लखनऊ शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 23 दिसंबर से शुरू :   अभी कॉल करें
ध्यान दें:



डेली न्यूज़

भारतीय अर्थव्यवस्था

वैश्विक न्यूनतम कॉर्पोरेट कर

  • 13 Apr 2021
  • 15 min read

चर्चा में क्यों?

हाल ही में अमेरिकी ट्रेज़री सचिव ने G-20 देशों से वैश्विक न्यूनतम कॉर्पोरेट कर (Global Minimum Corporate Tax) को अपनाने का आग्रह किया गया है।

  • यह पिछले 30 वर्ष में विभिन्न देशों के बीच बहुराष्ट्रीय कंपनियों को आकर्षित करने हेतु कॉर्पोरेट कर की दरों को कम करने को लेकर चल रही प्रतिस्पर्द्धा को समाप्त करेगा।

प्रमुख बिंदु: 

वैश्विक न्यूनतम कॉर्पोरेट कर की दर संबंधी प्रस्ताव:

  • अमेरिकी प्रस्ताव में 21% न्यूनतम कॉर्पोरेट कर की परिकल्पना की गई है, हालाँकि इसमें उन देशों से प्राप्त आय पर छूट को समाप्त करने का भी प्रावधान किया गया है जो कि बहुराष्ट्रीय परिचालनों और मुनाफे को विदेशों में स्थानांतरित करने को हतोत्साहित करने हेतु एक न्यूनतम कर संबंधी कोई कानून नहीं बनाते हैं।
  • न्यूनतम कॉरपोरेट कर का प्रस्ताव विश्व के कुछ सबसे बड़े निगमों द्वारा दिये जा रहे कर की निम्न दर से संबंधित मुद्दे को संबोधित करने हेतु है, इन निगमों में एप्पल, अल्फाबेट और फेसबुक जैसी डिजिटल दिग्गज कंपनियाँ और साथ ही नाइकी और स्टारबक्स जैसे प्रमुख निगम शामिल हैं।
    • ये कंपनियाँ उन देशों, जहाँ प्रायः कर की दर काफी कम है, जैसे- आयरलैंड या कैरेबियाई राष्ट्र जैसे- ब्रिटिश वर्जिन द्वीप समूह या बहामास आदि से लाभ अर्जित करने के लिये अपनी सहायक कंपनियों के जटिल नेटवर्क पर निर्भर रहती हैं।

प्रस्ताव के कारण:

  • इस प्रस्ताव को लाने का उद्देश्य अमेरिकी कॉरपोरेट कर की दर में प्रस्तावित वृद्धि से उत्पन्न होने वाले किसी भी नुकसान की यथासंभव भरपाई सुनिश्चित करना है।
    • अमेरिका में कॉरपोरेट कर को 21% से बढ़ाकर 28% करने का प्रस्ताव किया गया है, जबकि वर्ष 2017 में अमेरिकी सरकार ने कॉरपोरेट कर को 35% से कम करके 21% कर दिया था। 
  • अमेरिका में कॉरपोरेट कर में वृद्धि ऐसे समय में हुई है, जब वैश्विक स्तर पर विभिन्न सरकारें महामारी से निपटने के लिये अधिक-से-अधिक खर्च कर रही हैं, साथ ही ऐसे समय में अमेरिका द्वारा 2.3 ट्रिलियन डॉलर के अवसंरचना उन्नयन के प्रस्ताव पर भी ज़ोर दिया जा रहा है।

महत्त्व:

  • महामारी के इस मौजूदा दौर में वैश्विक समुदाय की एकजुटता, अमेरिकी सरकार और पश्चिमी यूरोप के अधिकांश देशों के लिये काफी महत्त्वपूर्ण हैं, यद्यपि कुछ यूरोपीय देश जैसे- नीदरलैंड, आयरलैंड,  लक्ज़मबर्ग तथा कुछ कैरेबियन देश बहुराष्ट्रीय कंपनियों को आकर्षित करने हेतु ‘टैक्स अर्बिटेज’ पर निर्भर रहते हैं।
  • विदेशी कॉर्पोरेट आय पर न्यूनतम कर लगाने से अंतर्राष्ट्रीय निगमों के लिये अपनी आय को विदेशों में स्थानांतरित करना मुश्किल हो जाएगा।
  • विकसित अर्थव्यवस्थाओं में औसत कॉर्पोरेट कर की दर वर्ष 2000 में 32% से घटकर वर्ष 2018 तक सिर्फ 23% रह गई थी।
    • इसका मुख्य कारण यह है कि आयरलैंड, नीदरलैंड और सिंगापुर जैसे छोटे देशों ने निम्न कॉरपोरेट कर की पेशकश करके ‘फुटलूज़’ व्यवसायों (Footloose Businesses) को आकर्षित किया है।
      • ‘फुटलूज़ व्यवसाय’ शब्द ऐसे व्यवसायों को संदर्भित करता है, जिसे संसाधनों या परिवहन जैसे कारकों से प्रभावित हुए बिना किसी भी स्थान पर स्थापित किया जा सकता है।
    • अमूर्त संपत्तियों की तीव्र वृद्धि के साथ बहुराष्ट्रीय कंपनियों जैसे वैश्विक टेक फर्मों द्वारा अपनी लागतों में कटौती करने हेतु अपना व्यवसाय और उस पर अर्जित लाभ टैक्स हेवन (Tax Haven) माने जाने वाले देशों में हस्तांतरित किया जा रहा है।

