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भारतीय विरासत और संस्कृति

हम्पी मंदिर में अवस्थित पत्थर के रथ

  • 07 Dec 2020
  • 10 min read

चर्चा में क्यों?

भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण (Archaeological Survey of India- ASI) ने हम्पी के यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल पर विट्ठल मंदिर परिसर के अंदर पत्थर के रथ की सुरक्षा के लिये कदम उठाए हैं।

  • ASI, पुरातात्त्विक अनुसंधान और राष्ट्र की सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण हेतु संस्कृति मंत्रालय के अंतर्गत एक प्रमुख संगठन है।

Vitthal-temple

प्रमुख बिंदु:

  • हम्पी रथ: 
    • यह भारत में पत्थर से निर्मित तीन प्रसिद्ध रथों में से एक है, अन्य दो रथ  कोणार्क (ओडिशा) और महाबलीपुरम (तमिलनाडु) में हैं।
    • इसका निर्माण 16वीं शताब्दी में विजयनगर शासक, राजा कृष्णदेवराय के आदेश पर हुआ था।
      • विजयनगर शासकों ने 14वीं से 17वीं शताब्दी तक शासन किया।
    • यह भगवान विष्णु के आधिकारिक वाहन गरुड़ को समर्पित एक मंदिर है।
  • विट्ठल मंदिर:
    • इसका निर्माण 15वीं शताब्दी में विजयनगर साम्राज्य के शासकों में से एक देवराय द्वितीय के शासन के दौरान हुआ था।
    • यह विट्ठल को समर्पित है और इसे विजया विट्ठल मंदिर भी कहा जाता है।
      • विट्ठल को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है।
    • विट्टल मंदिर दक्षिण भारतीय मंदिर वास्तुकला की द्रविड़ शैली में निर्मित है।
  • हम्पी:
    • चौदहवीं शताब्‍दी के दौरान मध्‍यकालीन भारत के महानतम साम्राज्‍यों में से एक विजयनगर साम्राज्‍य की राजधानी हम्‍पी कर्नाटक राज्‍य में स्थित है।
      • इसकी स्थापना हरिहर और बुक्का ने वर्ष 1336 में की थी।
    • यूनेस्को (वर्ष 1986) द्वारा विश्व विरासत स्थल के रूप में वर्गीकृत, यह "विश्व का सबसे बड़ा ओपन-एयर संग्रहालय" भी है।
    • हम्पी, उत्तर में तुंगभद्रा नदी और अन्‍य तीन ओर से पथरीले ग्रेनाइट के पहाड़ों से घिरा हुआ है। हम्पी के चौंदहवीं शताब्‍दी के भग्‍नावशेष यहाँ लगभग 26 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैले हुए हैं।
    • विजयनगर शहर के स्मारक जिन्हें विद्या नारायण संत के सम्‍मान में विद्या सागर के नाम से भी जाना जाता है, को वर्ष 1336-1570 ईस्वी के बीच हरिहर-I से लेकर सदाशिव राय आदि राजाओं ने बनवाया था। यहाँ पर सबसे अधिक इमारतें तुलुव वंश (Tuluva Dynasty) के महान शासक कृष्णदेव राय (1509 -30 ईस्वी) ने बनवाई थीं।
    • हम्‍पी के मंदिरों को उनकी बड़ी विमाओं, पुष्प अलंकरण, स्‍पष्‍ट नक्काशी, विशाल खम्‍भों, भव्‍य मंडपों एवं मूर्ति कला तथा पारंपरिक चित्र निरुपण के लिये जाना जाता है, जिसमें रामायण और महाभारत के विषय शामिल किये गए हैं।
    • हम्‍पी में मौजूद विठ्ठल मंदिर विजय नगर साम्राज्य की कलात्मक शैली का एक उत्‍कृष्‍ट उदाहरण है। एक पत्‍थर से निर्मित देवी लक्ष्‍मी, नरसिंह तथा गणेश की मूर्तियाँ अपनी विशालता एवं भव्‍यता के लिये उल्‍लेखनीय हैं। यहाँ स्थित जैन मंदिरों में कृष्‍ण मंदिर, पट्टाभिराम मंदिर, हजारा राम चंद्र और चंद्र शेखर मंदिर प्रमुख हैं।

विजयनगर साम्राज्य:

