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आंतरिक सुरक्षा

गुजरात का आतंकवाद निरोधक अधिनियम (GCTOC)

  • 07 Dec 2019
  • 10 min read

प्रीलिम्स के लिये:

गुजरात का आतंकवाद निरोधक अधिनियम, महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम, आतंकवादी कृत्य की परिभाषा

मेन्स के लिये:

गुजरात का आतंकवाद निरोधक अधिनियम तथा महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम में अंतर, आंतरिक सुरक्षा की दृष्टि से इस प्रकार के अधिनियमों की आवश्यकता एवं महत्त्व

चर्चा में क्यों?

राष्ट्रपति की मंज़ूरी के साथ गुजरात आतंकवाद और संगठित अपराध नियंत्रण (Gujarat Control of Terrorism and Organised Crime- GCTOC) अधिनियम 1 दिसंबर, 2019 से प्रवर्तित हो गया है।

MCOCA से अधिक व्यापक है यह अधिनियम

यह आतंकवाद निरोधक अधिनियम, जिसे तीन राष्ट्रपतियों ने राज्य को वापस भेज दिया था, दो उल्लेखनीय अंतरों के साथ महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम (Maharashtra Control of Organised Crime Act- MCOCA) से अत्यधिक प्रेरित है। GCTOC तथा MCOCA के बीच ये दो प्रमुख अंतर हैं:

  • महाराष्ट्र के अधिनियम में शामिल संचार के अवरोधन पर नियंत्रण (Checks on Interception of Communication), गुजरात के अधिनियम में शामिल नहीं है।
  • GCTOCA में ‘आतंकवादी कृत्य’ की परिभाषा में ‘सार्वजनिक व्यवस्था को भंग करने की मंशा’ (Intention to Disturb Public Order) को भी शामिल किया गया है।

ये दो अंतर GCTOCA को MCOCA की तुलना में अधिक कठोर और व्यापक बनाते हैं।

MCOCA में अवरोधन

(Interception in MCOCA)

  • MCOCA की पाँच धाराएँ (13, 14, 15, 16 और 27) संचार के अवरोधन से संबंधित हैं।
  • अधिनियम में कहा गया है कि सक्षम प्राधिकारी द्वारा अनुमोदन किये जाने पर यह अवरोधन 60 दिनों से अधिक अवधि तक जारी नहीं रह सकता है और अवधि के विस्तार के लिये अनुमति की आवश्यकता होगी।
  • अवधि में विस्तार किये जाने हेतु आवेदन में अब तक के अवरोधन के परिणामों पर एक वक्तव्य अथवा परिणाम प्राप्त करने में विफलता के लिये एक उचित स्पष्टीकरण शामिल होना चाहिये।
  • यदि विस्तार की अनुमति दी जाती है तो यह 60 दिनों से अधिक अवधि की नहीं हो सकती है।
  • अधिनियम सक्षम प्राधिकारी के आदेशों की समीक्षा करने के लिये एक समिति के गठन का प्रावधान करता है और अनधिकृत अवरोधन या अवरोधन के नियमों के उल्लंघन के मामले में एक वर्ष तक के कारावास की सज़ा निर्धारित करता है।
  • अवरोधन की उपयोगिता का विश्लेषण कैलेंडर वर्ष के अंतिम तीन माह के अंदर महाराष्ट्र विधानसभा को प्रस्तुत किया जाना अनिवार्य है।

कॉल का अवरोधन कौन कर सकता है?

  • जाँच की निगरानी और इलेक्ट्रॉनिक या मौखिक संचार के अवरोधन के लिये प्राधिकार की मांग करने वाले आवेदन को आरक्षी अधीक्षक (SP) या उससे उच्च रैंक के पुलिस अधिकारी के समक्ष प्रस्तुत करना आवश्यक है।
  • अधिनियम विभिन्न विवरणों को निर्दिष्ट करता है जिनका आवेदन में उल्लेख होना चाहिये।
  • अवरोधन की अनुमति केवल तभी दी जाती है जब जाँच एजेंसी यह स्पष्ट करती है कि खुफिया जानकारी एकत्रित करने के अन्य तरीके आजमाए जा चुके हैं और वे विफल रहे हैं।
  • अनुमति देने वाला सक्षम प्राधिकारी राज्य गृह विभाग का एक अधिकारी होना चाहिये जो सरकार के सचिव रैंक से नीचे का अधिकारी न हो।
  • अविलंब मामलों में अतिरिक्त DGP या उससे ऊपर के रैंक का अधिकारी अवरोधन को अधिकृत कर सकता है लेकिन उसके आदेश के 48 घंटों के भीतर एक आवेदन सक्षम प्राधिकारी को सौंपा जाना अनिवार्य है।

GCTOCA अधिक शक्तिशाली कैसे है?