अंतर्राष्ट्रीय प्रतिक्रिया:

  • यूरोपीय आयोग ने इस प्रस्ताव का समर्थन किया है, लेकिन आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (OECD) ने कहा है कि वैश्विक न्यूनतम दर का निर्धारण व्यापक विचार-विमर्श के बाद किया जाना चाहिये।
    • जर्मनी और फ्राँस सहित विभिन्न यूरोपीय देशों ने अमेरिका के इस प्रस्ताव का समर्थन किया है।
    • OECD और G-20 के देशों द्वारा ‘बेस इरोज़न एंड  प्रॉफिट शिफ्टिंग (BEPS) पहल’ का नेतृत्त्व किया जा रहा है जिसमें वर्ष 2013 से अमेरिका सहित 135 से अधिक देशों के साथ हुईं बहुपक्षीय वार्ताएँ शामिल हैं।
    • BEPS, बहुराष्ट्रीय उद्यमों द्वारा उपयोग की जाने वाली कर योजना रणनीतियों को संदर्भित करता है जो कर का भुगतान करने से बचने के लिये कर नियमों की कमियों का उपयोग करते हैं।
  • अमेरिका के आह्वान पर चीन को गंभीर आपत्ति होने की संभावना नहीं है, लेकिन हॉन्गकॉन्ग पर इस तरह की कर छूट का असर होगा, जो विश्व का सातवाँ और एशिया का सबसे बड़ा टैक्स हेवन स्थान है।
  • अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (International Monetary Fund) से भी अमेरिकी प्रस्ताव को समर्थन प्राप्त है।

चुनौतियाँ:

  • यह प्रस्ताव किसी राष्ट्र को अपनी कर नीति तय करने के संप्रभु अधिकार से टकराता है।
    • कराधान एक संप्रभु कार्य है और सरकारें अपनी ज़रूरतों तथा परिस्थितियों के आधार पर कॉर्पोरेट कर ढाँचा पर होने वाली चर्चाओं में भाग लेने एवं संलग्न होने के लिये स्वतंत्र हैं।
  • एक वैश्विक न्यूनतम दर अनिवार्य रूप से एक ऐसा साधन होगा, जिसका उपयोग देश उन नीतियों को अपनाने के लिये करेंगे जो उनके अनुरूप हैं। कम कर दर एक ऐसा साधन है जिसका उपयोग वे आर्थिक गतिविधि को वैकल्पिक रूप से बढ़ाने के लिये कर सकते हैं।
    • उदाहरण के लिये IMF और विश्व बैंक के आँकड़ों से पता चलता है कि कोविड-19 महामारी के दौरान विकासशील देशों द्वारा अधिक आर्थिक खर्च उनको विकसित देशों की तुलना में लंबे समय तक आर्थिक संकट में फंसा कर रख सकता है।
    • इसके अतिरिक्त एक वैश्विक न्यूनतम कर दर कर चोरी से निपटने में मददगार हो सकती है।

भारत की स्थिति

कॉर्पोरेट टैक्स में कटौती:

  • निवेश गतिविधि को पुनर्जीवित करने के लिये सितंबर 2019 में घरेलू कंपनियों हेतु कॉर्पोरेट करों में 22% और नई घरेलू विनिर्माण कंपनियों के लिये 15% की कटौती की गई।
    • कराधान कानून (संशोधन) अधिनियम [Taxation Laws (Amendment) Act], 2019 से आयकर अधिनियम (Income Tax Act), 1961 में एक धारा (115BAA) जोड़ी गई, जिससे मौजूदा घरेलू कंपनियों को कुछ शर्तों के साथ 22% की कर रियायत दिया गया।
    • रियायती कराधान व्यवस्था का विकल्प चुनने वाली मौजूदा घरेलू कंपनियों को किसी भी न्यूनतम वैकल्पिक कर का भुगतान करने की आवश्यकता नहीं होगी।
  • इस तरह की कटौती ने भारत के कॉर्पोरेट कर की दर को एशियाई देशों (23%) के बराबर कर दिया।
    • चीन और दक्षिण कोरिया की कर दर 25% है, जबकि मलेशिया 24%, वियतनाम की 20%, थाईलैंड की 20% और सिंगापुर की 17% है।
    • भारतीय घरेलू कंपनियों के लिये प्रभावी कर की दर अधिभार और उपकर सहित लगभग 25.17% है।
    • मौजूदा कंपनियों के लिये औसत कॉर्पोरेट कर की दर लगभग 29% है जो कुछ लाभ का दावा कर रहे हैं।

समकारी लेवी:

