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होम्योपैथी केंद्रीय परिषद (संशोधन) विधेयक, 2018

  • 22 Aug 2018
  • 3 min read

चर्चा में क्यों?

हाल ही में लोकसभा द्वारा होम्योपैथी केंद्रीय परिषद (संशोधन) विधेयक, 2018 पारित किया गया। इसके अंतर्गत होम्योपैथी केंद्रीय परिषद अधिनियम, 1973 में संशोधन करने का प्रावधान किया गया है।

विधेयक के प्रमुख प्रावधान

  • होम्योपैथी केंद्रीय परिषद (संशोधन) अधिनियम, 2018 के लागू होने के एक वर्ष के भीतर केंद्रीय परिषद को पुनर्गठित किया जाएगा और केंद्रीय परिषद के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष तथा अन्य सदस्यों के पद रिक्त हो जाएंगे।
  • केंद्रीय सरकार द्वारा शासी बोर्ड का गठन किया जाएगा जिसमें अधिकतम सात सदस्य होंगे, जो होम्योपैथी तथा होम्योपैथी शिक्षा के क्षेत्र में ख्याति-प्राप्त और सत्यनिष्ठा वाले होंगे ये केंद्रीय सरकार द्वारा नामनिर्दिष्ट या उसके द्वारा नियुक्त किये जाने वाले पदेन सदस्य होंगे जिनमें से एक का चयन केंद्रीय सरकार द्वारा शासी बोर्ड के सभापति के रूप में किया जाएगा।
  • शासी बोर्ड का सभापति और अन्य सदस्य केंद्रीय सरकार के प्रसाद पर्यंत अपना पद धारण करेंगे।
  • सभी होम्योपैथी चिकित्सा महाविद्यालयों द्वारा केंद्रीय सरकार की पूर्व अनुज्ञा अभिप्राप्त करने के लिये उपबंध करना।
  • विधेयक पूर्वोक्त उद्देश्यों की प्राप्ति के लिये है।

संशोधन की आवश्यकता क्यों है?

  • परिषद में गंभीर दुराचार के मामले सामने आए हैं जिसके परिणामस्वरूप चिकित्सा शिक्षा की क्वालिटी में गिरावट आई है। केंद्रीय सरकार ने परिषद के कार्यकरण को कारगर बनाने और परिषद के क्रियाकलापों में पारदर्शिता लाने के लिये विभिन्न कदम उठाए हैं। तथापि परिषद ने केंद्रीय सरकार की ऐसी सभी पहलों को बाधित किया है।
  • परिषद के बहुत से सदस्य अपनी पदावधि पूर्ण होने के बाद भी लंबे समय से परिषद में बने हुए हैं।
  • इसके अतिरिक्त परिषद के सभापति के विरुद्ध गंभीर कदाचार के कई आरोप भी सामने आए हैं जो कि पदावधि की समाप्ति के पश्चात् भी परिषद के सदस्य के तौर पर कार्य कर रहे थे, इसका मुख्य कारण यह है कि नए पदाधिकारी के चयन की प्रक्रिया समय पर पूरी नहीं की जा सकी।

पृष्ठभूमि

  • होम्योपैथी केंद्रीय परिषद अधिनियम, 1974 को होम्योपैथी केंद्रीय परिषद के गठन, होम्योपैथी रजिस्टर के रख-रखाव तथा उससे संबंधित विषयों के लिये अधिनियमित किया गया था।
  • वर्ष 2002 में होम्योपैथी केंद्रीय परिषद अधिनियम, 1973 को नए महाविद्यालय स्थापित करने और विद्यमान महाविद्यालयों में नए पाठ्यक्रम आरंभ करने या प्रवेश क्षमता बढाने हेतु संशोधित किया गया था।
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