बाहरी अनुदान, ब्याज प्राप्तियांँ, लाभांश और मुनाफा, केंद्रशासित प्रदेशों से प्राप्तियाँ आदि को शामिल किया जाता है।
  • राजकोषीय घाटा राजस्व घाटे से भिन्न होता है जो केवल सरकार के राजस्व व्यय (Revenue Expenditure) और राजस्व प्राप्तियों (Revenue Receipts) से संबंधित है।
  • सरकार द्वारा पैसा उधार लेकर राजकोषीय घाटे की पूर्ति की जाती है । इस प्रकार एक वित्तीय वर्ष में सरकार की कुल उधार आवश्यकता उस वर्ष के राजकोषीय घाटे के बराबर होती है।
  • उच्च राजकोषीय घाटा अर्थव्यवस्था के लिये लाभकारी हो सकता है यदि खर्च किये गए धन का उपयोग राजमार्गों, सड़कों, बंदरगाहों और हवाई अड्डों जैसी उत्पादक परिसंपत्तियों के निर्माण तथा जो आर्थिक विकास को बढ़ावा देते हैं और जिनके परिणामस्वरूप रोज़गार सृज़न को बढ़ावा मिलता हो, में किया गया हो।
  • राजकोषीय उत्तरदायित्व और बजट प्रबंधन अधिनियम, 2003 यह प्रावधान करता है कि केंद्र को 31 मार्च, 2021 तक राजकोषीय घाटे को जीडीपी के 3% तक सीमित करने हेतु उचित उपाय करना चाहिये।
  • वर्ष 2016 में गठित एनके सिंह समिति (NK Singh Committee) द्वारा सिफारिश की गई कि सरकार को 31 मार्च, 2020 तक राजकोषीय घाटे को सकल घरेलू उत्पाद के 3% तक लक्षित किया जाना चाहिये, जिसे  वर्ष 2020-21 में 2.8% और वर्ष 2023 तक 2.5% तक कम करना चाहिये।

नियंत्रक-महालेखा परीक्षक:

  • यह पद वित्त मंत्रालय के व्यय विभाग के अंतर्गत आता है।
  • यह भारत सरकार का प्रधान लेखा सलाहकार है और तकनीकी रूप से प्रबंधन लेखा प्रणाली की स्थापना और लेखांकन हेतु  ज़िम्मेदार है।
  • CGA के  कार्यालय द्वारा संघ सरकार के लिये व्यय, राजस्व, उधार और विभिन्न राजकोषीय संकेतकों का मासिक और वार्षिक विश्लेषण किया जाता है।

स्रोत: द हिंदू

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