  • सरकार समकारी लेवी (Equalisation Levy) का उपयोग उन उद्यमों द्वारा उत्पन्न चुनौतियों का समाधान करने के लिये करते हैं जो दूर से ही डिजिटल माध्यम से अपने व्यवसाय का संचालन करते हैं।
  • समकारी लेवी का उद्देश्य उन विदेशी कंपनियों पर कर लगाना है, जिनके पास भारत में अधिक स्थानीय ग्राहक आधार है, लेकिन देश की कर प्रणाली से प्रभावी रूप से बचने के लिये देश से बाहर स्थित इकाइयों के माध्यम से कर चुकता कर रहे हैं।
  • भारत से बाहर स्थित कंपनियों से "व्यावसायिक संबंध" स्थापित करने के लिये "महत्त्वपूर्ण आर्थिक उपस्थिति" (Significant Economic Presence) हेतु आयकर अधिनियम, 1961 में संशोधन किया गया।

सूचनाओं के आदान-प्रदान के लिये समझौते:

  • भारत दोहरे कराधान से बचाव समझौतों, कर सूचना विनिमय समझौतों और बहुपक्षीय सम्मेलनों के अंतर्गत सूचनाओं के आदान-प्रदान को बढ़ाने के लिये विदेशी सरकारों के साथ लगातार काम कर रहा है।
    • इस तरह के समझौते कर मामलों में सहयोग को बढ़ावा देते हैं।
  • विदेशी परिसंपत्तियों के मामलों में शीघ्र जाँच सहित प्रभावी प्रतिक्रियाएँ शुरू की गई हैं, जिनमें खोज, पूछताछ, जुर्माना, दंड आदि शामिल हैं।

कॉर्पोरेट कर

  • कॉरपोरेट टैक्स एक प्रत्यक्ष कर है जो विदेशी या घरेलू कॉरपोरेट इकाइयों की शुद्ध आय या लाभ पर लगाया जाता है। 
  • आयकर अधिनियम, 1961 के प्रावधानों के तहत जिस दर पर कर अधिरोपित किया जाता है उसे कॉरपोरेट कर दर के रूप में भी जाना जाता है।
  • कॉरपोरेट कर दर (Corporate Tax rate) एक स्लैब दर प्रणाली पर आधारित होती है जो कॉरपोरेट इकाई के प्रकार और प्रत्येक कॉर्पोरेट संस्थाओं द्वारा अर्जित अलग-अलग राजस्व पर निर्भर करती है।

न्यूनतम वैकल्पिक कर

  • कई बार ऐसा हो सकता है कि एक कंपनी के रूप में एक करदाता द्वारा वर्ष भर आय उत्पन्न की जाती है, लेकिन आयकर कानून के विभिन्न प्रावधानों (जैसे छूट, कटौती, मूल्यह्रास, आदि) का लाभ उठाकर इस आय को कम किया जा सकता  है। करदाता द्वारा अपनी कर देयता को कम किया जा सकता है या वह किसी भी कर का भुगतान करने करने के लिये बाध्य नहीं है।
  • शून्य कर भुगतान करने वाली कंपनियों की संख्या में वृद्धि के कारण वित्त अधिनियम,1987 द्वारा मूल्यांकन वर्ष 1988-89 के प्रभाव से न्यूनतम वैकल्पिक कर (MAT) की शुरुआत की गई थी। बाद में इसे  वित्त अधिनियम, 1990 द्वारा वापस ले लिया गया था और फिर वित्त अधिनियम,1996 द्वारा पुन: प्रस्तुत किया गया था।
  • MAT की गणना 15% बुक प्रॉफिट (लाभ और हानि खाते में दिखाया गया लाभ) या सामान्य कॉर्पोरेट दरों पर की जाती है, इसमें से जो भी अधिक है वह कर के रूप में देय है।
  • भारत में सभी कंपनियाँ, चाहे वह घरेलू हों या विदेशी, MAT के  प्रावधानों  के अंतर्गत आती हैं। बाद में MAT के अधिकार क्षेत्र में गैर-कॉरपोरेट संस्थाओं को भी शामिल किया गया।
  • MAT एक महत्त्वपूर्ण उपकरण है जिसकी मदद से कर की चोरी को रोका जा सकता है।

घरेलू कंपनी:

  • घरेलू कंपनी वह है जो भारतीय कंपनी अधिनियम (2013) के तहत पंजीकृत है और इसमें विदेशों में पंजीकृत कंपनी भी शामिल है जिसका नियंत्रण और प्रबंधन भारत में स्थित है।
  • एक घरेलू कंपनी में निजी एवं  सार्वजनिक दोनों क्षेत्र की कंपनियाँ शामिल हैं।

विदेशी कंपनी:

  • विदेशी कंपनी वह है जो भारतीय  कंपनी अधिनियम के तहत पंजीकृत नहीं है और उसका नियंत्रण और प्रबंधन भारत के बाहर हो।

टैक्स हैवेन:

  • उन देशों को टैक्स हैवेन कहा जाता है, जहाँ राजनीतिक और आर्थिक रूप से स्थिर वातावरण में विदेशी व्यक्तियों और व्यवसायों पर बहुत कम या कोई कर देयता नहीं होती है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2