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विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

फॉर्मूला-1 हेतु 100% सतत् ईंधन

  • 13 Apr 2021
  • 10 min read

चर्चा में क्यों?

हाल ही में इंटरनेशनल ऑटोमोबाइल फेडरेशन (FIA) ने जैव अपशिष्ट से बने 100% सतत् ईंधन के पहले बैरल की घोषणा की है और कठोर F1 (फॉर्मूला वन) विनिर्देशों को  विकसित कर पावर यूनिट निर्माताओं को दिया गया है।

  • FIA ने वर्ष इसे 2025 से संचालित करके वर्ष 2030 तक F1  को कार्बन तटस्थ बनाने की घोषणा की है। 

फॉर्मूला वन

Formulla-one

  • फॉर्मूला वन, जिसे संक्षेप में एफ 1 (F1) भी कहा जाता है, एक अंतरराष्ट्रीय ऑटो रेसिंग खेल है। एफ 1 सिंगल-सीट, ओपन-व्हील और ओपन-कॉकपिट पेशेवर मोटर रेसिंग प्रतियोगिता का उच्चतम स्तर है।
  • F1 सत्र में दौड़ की एक श्रृंखला होती है जिसे ग्रैंड्स प्रिक्स के रूप में जाना जाता है। 
  • फॉर्मूला वन रेसिंग एक विश्व निकाय द्वारा संचालित और स्वीकृत है जिसे  FIA − (Fédération Internationale de l'Automobile or the International Automobile Federation कहा जाता है। इस नाम में निहित "फ़ॉर्मूला" शब्द नियमों के एक क्रम को संदर्भित करता है जिसका सभी प्रतिभागियों द्वारा पालन किया जाना चाहिये 

प्रमुख बिंदु:

वर्तमान F1 कार्बन फुटप्रिंट:

  • प्रत्यक्ष प्रभाव:
    • F1 की संचालित गतिविधियाँ  प्रति वर्ष लगभग 2,56,000 टन कार्बन डाइऑक्साइड का उत्पादन करती हैं , जो वर्तमान समय अवधि में ब्रिटेन में लगभग 30,000 घरों को बिजली देने के बराबर है।
  • अप्रत्यक्ष प्रभाव:
    • वर्ष 2019 में खेलों के माध्यम से उत्पन्न 0.7% कार्बन उत्सर्जन का मुख्य स्रोत केवल कारें नहीं थी बल्कि उनके साथ-साथ दुनिया भर में टीमों द्वारा लाए गए उपकरण भी ज़िम्मेदार थे।
    • इस सूची में खेल में  कारखानों और सुविधाओं के उत्सर्जन का 19.3% और घटना संचालन का  7.3% का प्रतिनिधित्व करता है ।

100% सतत ईंधन:

पृष्ठभूमि:

  • F 1 योजना ऊर्जा-कुशल इंजनों के निरंतर विकास के माध्यम से सबसे उच्च-स्तरीय तकनीकों में से एक है जिसमें पर्यावरणीय प्रभाव को कम किया जा सके।
  • 1989 से जब FIA वैकल्पिक ईंधन आयोग का गठन किया गया था तब से  एफ 1 ने इंजन की दक्षता में सुधार के लिये कई प्रयास किये  हैं, जो 2007 में अपनी वैश्विक ईंधन अर्थव्यवस्था पहल के रूप में उल्लेखनीय है, जिसका उद्देश्य प्रतियोगिता के दौरान ईंधन की खपत को 50% तक कम करना है।
  • वर्ष 2020 में FIA ने घोषणा की कि उसने 100% सतत् ईंधन विकसित किया है और इंजन निर्माता पहले ही इसका परीक्षण करने की प्रक्रिया में थे क्योंकि वे 2026 तक इसका उपयोग शुरू करना चाहते थे।

परिचय:

  • एक 100% सतत् ईंधन अनिवार्य रूप से तीसरी पीढ़ी और जैव ईंधन के सबसे उन्नत पुनरावृत्ति का प्रतिनिधित्व करता है ,जो सामान्य तौर पर औद्योगिक या कृषि अपशिष्ट उत्पादों द्वारा बनाया जाता है।
  • F1 कारें पहले से ही जैव ईंधन का उपयोग करती हैं लेकिन वर्तमान नियम केवल यह आदेश देते हैं कि ईंधन में 5.75% जैव घटक शामिल होने चाहिये।
  • वर्ष 2022 में यह संख्या बढ़कर 10% हो जाएगी और वर्ष 2025 तक जब नई बिजली इकाइयों को प्रतियोगिता में प्रवेश करने का प्रस्ताव होगा तो  FIA को पूरी तरह से 100% उन्नत टिकाऊ ईंधन के रूपांतरण की उम्मीद है।  

जैव ईंधन:

परिचय:

  • कोई भी हाइड्रोकार्बन ईंधन, जो किसी कार्बनिक पदार्थ (जीवित अथवा मृत पदार्थ) से कम समय (दिन, सप्ताह या महीने) में निर्मित होता है, जैव ईंधन (Biofuels) माना जाता है।
  • जैव ईंधन प्रकृति में ठोस, तरल या गैसीय हो सकते हैं।
    • ठोस: लकड़ी, पौधों से प्राप्त सूखी हुई सामग्री तथा खाद
    • तरल: बायोएथेनॉल और बायोडीज़ल
    • गैसीय: बायोगैस
  • इन्हें परिवहन, स्थिर, पोर्टेबल और अन्य अनुप्रयोगों के लिये डीज़ल, पेट्रोल या अन्य जीवाश्म ईंधन के अलावा इस्तेमाल किया जा सकता है। साथ ही, उनका उपयोग ऊष्मा और बिजली उत्पन्न वाले यंत्रो में भी किया जा सकता है।

जैव ईंधन की श्रेणियाँ:

  • पहली पीढ़ी के जैव ईंधन:
    • ये खाद्य स्रोतों जैसे कि चीनी, स्टार्च, वनस्पति तेल या पशु वसा से पारंपरिक तकनीक का उपयोग करके बनाए जाते हैं ।
    • सामान्य रूप से पहली पीढ़ी के जैव ईंधन में बायो अल्कोहल, बायोडीज़ल, वनस्पति तेल, बायोएथर्स, बायोगैस आदि शामिल हैं ।
  • दूसरी पीढ़ी के जैव ईंधन:
    • ये गैर-खाद्य फसलों या खाद्य फसलों के कुछ हिस्सों से उत्पन्न होते हैं जो खाद्य अपशिष्ट के रूप में माने जाते हैं, जैसे: डंठल, भूसी, लकड़ी के टुकड़े और फलों के छिलके और गुद्दे।
    • ऐसे ईंधन के उत्पादन के लिये थर्मोकेमिकल अभिक्रियाओं या जैव रासायनिक रूपांतरण प्रक्रियाओं का उपयोग किया जाता है।
    • उदाहरण: सेल्यूलोज़ इथेनॉल और बायोडीज़ल।
  • तीसरी पीढ़ी के जैव ईंधन:
    • ये शैवाल जैसे सूक्ष्म जीवों से उत्पन्न होते हैं।
      • उदाहरण: ब्यूटेनॉल (Butanol)
    • शैवाल जैसे सूक्ष्म जीवों को खाद्य उत्पादन के लिये उपयोग भूमि और अनुपयुक्त जल से उगाया जा सकता है, इससे घटते जल स्रोतों पर दबाव को कम किया जा सकता है।
  • चौथी पीढ़ी के जैव ईंधन:
    • इन ईंधनों के उत्पादन के लिये उन फसलों को चुना जाता है जिनमें आनुवंशिक रूप से अधिक मात्रा में कार्बन अभिनियांत्रित होते हैं, उन्हें बायोमास के रूप में उगाया और काटा जाता है ।
    • उसके बाद फसलों को दूसरी पीढ़ी की तकनीकों का उपयोग करके ईंधन में परिवर्तित किया जाता है।
    • ईंधन का पूर्व दहन करके कार्बन का पता लगाया जाता है। तब कार्बन भू-अनुक्रमित होता है, जिसका अर्थ है कि कार्बन कच्चे तेल या गैसीय क्षेत्र  में या अनुपयुक्त पानी के खेतों में जमा हो जाता है।
    • इनमें से कुछ ईंधन को कार्बन नकारात्मक माना जाता है क्योंकि उनका उत्पादन पर्यावरण से कार्बन की मात्रा को नष्ट करता है।

भारत की संबंधित पहल: 

  • E-20 ईंधन:  इससे पहले भारत सरकार ने E20 ईंधन (गैसोलीन के साथ 20% इथेनॉल का मिश्रण) को अपनाने के लिये सार्वजनिक टिप्पणियाँ आमंत्रित की थीं।
  • प्रधानमंत्री जी-वन योजना, 2019 (Pradhan Mantri JI-VAN Yojana, 2019): इस योजना का उद्देश्य दूसरी पीढ़ी (2G) के इथेनॉल उत्पादन हेतु वाणिज्यिक परियोजनाओं की स्थापना के लिये एक पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण करना और इस क्षेत्र में अनुसंधान तथा विकास को बढ़ावा देना है।
  • जीएसटी में कटौती:  सरकार ने ईंधन में इथेनॉल के सम्मिश्रण के लिये इस पर लगने वाली जीएसटी को 18% से घटाकर 5% कर दिया है।
  • राष्ट्रीय जैव ईंधन नीति-2018: इस नीति में ‘आधारभूत जैव ईंधनों’ यानी पहली पीढ़ी (1जी) के बायोइथेनॉल और बायोडीज़ल तथा ‘विकसित जैव ईंधनों’ यानी दूसरी पीढ़ी (2जी) के इथेनॉल, निगम के ठोस कचरे (एमएसडब्‍ल्‍यू) से लेकर ड्रॉप-इन ईंधन, तीसरी पीढ़ी (3जी) के जैव ईंधन, बायो CNG आदि को श्रेणीबद्ध किया गया है, ताकि प्रत्‍येक श्रेणी के अंतर्गत उचित वित्तीय और आर्थिक प्रोत्‍साहन बढ़ाया जा सके।

स्रोत-इंडियन एक्सप्रेस

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