  •  विजयनगर या "विजय का शहर" एक शहर और साम्राज्य दोनों का नाम था।
  • साम्राज्य की स्थापना चौदहवीं शताब्दी (1336 ईस्वी) में संगम वंश के हरिहर और बुक्का ने की थी।
  • यह उत्तर में कृष्णा नदी से लेकर प्रायद्वीप के दूरतम दक्षिण तक फैला हुआ है।
  • विजयनगर साम्राज्य पर चार महत्त्वपूर्ण राजवंशों का शासन था जो इस प्रकार हैं:
    • संगम
    • सुलुव
    • तुलुव
    • अराविदु
  • तुलुव वंश का कृष्णदेवराय (शासनकाल 1509-29) विजयनगर का सबसे प्रसिद्ध शासक था। उनके शासन में विस्तार और समेकन की विशेषता थी।
    • उन्हें कुछ बेहतरीन मंदिरों के निर्माण और कई महत्त्वपूर्ण दक्षिण भारतीय मंदिरों में प्रभावशाली गोपुरम जोड़ने का श्रेय दिया जाता है। उन्होंने विजयनगर के पास एक उपनगरीय बस्ती की भी स्थापना की, जिसे नागालपुरम कहा जाता था।
    • उन्होंने तेलुगु में अमुक्तमलयद (Amuktamalyada) के नाम से जाने जाने वाले शासन कला के ग्रंथ की रचना की।
  • विजयनगर शासकों के संरक्षण में फैले दक्षिण भारत के हिस्सों में द्रविड़ वास्तुकला संरक्षित है। 
  • विजयनगर वास्तुकला को 'रानी का स्नान' और हाथी अस्तबल जैसी धर्मनिरपेक्ष इमारतों में इंडो इस्लामिक वास्तुकला के तत्त्वों को अपनाने के लिये भी जाना जाता है, जो एक अत्यधिक विकसित बहु-धार्मिक और बहु-जातीय समाज का प्रतिनिधित्त्व करते हैं।

द्रविड़ वास्तुकला

  • छठी शताब्दी ई. तक उत्तर और दक्षिण भारत में मंदिर वास्तुकला शैली लगभग एक समान थी, लेकिन छठी शताब्दी ई. के बाद प्रत्येक क्षेत्र का भिन्न-भिन्न दिशाओं में विकास हुआ। इस प्रकार आगे ब्राह्मण हिंदू धर्म मंदिरों के निर्माण में तीन प्रकार की शैलियों- नागर, द्रविड़ और बेसर शैली का प्रयोग किया।

मंदिरों के नागर और द्रविड़ शैली की विशेषताएँ:

नागर शैली-

  • ‘नागर’ शब्द नगर से बना है। सर्वप्रथम नगर में निर्माण होने के कारण इसे नागर शैली कहा जाता है।
  • यह संरचनात्मक मंदिर स्थापत्य की एक शैली है जो हिमालय से लेकर विंध्य पर्वत तक के क्षेत्रों में प्रचलित थी।
  • इसे 8वीं से 13वीं शताब्दी के बीच उत्तर भारत में मौजूद शासक वंशों ने पर्याप्त संरक्षण दिया।
  • नागर शैली की पहचान-विशेषताओं में समतल छत से उठती हुई शिखर की प्रधानता पाई जाती है। इसे अनुप्रस्थिका एवं उत्थापन समन्वय भी कहा जाता है।
  • नागर शैली के मंदिर आधार से शिखर तक चतुष्कोणीय होते हैं।
  • ये मंदिर उँचाई में आठ भागों में बाँटे गए हैं, जिनके नाम इस प्रकार हैं- मूल (आधार), गर्भगृह मसरक (नींव और दीवारों के बीच का भाग), जंघा (दीवार), कपोत (कार्निस), शिखर, गल (गर्दन), वर्तुलाकार आमलक और कुंभ (शूल सहित कलश)
  • इस शैली में बने मंदिरों को ओडिशा में ‘कलिंग’, गुजरात में ‘लाट’ और हिमालयी क्षेत्र में ‘पर्वतीय’ कहा गया।

द्रविड़ शैली-

  • कृष्णा नदी से लेकर कन्याकुमारी तक द्रविड़ शैली के मंदिर पाए जाते हैं।
  • द्रविड़ शैली की शुरुआत 8वीं शताब्दी में हुई और सुदूर दक्षिण भारत में इसकी दीर्घजीविता 18वीं शताब्दी तक बनी रही।
  • द्रविड़ शैली की पहचान विशेषताओं में- प्राकार (चहारदीवारी), गोपुरम (प्रवेश द्वार), वर्गाकार या अष्टकोणीय गर्भगृह (रथ), पिरामिडनुमा शिखर, मंडप (नंदी मंडप) विशाल संकेन्द्रित प्रांगण तथा अष्टकोण मंदिर संरचना शामिल हैं।
  • द्रविड़ शैली के मंदिर बहुमंजिला होते हैं।
  • पल्लवों ने द्रविड़ शैली को जन्म दिया, चोल काल में इसने उँचाइयाँ हासिल की तथा विजयनगर काल के बाद से यह ह्रासमान हुई।
  • चोल काल में द्रविड़ शैली की वास्तुकला में मूर्तिकला और चित्रकला का संगम हो गया।
  • यूनेस्को की विश्व विरासत सूची में शामिल तंजौर का वृहदेश्वर मंदिर (चोल शासक राजराज- द्वारा निर्मित) 1000 वर्षों से द्रविड़ शैली का जीता-जागता उदाहरण है।
  • द्रविड़ शैली के अंतर्गत ही आगे नायक शैली का विकास हुआ, जिसके उदाहरण हैं- मीनाक्षी मंदिर (मदुरै), रंगनाथ मंदिर (श्रीरंगम, तमिलनाडु), रामेश्वरम् मंदिर आदि।

Temple-Architecture

स्रोत: द हिंदू

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