  • गुजरात का अधिनियम केवल अवरोधन के माध्यम से एकत्र किये गए सबूतों की स्वीकार्यता को संबोधित करता है और संचार अवरोधन की प्रक्रिया का उल्लेख नहीं करता है।
  • इसकी धारा 14 MCOCA की संबंधित धारा की अनुकृति है और इसमें जोड़ा गया है कि: " CrPC, 1973 या उस समय प्रवर्तित किसी अन्य कानून में निहित किसी भी प्रावधान के बावजूद जुटाए गए साक्ष्य मामले की सुनवाई के दौरान न्यायालय में अभियुक्त के विरुद्ध साक्ष्य के रूप में स्वीकार्य होंगे।"
  • “किसी अन्य कानून" को परिभाषित नहीं किया गया है।
  • GCTOCA में MCOCA के अनिवार्य वार्षिक रिपोर्ट के समान भी कोई प्रावधान नहीं है।

‘आतंकवादी कृत्य’ की परिभाषा

  • गुजरात के अधिनियम में ‘आतंकवादी कृत्य’ की परिभाषा अब निरस्त हो चुके आतंकवाद निरोधक अधिनियम (Prevention of Terrorism Act- POTA), 2002 में शामिल परिभाषा के समान ही है, लेकिन इसमें ‘सार्वजनिक व्यवस्था को भंग करने की मंशा से किया गया कृत्य’ भी शामिल है।
  • परिभाषा का यह विस्तार “पाटीदार आंदोलन जैसे किसी भी आंदोलन को आतंकवादी कृत्य घोषित करने और कठोर सज़ा देने का अवसर प्रदान करता है।"
  • गैर-कानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम (Unlawful Activities (Prevention) Act- UAPA) 1967, जो भारत का मुख्य आतंकवाद-रोधी केंद्रीय कानून है, "इस तरह के आंदोलन को 'आतंकवाद' कहे जाने का अवसर प्रदान नहीं करता बल्कि इस तरह का कृत्य IPC की उन धाराओं और देशद्रोह कानून के दायरे में आता है जो अत्यंत कठोर सज़ा देने के लिये पर्याप्त रूप से प्रभावी नहीं हैं”।
  • गुजरात का अधिनियम आतंकवादी कृत्य को "सार्वजनिक व्यवस्था भंग करने या राज्य की एकता, अखंडता और सुरक्षा को खतरे में डालने या लोगों या लोगों के किसी भी वर्ग के मन में आतंक कायम करने की मंशा" के रूप में परिभाषित करता है।

गुजरात के अधिनियम से संबंधित विभिन्न तर्क

  • सरकार, नियमों का निर्माण करते समय उन नियंत्रणों व संतुलनों का प्रावधान कर सकती है जो गुजरात के इस आतंक निरोधक अधिनियम में अनुपस्थित हैं।
  • यदि ऐसा नहीं किया जाता है तो यह भी प्रावधान है कि न्यायालय राज्य सरकार को इस आशय के नियमों के निर्माण के लिये कह सकती है।
  • अधिनियम की संवैधानिक वैधता को "मामला-विशिष्ट" आधार पर चुनौती दी जा सकती है।
  • गुजरात आतंकवाद और संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम के संबंध में विधि-व्यवस्था बनाम निजता के संघर्ष की एक स्थिति भी बन रही है। यद्यपि यह समय ही बताएगा कि संचार अवरोधन का उपयोग कैसे किया गया और इसकी व्याख्या कैसे की जाती है।
  • "आतंकवादी कृत्य" की परिभाषा "अत्यंत व्यापक" है, हालाँकि इसे सीमित करने के लिये अधिनियम में प्रक्रिया भी निहित है।
  1. पहला नियंत्रण प्राथमिकी (FIR) दर्ज करने के रूप में है जिसे SP या उससे ऊपर के रैंक के अधिकारी द्वारा ही दर्ज किया जा सकता है। सामान्यतः यदि FIR दर्ज करने की शक्ति किसी उप-निरीक्षक या निरीक्षक-स्तर के अधिकारी को दी जाती है तो इसके दुरुपयोग की संभावना रहती है।
  2. दूसरा, यदि मान लिया जाए कि प्राथमिकी एक राजनीतिक मंशा के साथ दर्ज की गई है तब भी यह प्रावधान मौजूद है कि आरोप पत्र प्रस्तुत करने के बाद न्यायालय के संज्ञान लेने से पहले राज्य सरकार से मंज़ूरी प्राप्त करना आवश्यक है।
  • यद्यपि GCTOC अधिनियम जाँच प्रक्रिया के संबंध में कार्यकारी को शक्ति प्रदान करता है लेकिन ऐसे प्रावधान तो निरस्त हो चुके पूर्व के टाडा (TADA) और पोटा (POTA) आतंकरोधी अधिनियमों में भी मौजूद थे।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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